बजट को तीन अहम काम करने थे। निजी निवेश बढ़ाने के इंतज़ाम, रोज़गार के अवसर और आम खपत को बढ़ाना। लेकिन खपत बढ़ाने के लिए इनकम टैक्स छूट की सीमा बढ़ाने के बजाय कैपिटल गेन्स टैक्स और एसटीटी बढ़ा दिया। संगठित क्षेत्र में नई नौकरी पानेवाले को पहले महीने ₹15,000 देने और कर्मचारियों को दो साल तक ईपीएफओ में ₹3000 रुपए तक के मासिक योगदान के रीइम्बर्समेंट से नई नौकरियां कैसे पैदा हो सकती हैं? दावा किऔरऔर भी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अब तक के ट्रैक-रिकॉर्ड से साबित कर दिया है कि वे सरकार का खज़ाना भरने के लिए टैक्स वसूलने और दूसरे तरीके अपनाने में किसी भी हद तक गिर सकते हैं। रिजर्व बैंक से एकबारगी ₹2.11 लाख करोड़ का रिकॉर्ड लाभांश वसूलना आज तक कोई दूसरा नहीं कर सका। वहीं, जनता से ज्यादा से ज्यादा टैक्स वसूलने का कोई भी मौका वे नहीं चूकते। इस बार भी नहींऔरऔर भी

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण में साल 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने का कोई रोडमैप नहीं है। इसमें भले ही अगले पांच साल में 4.1 करोड़ युवाओं के लिए रोज़गार, कौशल व अन्य अवसर बनाने पर दो लाख करोड़ रुपए खर्च करने की बात हो, लेकिन इसका कोई कार्यक्रम बजट में नहीं है। इस साल शिक्षा, रोज़गार व कौशल के लिए 1.48 लाख करोड़ रुपए के प्रावधान की बात है। लेकिन जब एकऔरऔर भी

नई एनडीए सरकार के पहले बजट का दिन। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 11 बजे से लोकसभा में बजट भाषण पढ़ना शुरू कर देंगी। भाषण के पहले हिस्से में अधिकांश लोगों का ध्यान इस पर होगा कि रिजर्व बैंक से मिले 2.11 लाख करोड़ रुपए के छप्पर-फाड़ लाभांश के बाद सरकार अपना राजकोषीय़ घाटा कम करेगी या उसे पांच साल तक 81.35 करोड़ गरीबों को मुफ्त राशन देने की फूड सब्सिडी के हवाले कर देगी। विकसित भारत केऔरऔर भी

अपने सुंदर व सुरक्षित भविष्य की आकांक्षा में डूबा सारा भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ बड़ी उम्मीद से देख रहा है कि वे भाजपा को 303 के बहुमत से 240 सीटों के अल्पमत तक सिमटा देनेवाले जनादेश का सम्मान करते हुए एनडीए सरकार के पहले बजट में कुछ मूलभूत आर्थिक सुधार करते हैं या विकसित भारत के सब्ज़बाग की पुरानी चाशनी ही फेटते रहेंगे। यह बजट इस मायने में महत्वपूर्ण है कि इसमें जनाकांक्षाओं के अनुरूपऔरऔर भी

हमारी निहित संभावना, आकार-प्रकार और मौजूदा भू-राजनीतिक हालात ने अमेरिका व यूरोप समेत समूचे पश्चिमी जगत की नज़र में भारत को आर्थिक व राजनीतिक रूप से चीन की जवाबी शक्ति बना दिया है। इसलिए वो भारत को चढ़ाने का कोई मौका नहीं चूकते। यह अलग बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसका भरपूर निजी इस्तेमाल कर रहे हैं। हाल ही में उनका रूस जाना पश्चिमी दुनिया से मोलतोल करने का हीऔरऔर भी

व्यापक अवाम और विपक्षी राजनीतिक दलों के साथ ही तमाम देशी-विदेशी अर्थशास्त्री तक कह रहे हैं कि इस समय भारत की सबसे विकट समस्या बेरोज़गारी है। लेकिन मोदी के नेतृत्व में चल रही एनडीए सरकार मानने को तैयार ही नहीं कि देश में बेरोज़गारी की कोई समस्या है। इसलिए अगले हफ्ते मंगलवार, 23 जुलाई को आ रहे आम बजट में हम इस समस्या को सुलझाने के सार्थक उपाय नहीं देख सकते। हो सकता है कि महाराष्ट्र सरकारऔरऔर भी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में वादा किया था कि सत्ता संभालने के बाद उनकी सरकार हर साल 2 करोड़ रोज़गार पैदा करेगी। रिजर्व बैंक की ताज़ा रिपोर्ट के बाद मोदी ललकारने लगे हैं कि पिछले तीन-चार साल में करीब-करीब 8 करोड़ नए रोज़गार बने हैं तो विपक्ष फालतू हल्ला मचा रहा है। लेकिन स्वतंत्र अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मोदी के दावे और रिजर्व बैंक की रिपोर्ट से कतई सहमत नहीं हैं। अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर सस्टेनेबलऔरऔर भी

शक्तिकांत दास को मोदी सरकार ने 12 दिसंबर 2018 से जब से रिजर्व बैंक का गवर्नर बनाया है, तभी से उन्होंने केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता व स्वतंत्रता को दरकिनार कर सरकार का दास बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। यह पद संभालने के बाद से अब तक वे रिजर्व बैंक के खज़ाने से 7,10,835 करोड़ रुपए केंद्र सरकार के हवाले कर चुके हैं। इस बीच 2021 में उन्हें तीन साल का पहला एक्सटेंशन मिल गया। उनकाऔरऔर भी

एक समय था, जब चीन से लेकर एशिया के तमाम देशों ने निर्यात के दम पर शानदार आर्थिक विकास हासिल किया। लेकिन जिस तरह यूरोप से लेकर अमेरिका तक सभी विकसित देशों में अर्थव्यवस्था व खपत ठहरी हुई है, उसमें भारत के लिए निर्यात के बलबूते अर्थव्यवस्था को तेज़ गति से बढ़ाना संभव नहीं है। फिर भी घरेलू बाज़ार और खपत पर फोकस करने के बजाय मोदी सरकार और उसके शागिर्द अर्थशास्त्री निर्यात केंद्रित विकास का मंसूबाऔरऔर भी