झूठ और लूट के इस दौर में कोई कोना पकड़कर जी लेना आसान है। हज़ारों-लाखों जिंदगियों को प्रभावित करनेवाला उद्यम खड़ा करना काफी कठिन है। लेकिन सबसे कठिन है झूठ और लूट के तंत्र को बेनकाब करते हुए सच्चे राष्ट्र का निर्माण।और भीऔर भी

डेरिवेटिव सौदों में कैश सेटलमेंट के चलते बाजार कैसे हिल जाता है, इसके लिए मुझे नहीं लगता कि आपको अब किसी और प्रमाण की जरूरत है। जो बाजार पिछले सेटलमेंट में ज़रा-सा झुकने को तैयार नहीं था, वह नए सेटलमेंट के दूसरे ही दिन ताश के पत्तों की तरह ढह गया। निफ्टी गिरने लगा तो गिरते-गिरते अंत में 2.26 फीसदी की गिरावट के साथ 5087.30 पर बंद हुआ। यूं तो अभी और भी बहुत कुछ होना है।औरऔर भी

सिंगल प्रीमियम पॉलिसी को छोड़ दें तो किसी भी जीवन बीमा पॉलिसी में जैसे ही आप प्रीमियम देना बंद करते हैं, आपका बीमा कवर खत्म हो जाता है। कंपनियां अक्सर यूलिप स्कीमों में यह बात छिपाती हैं। एजेंट कहते हैं कि पांच साल के बाद आप प्रीमियम न दें तब भी आपकी पॉलिसी चालू रहेगी। लेकिन तब आपको केवल फंड वैल्यू मिलती है और सम-एश्योर्ड शून्य हो जाता है। कोई संदेह हो तो अपने पॉलिसी दस्तावेज पढ़औरऔर भी

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उनको इतनी मिर्ची लग जाएगी, अंदाजा नहीं था। दुख इस बात का है कि छल-प्रपंच में लगी स्पीक एशिया की तरफदारी ऐसे लोग कर रहे हैं जो बड़ी ईमानदारी व मेहनत से घर-परिवार चलाते हैं। मानस कुमार भले ही स्पीक एशिया के घोटालेबाज टीम से सदस्य हों, लेकिन महेश, हरप्रीत, रंजीत, अजीत, धीरज रावत, नितेश और ‘बेनामी’ झलक तक हमारे-आप जैसे लोग हैं जो अपनी व अपनों की जिंदगी में खुशियां बिखेरना चाहते हैं। झलक की यहऔरऔर भी

यह थोड़े सच और ज्यादा झूठ का जमाना है। हर कोई लूट-खसोट के जरिए पूंजी बटोरने में जुटा है। मौका मिलते ही शिकार पर हाथ साफ। इसलिए सावधान! ठग और जेबकतरे किसी भी भेष में आ सकते हैं।और भीऔर भी

बाजार के 5185 अंक तक नीचे चले जाने के बाद हम तीसरी बार 5600 का स्तर छूने की राह पर हैं। बस, 75 अंक का फासला और बचा है। पहली दो बार हालात थोड़ा परेशान करनेवाले और नकारात्मक थे। लेकिन इस बार कच्चे तेल के अलावा ऐसा कोई बड़ा कारक नहीं दिख रहा। बल्कि बजट का पारित होना, कॉरपोरेट नतीजों का दौर, विश्व अर्थव्यवस्था की बेहतर स्थिति, एफआईआई की तरफ से हो रहे अपग्रेड़, वित्त वर्ष केऔरऔर भी

सच-झूठ के बीच कभी रहा होगा काले-सफेद या अंधेरे उजाले जैसा फासला। लेकिन अब यह फासला इतना कम हो गया है कि कच्ची निगाहें इसे पकड़ नहीं सकतीं। जौहरी की परख और नीर-क्षीर विवेक पाना जरूरी है।और भीऔर भी