मोदी सरकार ने रोज़गार मिले लोगों की गिनती मे भयंकर ठगी व फ्रॉड किया है और देश-दुनिया के आंखों में धूल झोंकी है। फिर भी आबादी के अनुपात में रोज़गार उपलब्ध कराने में उसका रिकॉर्ड यूपीए सरकार से बदतर रहा है। वैसे, यूपीए सरकार के दौरान भी रोज़गार की स्थिति बेहतर नहीं थी। यूपीए सरकार के पहले साल 2004-05 आबादी में कामगारों का अनुपात या डब्ल्यूपीआर 62.2% था। यह घटते-घटते 2009-10 तक 55.9% और 2011-12 तक 54.7%औरऔर भी

करीब छह साल पहले सरकार की एक लीक हो गई आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) रिपोर्ट से जब पता चला कि देश में बेरोजगारी की दर 2017-18 में 45 सालों के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई थी तो हर तरफ हंगामा मच गया। मोदी सरकार के इसका ज़ोरदार खंडन किया। लेकिन मई 2019 में उसी सरकार ने दोबारा सत्ता संभाली तो दस दिन में ही उसे पुष्टि करनी पड़ी कि लीक हो गई रिपोर्ट की बातें एकदम सचऔरऔर भी

सरकार अपनी छवि बनाने के लिए बड़े-बड़े विज्ञापन निकाले, सफेद झूठ तक बोले तो चल सकता है। लेकिन जब वो देश में रोज़गार के मसले पर झूठ बोलती है तो ऐसा अपराध करती है जो अक्षम्य है, जिसके लिए भविष्य उसे कभी माफ नहीं कर सकता। नया साल शुरू होने के दो दिन बाद ही केंद्रीय श्रम मंत्री मनसुख मांडविया ने मीडिया को बुलाकर दावा किया कि यूपीए के दस साल के शासन में 2004 से 2014औरऔर भी

छल-छद्म, झूठ, तिकड़म और विज्ञापन से राजनीति में झांसा दिया जा सकता है। लेकिन अर्थनीति में नहीं। इसमें बड़े-बड़े विज्ञापन देकर और झूठ बोलकर भी सच को छिपाया नही जा सकता। कुछ दिन पहले अखबारों में मोदी के साथ नौजवान लड़कों व लड़कियों का फोटो लगाकर पूरे पेज़ के विज्ञापन में दावा किया गया कि नौ साल में 1.59 लाख से ज्यादा स्टार्ट-अप बने हैं। इन्हें करीब ₹13 लाख करोड़ की फंडिंग मिली और इनमें सीधे-सीधे 17.2औरऔर भी

भारत की सबसे बड़ी सम्पदा है उसकी मानव पूंजी। यही वो पूंजी है जो जीवन सुधारने की आशा में आज महाकुंभ में कोरोड़ों की तादाद में टूट पड़ी है। प्रयाग के संगम पर आस्था में डूबा सैलाब हिलोरे मार रहा है। लेकिन मोदी सरकार ने अब तक के लगभग 11 साल में उसे सही दिशा में लगाने पर ध्यान नहीं दिया। मोदी सरकार मेक-इन इंडिया के नाम पर विदेशी पूंजी के पीछे फूलों का गुलदस्ता लेकर दौड़तीऔरऔर भी

कहां है गरीबी, कहां है दरिद्रता और बेरोजगारी? मोदी सरकार कहती है कि उसने 2013-14 से 2022-23 के बीच के दस सालों में 25 करोड़ लोगों को बहुआयामी गरीबी से बाहर निकाल लिया है। अब देश में 29.17% के बजाय केवल 11.28% लोग ही गरीब रह गए हैं। भारतीय शेयर बाज़ार का पूंजीकरण सितंबर के बाद बराबर गिरने के बावजूद अब भी जीडीपी का 130% है। देश में 21 करोड़ पंजीकृत निवेशक और 11.5 करोड़ अलग याऔरऔर भी

ये हमारी-आपकी बची-खुची पूंजी में निकालने की जुगत भिड़ा रहे हैं। नियामक संस्था सेबी जल्दी ही 250 रुपए या इससे भी कम 100 रुपए की एसआईपी का रास्ता साफ करने की तैयारी में है। यह लालच दिखाकर कि म्यूचुअल फंडों की इक्विटी स्कीमों में नियमित धन लगाकर गरीब से गरीब देशवासी भी कॉरपोरेट की बढ़ती कमाई में हिस्सेदार बन सकता है। उसे एफडी, पीपीएफ या डाकघर जैसी बचत योजनाओं से असल में घाटा ही होता है क्योंकिऔरऔर भी

बीते हफ्ते शुक्रवार-शनिवार को एनएसई के सभागार में सेबी व एनआईएमएस ने दो दिन का सिम्पोजियम आयोजित किया। सम्वाद नाम की इस संगोष्ठी का केंद्रीय विषय था – कैपिटल फॉर ग्रोथ या संवृद्धि के लिए पूंजी। इसमें सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच से लेकर भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन तक के शिरकत की। साथ ही आए फाइनेंस की दुनिया के तमाम दिग्गज। इनमें आईआईएम बैंगलोर में फाइनेंस के प्रोफेसर वेंकटेश पंचपागेशन औरऔरऔर भी

मोदी सरकार इन दिनों बहुत परेशान है। जीडीपी की विकास दर घटकर चार साल के न्यूनतम स्तर पर। जिस विदेशी पूंजी पर भरोसा किया, वो देश छोड़कर भागे जा रही है। देश में शुद्ध एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) 12 साल के न्यूनतम स्तर पर। कोविड के बाद से सरकार ने खुद पूंजी व्यय बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को जो फौरी आवेग दिया था, उसका दम फूलने लगा है। बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 11,11,111 करोड़ रुपए केऔरऔर भी

हमारा जीडीपी तब तक नहीं बढ़ सकता, जब तक मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र नहीं बढ़ता। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की दुर्दशा इसलिए हुई पड़ी है क्योंकि मांग के अभाव में न देशी निवेश आ रहा है और न ही विदेशी। फिर भी सरकार झांकी सजाए हुए है। 12 दिसंबर 2024 को वाणिज्य मंत्रालय ने प्रेस रिलीज जारी की कि चालू वित्त वर्ष 2024-25 की पहली छमाही में 42.1 अरब डॉलर का रिकॉर्ड प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आया है और अप्रैल 2020औरऔर भी