हमारे राजनेताओं को मजबूरन अपनी जुबान खोलते वक्त जन-भावनाओं का ख्याल रखना पड़ता है। लेकिन अच्छे से अच्छे नौकरशाह भी अक्सर जन-भावनाओं के प्रति इतने असंवेदनशील हो जाते हैं कि ऐसी बातें बोल जाते हैं कि अपनी परंपरा का यह नीति-वाक्य तक याद नहीं रहता – सत्यम् ब्रूयात प्रियं ब्रूयात, न ब्रूयात सत्यम् अप्रियं। आपको याद होगा कि कुछ साल पहले अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने कहा था कि दुनिया में जिंसों के दामऔरऔर भी