हम में से हर कोई ऐसे बैक्टीरिया का झुंड या बादल लिए चलता है जो आपस में इतना अलग है कि उंगलियों के निशान या पुतलियों की बनावट की तरह हमारी पहचान का माध्यम बन सकता है। यह बात अमेरिका के ओरेगॉन विश्वविद्यालय की एक रिसर्च रिपोर्ट से सामने आई है। इस रिपोर्ट के मुख्य लेखक जेम्स मीडो का कहना है, “हमें उम्मीद थी कि हमें किसी व्यक्ति के आसपास धूल और उसके शरीर व कपड़ों सेऔरऔर भी

भगवान या तो अदृश्य बैक्टीरिया है या वायरस या किसी किस्म की चुम्बकीय शक्ति। तीनों ही स्थितियों में उससे डरने की नहीं, निपटने की जरूरत है। लेकिन अंध आस्था में हम देख नहीं पाते कि भगवान से डराकर दूसरा अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहा है।और भीऔर भी

किसी जमाने में सेठ लोग धर्मशालाएं और कुएं खुदवाकर खैरात का काम करते थे। लेकिन आज कोई कंपनी किसी कल्याण के लिए नहीं, बल्कि शुद्ध रूप से मुनाफा कमाने के लिए बनती है। उसके काम से अगर किसी का भला होता है तो यह उसका बाय-प्रोडक्ट है, असली माल व मकसद नहीं। वो तो ऐन केन प्रकरेण ग्राहक या उपभोक्ता की जेब से नोट लगाने के चक्कर में ही लगी रहती है। बड़े-बड़े एमबीए और विद्वान उसेऔरऔर भी

बैक्टीरिया व वायरस हर तरफ फैले रहते हैं। लेकिन जिनके शरीर का एम्यून सिस्टम या प्रतिरोध तंत्र मजूबत रहता है, उनका ये कुछ नहीं बिगाड़ पाते। हां, उनके भी शरीर को बैक्टीरिया व वायरस से बराबर युद्धरत रहना पड़ता है। इसी तरह कंपनियों को भी बराबर बदलते हालात व समस्याओं से दो-चार होना ही पड़ता है। प्रबंधन तंत्र दुरुस्त हो, नेतृत्व दक्ष हो तो कंपनी हर समस्या के बाद और निखरकर सामने आती है, जबकि प्रबंधन तंत्रऔरऔर भी

खिड़की-दरवाजे सारे बंद। फिर भी छिपे से छिपे कोने तक में धूल आ ही जाती है। धूल न भी दिखे तो लाखों जीवाणु घर किए रहते हैं। इसलिए हर दिन सफाई जरूरी है। हर दिन मनन जरूरी है, अध्ययन जरूरी है।और भीऔर भी

अलीगढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालय (एएमयू) की जैव-प्रौद्योगिकी प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों ने बहु-औषधि प्रतिरोधक एनडीएम-1 सुपरबग का आसानी से पता लगाने की तकनीक विकसित की है। विश्वविद्यालय के जैव-प्रौद्योगिकी विभाग के वैज्ञानिक डॉक्टर असद खान ने गुरुवार को अलीगढ़ में बताया कि वैज्ञानिकों के एक दल ने सुपरबग के तीन रूपांतरों के जीन को अनुक्रमित किया है और अब वे उस जीन के आनुवांशिकीय पहलू का अध्ययन कर रहे हैं। खान ने बताया कि विश्वविद्यालय की जैव-प्रौद्योगिकी प्रयोगशालाऔरऔर भी

हम शरीर में न जाने कितने रोगाणु लिए फिरते हैं। न जाने कितने वाइरस व बैक्टीरिया के कैरियर बने रहते हैं। इनसे निपट लेती है शरीर की प्रतिरोधक क्षमता। लेकिन रुग्ण विचारों से निपटने का जिम्मा हमारा है।और भीऔर भी