देश के 80% परिवार इतना भी कमा नहीं पाते कि कहीं निवेश कर सकें। बाकी 20% में भी बहुतेरे ऐसे हैं जो जमकर कमाने के बाद भी कुछ बचा नहीं पाते। इनके लिए धन हाथ की मैल नहीं, बल्कि पानी की तरह है जो कोई न कोई जरिया खोजकर बहता रहता है। धन लोगों की आदतों, बर्ताव, भावनाओं, चाहतों, विश्वास, लालच, सुरक्षा व स्वभाव के अनुरूप कहीं टिकता तो कहीं फिसलता रहता है। दुनिया में मूल्यवान निवेशऔरऔर भी

हम शेयर बाज़ार में जो भी सौदे करते हैं, उसके लिए अंततः खुद ज़िम्मेदार होते हैं। इसे स्वीकार करेंगे, तभी अपने तौर-तरीकों और रणनीति को आगे सुधार सकते हैं। लेकिन यहां तो हर कोई सफलता का श्रेय खुद लेता है, जबकि नाकामी के लिए अपने अलावा हर किसी को दोषी ठहरा देता है। इंटरनेट सुस्त था, ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म सही नहीं था, बीवी-बच्चों या कुत्ते ने परेशान कर रखा था, सलाह देनेवाला गलत निकला। दरअसल, हम गलत साबितऔरऔर भी

लोग अक्सर पूछते रहते हैं कि शेयर बाज़ार कहां जाएगा। इनमें नाते-रिश्तेदार से लेकर निवेश व ट्रेडिंग से जुड़े तमाम लोग शामिल हैं। बाज़ार की अनिश्चितता के बीच निश्चितता खोजना सहज मानवीय वृत्ति या कमजोरी है। हर छोटा-बड़ा धंधेबाज़ इसका फायदा उठाता है। ऋधम देसाई बहुत बड़े मार्केट गुरु हैं। कई किताबें लिख चुके हैं। अखबारों में कॉलम लिखते हैं। भारत में मॉरगन स्टैनले जैसे बहुराष्ट्रीय निवेश बैंक के मुख्य इक्विटी रणनीतिकार हैं। उन्होंने हाल ही मेंऔरऔर भी

यह हमारे ही दौर में होना था। एक तरफ शेयर बाज़ार में अल्गो ट्रेडिंग के बाद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या एआई की धमक। दूसरी तरफ ट्रेडिंग व निवेश सिखानेवाला कोई शख्स कह रहा है, “कर्ता कृष्ण और दाता राम हैं। हम तो निमित्र मात्र हैं।” यह कैसा विरोधाभास है? लेकिन यह विचित्र, किंतु सत्य है। ऊपर से भोले-भाले व लालच में फंसे लोगों के लिए डिफाइन येज और नॉयज़लेस चार्ट के ‘प्वॉइंट्स एंड फिगर्स’ जैसे धांसू जुमले। इनकेऔरऔर भी

कंपनियों में सोच-समझकर किया गया निवेश ही लम्बे समय में फलदायी होता है। इसके लिए उनके बारे में जो भी उपलब्ध डेटा है, उसकी तह में पैठना पड़ता है। अच्छी बात यह है कि पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी के नियमों के अनुसार हर लिस्टेड कंपनी को वित्तीय फैसलों से लेकर कॉरपोरेट गवर्नेंस तक की सारी जानकारी स्टॉक एक्सचेंजों पर घोषित करनी होती है। यहां तक कि अचानक क्यों कंपनी के शेयर उछल गए, इस पर भीऔरऔर भी

शेयर बाज़ार का उठना-गिरना कभी भी अर्थव्यवस्था की सेहत का पैमाना नहीं होता। एफआईआई अगर हमारे शेयर बाज़ार में निवेश करते हैं तो सिर्फ इसलिए कि उन्हें यहां से मुनाफा कमाने की गुंजाइश दिखती है। यही नहीं, बाकी जो भी शेयर बाज़ार में धन लगाते हैं, उनका एकमात्र मकसद फटाफट ज्यादा से ज्यादा धन कमाना है। अर्थव्यवस्था का मजबूत या कमज़ोर होना सिर्फ खरीदने-बेचने का माहौल बनाता है, इससे ज्यादा कुछ नहीं। एफआईआई इस मायने में बड़ेऔरऔर भी

पीनेवालों को पीने का बहाना चाहिए। इसी तरह सौदागरो को शेयर बाज़ार में मुनाफा काटने के ट्रिगर चाहिए। बिहार के चुनावों का हमारे शेयर बाज़ार के कोई लेना-देना नहीं। लेकिन इसमें एनडीए की बम्पर जीत के माहौल में बहुतेरे सौदागर 14 नवंबर को दोपहर होते-होते मुनाफा काटकर निकल गए। कुछ ऑपरेटर आगे का माहौल बनाने के लिए बाज़ार बंद होने से ठीक पहले 3 से 3.10 बजे तक 10 मिनट में ही निफ्टी-50 को 0.70% चढ़ा लेऔरऔर भी

शेयर बाज़ार के रिटेल ट्रेडर को न बहुत ज्यादा, न बहुत कम कमाने का लक्ष्य बनाना चाहिए। आज के दौर में ‘साईं इतना दीजिए, जामे कुटुम्ब समाए’ का भी लक्ष्य बनाएं तो घर-परिवार चलाने के लिए महीने में कम से कम एक लाख रुपए तो चाहिए ही चाहिए। एक लाख रुपए के लिए महीने में 20 दिन की ट्रेडिंग में प्रतिदिन 5000 रुपए का औसत निकलता है। यह औसत है क्योंकि व्यवहार में हो सकता है किऔरऔर भी

जब कंपनी के शेयर में निवेश करते हैं तो दोहरा रिस्क उठाते हैं। एक उस कंपनी के बिजनेस का रिस्क और दूसरा खुद शेयर बाज़ार का रिस्क। रिस्क कभी बताकर नहीं आते। आप कितनी भी रिसर्च कर लें, मुद्रास्फीति का हिसाब लगा लें, बिजनेस पर हो रहे नीतियों के प्रभाव का आकलन कर लें, उद्योग में होड़ की जांच-परख कर लें, कंपनी के अतीत को तार-तार समझकर भविष्य का आकलन कर लें। लेकिन अचानक कहीं से दुनियाऔरऔर भी

एकांगी सोच से जीवन में कभी सफलता नहीं मिलती। इसी तरह शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग में भी अगर आप केवल अपनी सोचेंगे तो सफल नहीं होंगे। बराबर समझने की कोशिश करें कि अगर आप खरीदने पर आमादा हैं तो सामने कौन है जो बेचने को आतुर है। दोनों को क्यों ऐसा ही करने में फायदा दिखता है! ध्यान रखें कि बाजार में हमेशा ऐसे लोगों का धन उन जानकार व समझदार लोगों के बैंक खातों में जाताऔरऔर भी