मनोरंजन का काम है कि रोज की रगड़-धगड़ और खरोचों को सम कर दे, संतुलन बना दे। लेकिन हमारे सपने जब रोज यह काम बखूबी कर देते हैं तो अलग से मनोरंजन की क्या जरूरत? हां, ज्ञान जरूरी है।और भीऔर भी

जो मनोरंजन हमारी पशु-वृत्तियों को पोसता है, वो कभी हमें आगे नहीं ले जा सकता। सार्थक मनोरंजन वही है जो बतौर इंसान हमें ज्यादा संवेदनशील बनाए, एकाकीपन से निकालकर ज्यादा सामाजिक बनाए।और भीऔर भी

मनोरंजन के इतने साधन, फिर भी सांस्कृतिक शून्य? चैनल पर चैनल सर्फ करते जाने का यह कैसा चटोरापन? ओस प्यास नहीं बुझाती, बाजार कभी शून्य नहीं भरता। इसे तो हमें खुद ही भरना होगा।और भीऔर भी