क्यूआईपी लाने से पहले व बाद में रिजर्व बैंक की मंजूरी

वित्तीय क्षेत्र के नियामकों के अधिकार क्षेत्र के एक-दूसरे में घुसने की समस्या बढ़ती जा रही है। अभी यूलिप पर पूंजी बाजार की नियामक संस्था, सेबी और बीमा क्षेत्र की नियामक संस्था, आईआरडीए के बीच मची मार किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है कि बैंकिंग क्षेत्र के नियामक, रिजर्व बैंक ने तय कर दिया है कि निजी क्षेत्र के किसी भी बैंक को क्यूआईपी (क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट) से पहले उससे अनुमति लेनी पड़ेगी। आज रिजर्व बैंक ने एक अधिसूचना जारी कर इस नियम को तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया है।

अधिसूचना में बड़े विनम्र अंदाज में कहा गया है कि रिजर्व बैंक ने मार्च 2002 में जब निजी बैंकों के इश्यू लाने और उसके मूल्य-निर्धारण का नियम बनाया था, तब से नई बात यह हुई है कि मई 2006 से सेबी ने अतिरिक्त पूंजी जुटाने का एक और रास्ता क्यूआईपी के रूप में खोल दिया। चूंकि सेबी के दिशानिर्देश के तहत क्यूआईपी को प्राइवेट प्लेसमेंट के जरिए लाया जाता है, इसलिए इसे प्रिफरेंशियल इश्यू मानकर रिजर्व बैंक की अनुमति ले ली जाती थी। लेकिन बदली हुई स्थितियों में दिशानिर्देशों में संशोधन जरूरी हो गया है।

इसी के मद्देनजर अब तय किया गया है कि निजी बैंकों को क्यूआईपी लाने से पहले रिजर्व बैंक से सैद्धांतिक मंजूरी लेनी होगी। जैसे ही बैंक का निदेशक बोर्ड इस रास्ते से पूंजी जुटाने का प्रस्ताव पास करता है, उसके फौरन बाद उसे इश्यू का सारा विवरण रिजर्व बैंक के पास अनुमोदन के लिए भेजना होगा। निवेशकों को शेयरों का आवंटन सेबी और रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों के अंतर्गत होगा। लेकिन आवंटन की प्रक्रिया पूरी होते ही बैंकों को सारा ब्यौरा भेजकर एक बार फिर रिजर्व बैंक से मंजूरी लेनी होगी। अगर क्यूआईपी के जरिए बैंक की चुकता पूंजी में 5 फीसदी या उससे ज्यादा हिस्सेदारी हासिल की जाती है, तब भी बैंकों को इस नियम का पालन करना होगा।

बता दें कि क्यूआईपी में बड़े संस्थागत निवेशकों को कंपनी के शेयर या शेयर में बदले जा सकनेवाली प्रतिभूतिया जारी की जाती है। ऐसे निवेशकों में बैंक, बीमा कंपनियां, एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशक), सेबी के पास पंजीकृत देशी-विदेशी वेंटर कैपिटल फंड, प्रॉविडेंट फंड, पेंशन फंड वगैरह शामिल हैं। साल 2002 के नियम के मुताबिक निजी बैंकों को आईपीओ व प्रिफरेंशियल इश्यू से पहले रिजर्व बैंक की अनुमति लेनी पड़ती है। लेकिन लिस्टेड या अनलिस्टेड किसी भी बैंक के लिए राइट्स व बोनस इश्यू लाने पर इसकी जरूरत नहीं होती। इस नियम को नए दिशानिर्देशों में यथावत रखा गया है। अंतर बस इतना है कि अब राइट्स इश्यू के के लिए बैंकों को रिजर्व बैंक द्वारा 25 जून 2005 को जारी सर्कुलर की शर्तों का पालन करना होगा।

गौरतलब है कि एक बार पब्लिक इश्यू ले आने के बाद कोई भी कंपनी या बैंक सेबी के अधिकार क्षेत्र में आ जाता है। खासकर उन मामलों में जहां अतिरिक्त पूंजी जुटाई जाती है। सेबी ने इस बारे में कड़क कायदे-कानून बना रखे हैं। ऐसे में क्यूआईपी के मामले में रिजर्व बैंक का नया फैसला सेबी के अधिकार क्षेत्र में दखल माना जा सकता है। हालांकि रिजर्व बैंक ने नई अधिसूचना में शब्दों का चयन काफी सोच-समझकर इस तरह किया है ताकि सेबी को न लगे कि उसके अधिकार क्षेत्र में कोई दखलंदाजी हो रही है।

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