विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के निकलने से अपना शेयर बाज़ार डूब रहा है या डुबकी लगा रहा है? जवाब है कि बाज़ार कतई डूब नहीं रहा। वो केवल डुबकी लगा रहा है ताकि फिर और ज़ोर-शोर से ज्यादा ठोस धरातल से उछाल मार सके। यह भी साफ होना चाहिए कि सूचकांकों के गिरने से कंपनियां खुद-ब-खुद सस्ती नहीं हो जातीं और न ही उनके शेयर के भाव घट जाने से उनके बिजनेस और मुनाफे की भावी संभावनाऔरऔर भी

एनएसई का निफ्टी-50 सूचकांक 26 मई 2023 से 26 सितंबर 2024 तक के 16 महीनों में 41.71% छलांग लगाने के बाद पिछले एक महीने में ही 7.76% गिर चुका है। वहीं, एक महीने में चीन का शांघाई कम्पोजिट सूचकांक 9.96% बढ़ चुका है। वजह बड़ी साफ है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) भारतीय शेयर बाज़ार से निवेश निकालकर चीन के शेयर बाजार में लगा रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या अपना बाज़ार एफपीआई के निकलने काऔरऔर भी

यूं तो शेयर बाज़ार की दशा-दिशा और अलग-अलग शेयरों के भाव बहुत सारे कारकों से प्रभावित होते हैं। इनमें घरेलू अर्थव्यवस्था से लेकर वैश्विक अर्थव्यवस्था, खासकर अमेरिका व चीन की स्थिति और उनकी मौद्रिक नीति तक शामिल है। साथ ही एक बड़ा कारक यह है कि बाज़ार या शेयर में धन का प्रवाह या निकासी कैसी चल रही है। इधर माना जा रहा है कि भारत से भागने में लगे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक हमारे केमिकल क्षेत्र मेंऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में निवेश का बेसिक फंडा यह है कि इसमें उन्हीं लोगों को आना चाहिए जिनके पास रोजमर्रा ही नहीं, आकस्मिक जरूरतों का इंतज़ाम करने के बाद इफरात धन बचता हो। जिनकी स्थिति ऐसी नहीं है, उन्हें सबसे पहले रोज़ी-रोज़गार का इंतज़ाम करना चाहिए। इफरात धन का भी वही हिस्सा शेयरों में लगाएं जिसकी कई सालों तक ज़रूरत न हो और वो डूब भी जाए तो सेहत पर फर्क नहीं। हालांकि सोच यही रहे कि बचतऔरऔर भी

शेयर बाज़ार का स्वरूप तो दुनिया भर में कमोबेश एक-सा ही रहता है। डिमांड और सप्लाई के संतुलन में बेचने की आतुरता व झोंक ज्यादा बलवान तो शेयर गिरते हैं और खरीदने की आतुरता व झोंक अधिक तो शेयर बढ़ जाते हैं। लेकिन पिछले 10-12 साल में अपने शेयर बाज़ार की संरचना बदल गई है। पहले रिटेल या आम निवेशकों की स्थिति तिनकों या चिड़िया के टूटे पंखों की तरह थी जो हवा के झोंकों में उड़औरऔर भी

कोई कहे कि आपका धन कुछ महीने या एकाध साल में दोगुना कर देगा तो उस पर यकीन न करें। कोई कहे कि पांच साल में दोगुना कर देंगे तो गिन लीजिए कि इसका सालाना चक्रवृद्धि रिटर्न (सीएजीआर) 14.87% बनता है। सरकार बोले कि उसने दस साल में जीडीपी दोगुना कर दिया है तो समझिए कि सालाना विकास की दर 7.18% ही रही है। धन के बढ़ने के झांसे से बचना बहुत ज़रूरी है। हाल ही मेंऔरऔर भी

पिछले कई सालों से भारतीय निवेशकों के लिए बुलबुलों का दौर चल रहा है। पहले क्रिप्टो करेंसी। इसके बाद स्मॉल-कैप स्टॉक्स पर दांव लगाने का जुनून। फिर रेलवे से लेकर डिफेंस क्षेत्र तक की सरकारी कंपनियों ने गदर काटा। अब निवेशकों में आईपीओ का उन्माद। असल में जब भी शेयर बाज़ार तेज़ी पर होता है तो माहौल को भुनाने के लिए कंपनियां चीलों और मर्चेंट बैंकर उनके सेनानी कौओं की तरह नादान निवेशकों के झुंड पर टूटऔरऔर भी

शेयर बाज़ार सरपट दौड़ रहा है। अच्छी कंपनियों के शेयर पहुंच के बाहर। फिर भी निवेशक खरीदे जा रहे हैं। उन्हें डर है कि कहीं वे तेज़ी के इस दौर से बाहर न रह जाएं। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) भी इधर जमकर खरीदने लगे हैं। एक बात तो तय है कि शेयरों के भाव अंततः उनके पीछे उमड़े धन के प्रवाह से निर्धारित होते हैं। लेकिन लोगबाग तो वही शेयर खरीदते हैं जिनका बढ़ना लगभग तय होताऔरऔर भी

निवेश की दुनिया में अब तक के सफलतम शख्स हैं वारेन बफेट। दस दिन पहले 30 अगस्त 2024 को ही वे 94 साल के हुए हैं। इसके दो दिन पहले उनकी निवेश फर्म बर्कशायर हैथवे का बाज़ार पूंजीकरण एक ट्रिलियन या एक लाख डॉलर तक पहुंच गया। यह रकम कितनी बड़ी है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत जैसी दुनिया की पांचवी अर्थव्यवस्था का आकार अभी 3.7 ट्रिलियन डॉलर का है जिसेऔरऔर भी

दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय। जो दुख में सुमिरन करे, दुख काहे को हो। दुर्दिन में कोई किसी को नहीं पूछता। जीवन और समाज का यह नियम शेयर बाज़ार पर भी लागू होता है। जिन कंपनियों के सितारे बुलंदी पर होते हैं, उनके पीछे हर कोई भागता है। इसलिए उनके शेयर चढ़ते ही चले जाते हैं। वहीं, किसी समय बुलंदी पर रही कंपनी जब किसी मुसीबत या तात्कालिक वजह से गिरने लगतीऔरऔर भी