पूरे तेरह साल बाद देश में कंपनियों के अधिग्रहण की संहिता बदले जाने का आधार तैयार हो गया है। पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी द्वारा बनाई गई टेकओवर रेगुलेशंस एडवाइजरी कमिटी (टीआरएसी) ने सोमवार को अपनी रिपोर्ट सेबी के चेयरमैन सी बी भावे को सौंप दी। इस पर 31 अगस्त 2010 तक सभी संबंधित पक्षों की प्रतिक्रिया मांगी गई है, जिसके बाद बाकायदा इसे नई नियमावली में बदल दिया जाएगा।
सेबी को 139 पन्नों की अपनी रिपोर्ट सौंपने के बाद टीआरएसी के चेयरमैन सी अच्युतन ने एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि हमने पूरी अधिग्रहण संहिता नई सिरे से लिख दी है। अब टेकओवर के नियम तब लागू होंगे जब कोई कंपनी के 25 फीसदी शेयर खरीद लेगा। अभी तक यह ट्रिगर सीमा 15 फीसदी की थी। साथ ही कमिटी का कहना है कि 25 फीसदी लेने के बाद ओपन ऑफर की सुविधा कंपनी के सभी शेयरधारकों को मिलनी चाहिए। अभी 15 फीसदी शेयर खरीदने के बाद अधिग्रहणकर्ता को 20 फीसदी शेयर और खरीदने का ओपन ऑफर लाना पड़ता है। लेकिन अब 25 फीसदी शेयर खरीदने के बाद उसे बाकी 75 फीसदी शेयर भी खरीदने का ओपन ऑफर लाना होगा।
इसका सीधा-सा मतलब हुआ कि अधिग्रहण करनेवाले को कंपनी के सारे के सारे 100 फीसदी शेयर खरीदने होंगे। अगर उसके ओपन ऑफर को शेयरधारक इस हद तक स्वीकार करते हैं कि कंपनी में अधिग्रहण करनेवाले की इक्विटी हिस्सेदारी 90 फीसदी से ऊपर हो जाती है तो कंपनी को स्टॉक एक्सचेंजों से डीलिस्ट कराना होगा। लेकिन अगर यह 90 फीसदी से कम रहती है तो कंपनी के नए मालिक को अपनी हिस्सेदारी घटाकर 75 फीसदी तक लानी होगी ताकि कम से कम 25 फीसदी पब्लिक हिस्सेदारी की शर्त पूरी होती रहे।
सी अच्युतन ने यह भी बताया कि अधिग्रहण करनेवाला जो मूल्य कंपनी के प्रवर्तक को देगा, वही मूल्य उसे बाकी शेयरधारकों को भी देना होगा। इसलिए प्रवर्तकों को दी जानेवाली नॉन-कम्पीट फीस का प्रावधान अब खत्म कर दिया गया है। अभी तक नया मालिक कंपनी के प्रवर्तकों को पूरी डील का 25 फीसदी तक हिस्सा अलग से देता था ताकि वे उसी उद्योग में कोई नई कंपनी न खड़ी कर दें। लेकिन इसमें कंपनी के आम शेयरधारकों को कुछ नहीं मिलता था।
अधिग्रहण या ओपन ऑफर मूल्य का फैसला शेयर बाजार में पिछले 12 हफ्तों के दौरान कंपनी के शेयर के वोल्यूम भारित मूल्य के औसत के आधार पर निकाला जाएगा। अभी तक 26 हफ्तों के औसत बाजार भाव या दो हफ्तों के औसत भाव में से जो भी अधिक होता है, उसे ओपन ऑफर का मूल्य रखा जाता है। समिति ने यह भी सिफारिश की है कि उन्हीं प्रवर्तकों को कंपनी में हर साल 5 फीसदी क्रीपिंग एक्विजिशन (धीरे-धीरे शेयरधारिता बढ़ाने) की सुविधा दी जाए जिनकी हिस्सेदारी पहले के कम से कम 25 फीसदी हो। इस सुविधा के जरिए प्रवर्तक अभी तक कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 55 फीसदी तक ले जा सकते हैं। लेकिन अब यह सीमा बढ़ाकर 75 फीसदी करने की सिफारिश की गई है।
कमिटी का कहना है कि प्रर्वतकों या बाजार से 25 फीसदी शेयर हासिल करने के दिन ही अधिग्रहणकर्ता को ओपन ऑपर की संक्षिप्त घोषणा कर देनी होगी। हालांकि विस्तृत ऑफर वह पांच कामकाजी दिनों के भीतर पेश कर सकता है। ओपन ऑफर 57 दिनों का होना चाहिए।
बता दें कि सेबी ने 4 सितंबर 2009 को अपने अधिग्रहण संबंधी नियमों की समीक्षा के लिए 12 सदस्यीय समिति (टीआरएसी) बनाई थी। समिति के सदस्यों में टाटा स्टील के सीएफओ कौशिक चटर्जी, लार्सन एंड टुब्रो के सीएफओ वाई.एम. देवस्थली, कोटक महिंद्रा के कार्यकारी निदेशक सौरव मलिक, डीएसपी मेरिल लिंच के प्रबंध निदेशक राज बालाकृष्णन और बॉम्बे हाईकोर्ट के वकील कुमार देसाई जैसे विशेषज्ञ शामिल थे। इसमें सेबी की तरफ से दो कार्यकारी निदेशक ऊषा नारायणन व जे. रंगनायाकुलु और एक महाप्रबंधक नीलम भारद्वाज शामिल थीं।