हर तरफ बुरा ही बुरा है। सब कुछ टेढा-मेढा है। यह सोच-सोच कर रोने का कोई अंत नहीं है। देखना और सोचना यह चाहिए कि जो बुरा है, वो वैसा क्यों है। यह सिरा पकड़ कर ही हम उसे अच्छा कर सकते हैं।
2011-05-01
हर तरफ बुरा ही बुरा है। सब कुछ टेढा-मेढा है। यह सोच-सोच कर रोने का कोई अंत नहीं है। देखना और सोचना यह चाहिए कि जो बुरा है, वो वैसा क्यों है। यह सिरा पकड़ कर ही हम उसे अच्छा कर सकते हैं।
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Sirf buraayiyon ke bal par ye duniya nahin chal rahi. Lekin isaka matalab ye bhi to nahin ki peeth tab taisi keejai, jaisi bahe bayaar! ( AS the wind blows you must set your sail)……Zindagi ki ladaayiyaan ekdam naak ki seedh men nahin ladi jaatin………Aur pichhali galatiyon ko sudharane ke naam par ladaayi ko hi kinaare kar dena kahaan ki aklamandi hai, bhai?…….