मिहिर शर्मा एक नौकरीपेशा शख्स हैं। कुछ साल पहले तक महीने की तनख्वाह 35 हजार रुपये थी। अब यही कोई 65 हजार पाते हैं। पहले कैश सेगमेंट में सीधे कंपनी के शेयर खरीदते थे, डिलीवरी लेते थे। मौका पाने पर बेचकर हजार-दो हजार की कमाई कर लेते थे। जनवरी 2008 के बाद अपने ढाई लाख के निवेश पर करीब डेढ़ लाख का घाटा खाने के बाद उन्होंने रणनीति बदल दी है। अब वे सीधे कंपनी के शेयरोंऔरऔर भी

पूंजी बाजार नियामक संस्था, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने शनिवार 6 मार्च को अपनी बोर्ड बैठक में शेयर बाजार से जुड़ा एक अहम फैसला लिया है। वह यह कि उसने स्टॉक एक्सचेंजों को शेयरों के डेरिवेटिव सौदों में अभी की तरह कैश या नकद सेटलमेंट के साथ ही शेयरों की लेन-देन या फिजिकल सेटलमेंट की सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। इसे कब तक लागू किया जाएगा, इसका फैसला स्टॉक एक्सचेंजों से बातचीत के बाद तयऔरऔर भी

कभी स्टरलाइट समूह की कंपनी मद्रास एल्युमीनियम की सब्सिडियरी रह चुकी इंडिया फॉयल इस समय इनसाइडर ट्रेडिंग के फेरे में पड़ी हुई है। यह कंपनी बीआईएफआर के हवाले किए जाने के बाद डीलिस्ट हो गई थी। जब यह बीआईएफआर के दायरे से बाहर निकली तो एस डी (ESS DEE) एल्युमीनियम ने इसका अधिग्रहण कर लिया। हालांकि बीआईएफआर से बाहर निकलने में उसे लंबा वक्त लग गया। इसके बाद इंडिया फॉयल में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी बढ़कर 89 फीसदीऔरऔर भी

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के ताजा आंकड़े आ चुके हैं। दिसंबर में 16.8 फीसदी बढ़त के साथ इसने सोलह सालों का शिखर छू लिया है। भले ही यह छलांग वैश्विक मंदी के दौरान साल भर पहले इसी महीने में 0.2 फीसदी की गिरावट की तुलना में हो, लेकिन इसने हमारी अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौट आने की पुष्टि कर दी है। सोमवार को बाजार खुलेगा तो इस खुशी का खुमार माहौल में छाया रहेगा। ऊपर से सोमवारऔरऔर भी

पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी के निर्देश के बावजूद अब भी वितरक/ब्रोकर ग्राहकों के कागजात म्यूचुअल फंड को नहीं दे रहे हैं। सेबी ने बीते दिसंबर माह से ही यह नियम बना दिया हैं कि म्यूचुअल फंड निवेशक को किसी दूसरे ब्रोकर या मध्यस्थ की सेवा लेने के लिए पुराने ब्रोकर से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) लेने की जरूरत नहीं है। लेकिन ब्रोकर अब भी किसी न किसी बहाने ग्राहक के निवेश संबंधी दस्तावेज देने में आनाकानी करऔरऔर भी

पूंजी बाजार नियामक संस्था भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने जस्टिस डीपी वाधवा समिति की रिपोर्ट पर अमल के लिए एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त कर दिया है। रिटायर्ड मुख्य आयकर आयुक्त और सेबी के पूर्व कार्यकारी निदेशक विजय रंजन को यह जिम्मा सौंपा गया है। यह मामला साल 2003 से 2005 के बीच आए 21 आईपीओ (प्रारंभिक सार्वजनिक ऑफर) का है, जिसमें हजारों बेनामी डीमैट खाते खुलवाकर रिटेल निवेशकों के हिस्से के शेयर हासिल कर लिए गए थेऔरऔर भी