पिछले कुछ महीनों से उठे गुबार के बाद थोड़े-से भी जानकार निवेशकों में यूलिप (यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस पोडक्ट) को लेकर इतनी हिकारत पैदा हो गई है कि वे इसमें पैसा लगाना सरासर बेवकूफी समझते हैं। आम धारणा यही है कि बीमा लेना हो तो टर्म इंश्योरेस लेना चाहिए और निवेश का लाभ लेना हो तो सीधे म्यूचुअल फंड में पैसा लगाना चाहिए। इन दोनों के घालमेल यूलिप में पैसा लगाने का मतलब सिर्फ एजेंट की जेब भरनाऔरऔर भी

वित्तीय क्षेत्र के नियामकों के अधिकार क्षेत्र के एक-दूसरे में घुसने की समस्या बढ़ती जा रही है। अभी यूलिप पर पूंजी बाजार की नियामक संस्था, सेबी और बीमा क्षेत्र की नियामक संस्था, आईआरडीए के बीच मची मार किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है कि बैंकिंग क्षेत्र के नियामक, रिजर्व बैंक ने तय कर दिया है कि निजी क्षेत्र के किसी भी बैंक को क्यूआईपी (क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट) से पहले उससे अनुमति लेनी पड़ेगी। आज रिजर्व बैंक नेऔरऔर भी