बजट आने में अब चंद दिन ही बचे हैं। अर्थशास्त्रियों व विदेशी निवेशकों की निगाह इस बात पर रहेगी कि वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुपात के रूप में 5.5 फीसदी के बजट अनुमान से घटाकर 4.7-4.8 फीसदी पर ला पाते हैं या नहीं। लेकिन एक दूसरा घाटा भी देश को आंखें तरेर कर देख रहा है। वाणिज्य मंत्रालय द्वारा बुधवार को निर्यात बढ़ाने के लिए जारी रणनीति के अनुसार 2013-14 तक देश का व्यापार घाटा बढ़कर जीडीपी का 12.8 फीसदी हो जाएगा, जबकि चालू वित्त वर्ष 2010-11 में इसके 7.2 फीसदी रहने का अनुमान है।
असल में वाणिज्य मंत्रालय ने अगले तीन सालों में 2013-14 तक देश के निर्यात को दोगुना करने के लिए एक रणनीति तैयार की है। इसका करीब 85 पन्नों का प्रारूप उसने अपनी वेबसाइट पर पेश कर दिया है और 23 मार्च तक सभी संबंधित पक्षों से इस पर प्रतिक्रिया मांगी है ताकि चालू वित्त वर्ष की समाप्ति से पहले उसे अंतिम रूप दे दिया जाए। इस प्रारूप के मुताबिक चालू वित्त वर्ष का अनुमानित व्यापार घाटा 115 अरब डॉलर है। लेकिन तीन साल बाद 2013-14 में व्यापार घाटा करीब ढाई गुना बढ़कर 278.5 अरब डॉलर हो जाएगा।
रणनीति पत्र का कहना है कि इससे चालू खाते का घाटा अझेल हालत में पहुंच जाएगा। इस तरह व्यापार संतुलन (बीओटी) में घाटे का बढ़ना गंभीर चिंता का विषय है। तीन साल बाद हमारा निर्यात जहां 379.6 अरब डॉलर पर पहुंचेगा, वहीं आयात के 658.2 अरब डॉलर हो जाने का अनुमान है। इस तरह व्यापार घाटे से चालू खाते का घाचा बढ़ जाएगा जिसकी पूर्ति के लिए हमें विदेशी पूंजी प्रवाह का ज्यादा सहारा लेना होगा। ऐसा विदेशी पोर्टफोलियो निवेश अमूमन काफी चंचल होता है। ऐसे में कभी वह देश से निकल भागता है तो पूरी अर्थव्यवस्था संकट में फंस सकती है। इसलिए व्यापार घाटे को संभालना बहुत जरूरी है।
लेकिन इस रणनीति पत्र से अलग वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा देश का निर्यात बढ़ाने का सब्जबाग ही दिखाते रहे। बुधवार को इसे जारी करते हुए मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि 2014 तक हमारा निर्यात 450 अरब डॉलर पर पहुंच जाएगा, जबकि चालू वित्त वर्ष में यह 225 अरब डॉलर रहेगा। शर्मा जी शायद 2014-15 की बात कर रहे थे क्योंकि रणनीति पत्र में 2013-14 के निर्यात का अनुमान 379.8 अरब डॉलर रखा गया है, जबकि 2014-15 की बात उसमें नहीं की गई है।
वाणिज्य मंत्री ने इस मौके पर निर्यात बढ़ाने के लिए चार प्रमुख पहलुओं पर जोर दिया। इसमें इंजीनियरिंग व केमिकल, फार्मा, लेदर, टेक्सटाइल और जेम्स व ज्वैलरी जैसी उद्योग पर ध्यान देना होगा। दूसरा पहलू दुनिया के नए से नए बाजारों तक पहुंचना है। तीसरा पहलू शोध व अनुसंधान को बढ़ावा देना और चौथा पहलू भारत के विशिष्ट ब्रांड को बढ़ावा देना है। लेकिन मंत्री महोदय ने बढ़ते व्यापार घाटे के मद्देनजर देश की आयात निर्भरता को घटाने के बारे में कुछ नहीं कहा।