देश के राष्ट्रीय आर्थिक आंकड़ों पर आईएमएफ के एतराज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की प्रतिक्रिया को बेहयाई नहीं, केवल थेथरई कहा जा सकता है। मोदी तो अभी भी देश को राष्ट्रगीत वंदे मातरम तक के नामं पर 2047 विकसित बनाने का झांसा दिए जा रहे हैं। वहीं, निर्मला सीतारमण राष्ट्रीय खातों की विसंगतियों को महज आधार वर्ष को बदलने के तकनीकी पेंच में उलझा देना चाहती हैं। महोदया, असल सवाल यह है कि जब देश का जीडीपी सितंबर तिमाही में छह तिमाहियों के सर्वोच्च स्तर 8.2% पर पहुंच गया और अक्टूबर में रिटेल मुद्रास्फीति मात्र 0.25% की रिकॉर्ड तहलटी तक गिर गई, तब भी देश में हर तरफ त्राहि-त्राहि क्यों मची है? कॉरपोरेट क्षेत्र तक इस अद्भुत व अकल्पनीय विरोधाभास को गले से नीचे नहीं उतार पा रहा है। सवाल आधार वर्ष 2011-12 को बदलकर 2022-23 करनै तक सीमित नहीं है। अहम सवाल जीडीपी की नॉमिनल विकास दर और रीयल विकास दर के बीच में बिचौलिया बने डिफ्लेटर का है, जो सरकार के बिके हुए दल्ले की तरह 11 साल से हमेशा सत्ता का ढोल पीटे जा रहा है। नॉमिनल जीडीपी और उसकी विकास दर आधार वर्ष पर नहीं, मौजूदा मूल्यों पर गिनी जाती है। वो 10.1% के बजट अनुमान के बजाय जून तिमाही में 8.8% और सितंबर तिमाही में 8.7% ही क्यों रही है? अब मंगलवार की दृष्टि…
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