कच्चा तेल आज दो भूमिकाओं में है। एक तरह जहां वह एक भौतिक जिंस है, वहीं दूसरी तरफ वह निवेश के लिए एक वित्तीय माध्यम या आस्ति भी बन चुका है। अगर हमें इसके मूल्यों में आनेवाले उतार-चढ़ाव और सही मूल्य के अंतर को समझना है कि हमें कच्चे तेल के भौतिक व वित्तीय बाजार के अंतर्संबंध को समझना होगा। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी ने मंगलवार को रियाद (सऊदी अरब) में अंतरराष्ट्रीय उर्जा फोरम की विशेष मंत्रीस्तरीय बैठक में यह बात कही।
उन्होंने जोर देकर कहा कि कच्चे तेल जैसे अहम व सीमित संसाधन की कीमत को पूरी तरह बाजार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता, भले ही वह बाजार कमोडिटी डेरिवेटिव का हो या वित्तीय बाजार हो। 2008 में ऐसा हो चुका है जब ज्यादातर विकासशील देशों को भारी आर्थिक कठिनाई झेलनी पड़ी थी जब कच्चे तेल का अंतरराष्ट्रीय मूल्य 145 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर पहुंच गया. था। बहुत हद तक इसके पीछे सट्टेबाजी का हाथ था। इसलिए आज कमोडिटी फ्यूचर्स और डेरिवेटिव बाजार के नियमन लं6 को मजबूत करने की जरूरत है।
भारत जैसे उभरते देश के लिए इसकी बहुत अहमियत है क्योंकि कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से मुद्रास्फीति बढ़ती है, सरकार का कर-राजस्व घटता है और बजट घाटा बढ़ता है। इससे अंततः ब्याज दरें बढ़ जाती हैं। भारत पेट्रोलियम पदार्थों की खपत करने वाला दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश है और इस खपत का बड़ा हिस्सा आयात से पूरा किया जाता है।