जिस तरह सियारों के झुंड में पड़ा शेर सियार नहीं बन जाता, कौओं के झुंड में फंसा हंस कौआ नहीं बन जाता, वैसे ही निवेश-निवेश के शोर में आम भारतीय निवेशक ट्रेडर से निवेशक नहीं बन सकता। अभी भारतीय कॉरपोरेट सेक्टर की जो स्थिति है, उसमें उसे ऐसा बनना भी नहीं चाहिए। पांच साल के ऊपर का निवेश किसी म्यूचुअल फंड की लांग टर्म इक्विटी स्कीम में और उससे पहले शुद्ध ट्रेडिंग। आज क्या हैं ट्रेडिंग केऔरऔर भी

शेयर बाज़ार के मंजे हुए ट्रेडरों की बात अलग है। लेकिन उन लोगों के लिए, जिन्होंने शेयर बाज़ार में अभी-अभी ट्रेडिंग शुरू की होती है, स्टॉप लॉस लगते ही जैसे कलेजे से एक कतरा कटकर नीचे गिर जाता है। लगता है कि किसी ने सरे-राह जेब काट ली। हालांकि स्टॉप लॉस किसी भी ट्रेडर के जीवन का एक अपरिहार्य हिस्सा है। गिरते हैं घुड़सवार ही मैदान-ए-जंग में। लेकिन स्टॉप लॉस को लेकर मन में कोई खांचा फिटऔरऔर भी

नए हफ्ते का आगाज़ अच्छा नहीं रहा। पिछले हफ्ते बजट के दिन निफ्टी का न्यूनतम स्तर 5671.90 का था। पर सोमवार को वो इससे भी नीचे, 5663.60 तक चला गया। यह मायूसी के बढ़ने की निशानी है। अब तो लगता है कि 19 मार्च को रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की मध्य-तिमाही समीक्षा में अगर ब्याज दरें घटाने की घोषणा करेगा, तभी बाजार को नया ट्रिगर मिलेगा और उसमें नया उत्साह जगेगा। तब तक दो कदम पीछे, एकऔरऔर भी

मित्रों! न तो आपके इंतज़ार की घड़ियां खत्म हुई हैं और न ही मेरी। पढ़ाने से पहले पढ़ने में लगा हूं। एक बात तो साफ है कि निवेश के माध्यमों का जोखिम तो मै मिटा नहीं सकता। वो भविष्य में छलांग लगाने का मसला है, अनिश्चितता से जूझने का मामला है। वहां तो जोखिम हर हाल में रहेगा, कोई ‘भगवान’ तक उसे मेट नहीं सकता। लेकिन अपने स्तर पर मैं पढ़-लिखकर पक्का कर लेना चाहता हूं किऔरऔर भी

भारत सरकार आखिरकार सैन्य मामलों में घरेलू आधार को मजबूत करने पर ध्यान दे रही है। हम अभी तक विदेशी सैनिक हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर पर बहुत ज्यादा निर्भर है। खबरों के मुताबिक सरकार अब रक्षा से जुड़े सार्वजनिक उद्यमों (पीएसयू) और निजी कंपनियों के बीच संयुक्त उद्यम बनाने के नए दिशानिर्देशों को मंजूर करने जा रही है। मज़गांव डॉक लिमिटेड (एमडीएल) देश के चार डिफेंस शिपयार्ड में सबसे बड़ा है। उसके पास करीब 1,00,000 करोड़ रुपए केऔरऔर भी

अमेरिका में बेरोज़गारी की दर तीन सालों के न्यूनतम स्तर पर आ चुकी है। डाउ जोन्स मई 2008 के बाद के सर्वोच्च स्तर पर आ चुका है। वह शुक्रवार को 1.2 फीसदी की बढ़त लेकर 12,862.23 पर बंद हुआ है। लेकिन अब वहां करेक्शन आना लाजिमी है। देश में निफ्टी बड़े शान से 5300 का स्तर तोड़कर ऊपर आ चुका है। लगातार तीन दिन से 200 दिनों के मूविंग औसत (डीएमए) से ऊपर टिका है। अरसे सेऔरऔर भी

दोपहर साढ़े बारह बजे तक सेंसेक्स जब दो सालों के न्यूनतम स्तर 15478.69 और निफ्टी 4640.95 तक जा गिरा तो हर तरफ कोहराम मच गया। गनीमत है कि उसके बाद स्थिति संभलने लगी और सेंसेक्स अंततः 2.27 फीसदी की गिरावट के साथ 15,699.97 और निफ्टी 2.20 फीसदी की गिरावट के साथ 4706.45 पर बंद हुआ। असल में सेंसेक्स आज सुबह खुला ही करीब-करीब 100 अंक गिरकर, जबकि इतनी कमजोर शुरुआत की कोई ठोस वजह नहीं थी। इसनेऔरऔर भी

हमारी सोच यही है कि जो मिल जाता है, उसे हम मिट्टी समझते हैं जो खो जाता है, उसे सोना। शेयर बढ़ जाए तो उससे उतनी मोहब्बत नहीं होती और हम उसे आसानी से बेचकर निकल लेते हैं। लेकिन गिर जाए तो इतना सदमा लगता है कि जान ही निकल जाती है। फिर भी मोहब्बत वैसी, जैसी बंदरिया अपने मरे हुए बच्चे से करती है। सीने से चिपकाकर दिनोंदिन डोलती रहती है। यह निपट भावना है, बुद्धिमानीऔरऔर भी

जहां सारे कुएं में भांग पड़ी हो, वहां समझदारी की बात करना बेवकूफी है। हमारे शेयर बाजार का यही हाल है। ऑपरेटर, म्यूचुअल फंड और एफआईआई अंदर की खबरों पर काम करते हैं। बाजार इतना छिछला व छिछोरा है कि इनकी खरीद की खबर भी अंदर की खबर बन जाती है। खिलाड़ी लोग इन्हीं खबरों के आधार पर खेल करते हैं। कुछ हैं जो इन्हें कहीं न कहीं फुसफुसा देते हैं। ऐसे लोग गिने-चुने हैं। कुछ हैंऔरऔर भी

शेयरों में निवेश कोई घाटा खाने या कंपनियों से रिश्तेदारी निभाने के लिए नहीं करता। अभी हर तरफ गिरावट का आलम है, अच्छे खासे सितारे टूट-टूटकर गिर रहे हैं तो ऐसे में क्या करना चाहिए? जो वाकई लंबे समय के निवेशक हैं, रिटायरमेंट की सोचकर रखे हुए हैं, उनकी बात अलग है। लेकिन अनिश्चितता से भरे इस दौर में शेयर बाजार में लांग टर्म निवेश का क्या सचमुच कोई मतलब है? लोगबाग दुनिया के मशहूर निवेशक वॉरेनऔरऔर भी