हमारे हिंदी समाज के सामने बचाने या निवेश करने से कहीं ज्यादा बड़ी समस्या कमाने की है। एक तो ज्यादातर लोग नौकरीपेशा नहीं हैं तो अपनी व अपने परिवार की हारी-बीमारी का इंतज़ाम खुद करना पड़ता है। आकस्मिकता कभी भी चपत लगा सकती है। तब बड़ी बचत भी कम पड़ जाती है। दूसरे, ईमानदारी से कमाना इतना मुश्किल है कि निवेश को लेकर सोचने की फुरसत नहीं मिलती। ऐसे में तथास्तु लाया है एक और निवेशयोग्य मौका…औरऔर भी

कुछ बातें गले में कंठी बांधकर लटका लेनी चाहिए। जैसे, शेयर बाज़ार का निवेश अनिश्चितता से भरा है। इसमें कुछ भी हो सकता है; और क्या-क्या हो सकता है, इसकी सटीक प्रायिकता तक आप नहीं निकाल सकते। यहां सब कुछ जानने का अहंकार जिस दिन भी आपके माथे पर सवार हुआ, समझें उसी दिन से आपके अंत की शुरुआत हो गई। सरलता व विनम्रता निवेश में सफलता की प्रमुख शर्त है। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

देश की अर्थव्यवस्था के हाल पर भले ही धुंधलका छाया हो, कंपनियों के नतीजे उतने अच्छे नहीं आ रहे हों, फिर भी शेयर बाज़ार कुलांचे मारता जा रहा है। निफ्टी और सेंसेक्स रोज़ नई ऊंचाई पकड़ रहे हैं। ऐसे में कंपनियों को चुनने में ज्यादा ही सावधानी बरतनी होगी। दूसरे, हमें अपने निवेशयोग्य धन का 25-35% ही शेयरों और बाकी 65-75% एफडी या बांडों में लगाना चाहिए। अब तथास्तु में पेश है आज एक और संभावनामय कंपनी…औरऔर भी

कुछ लोग खांची भर कंपनियों के शेयर खरीद लेते हैं। अधिकांश में तगड़ी चपत लगती हैं, फिर भी रिसते घावों को सहेजकर रखे रहते हैं। आखिर हमें कितनी कंपनियों में निवेश करना चाहिए? हालांकि, पोर्टफोलियो प्रबंधन सिद्धांत कहता है कि 40 कंपनियां हों तो उन सबका निजी रिस्क आपस में कटकर खत्म हो जाता है और केवल बाज़ार का रिस्क बचता है। लेकिन हमारे-आप के लिए 15 कंपनियां ही काफी हैं। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

तमाम विशेषज्ञ कहते हैं कि स्मॉल-कैप कंपनियों में निवेश बचकर करना चाहिए क्योंकि वे बहुत रिस्की होती हैं। लेकिन रिस्की होती हैं, तभी तो ज्यादा रिटर्न देती हैं। असल बात है कि कंपनी छोटी हो या बड़ी, अगर उसका बिजनेस दमदार है और आपको उसकी प्रगति पर यकीन है तो उसके शेयर का देर-सबेर बढ़ना तय है। छोटी कंपनी का शेयर ज्यादा बढ़ेगा क्योंकि वही कंपनी एक दिन बड़ी हो जाएगी। तथास्तु में एक और स्मॉल-कैप कंपनी…औरऔर भी

शेयर बाज़ार का निवेश कोई सोना नहीं कि लेकर रख लिया जो मुसीबत में काम आएगा। शेयरों में हम निवेश रिटर्न के लिए करते हैं। जिस भाव पर उसे खरीदते हैं, वो उसकी कीमत और जो मिलता है वो उसका मूल्य। 100 का मूल्य अगर 80 के भाव पर खरीदेंगे तो 25% रिटर्न और 87 में खरीदें तो रिटर्न हुआ 15% से नीचे। इसलिए सही भाव पर निवेश करना ज़रूरी है। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

हेज-फंडों के निवेश की खास स्टाइल है। वे वहां निवेश करते हैं जहां संभावना होती है, मगर किस का ध्यान नहीं होता। अपने बाज़ार में भी ऐसी बहुतेरी लिस्टेड कंपनियां हैं, खासकर बीएसई में। धंधा जमा-जमाया है और बढ़ भी रहा है। फिर भी निवेशकों की नज़र में चढ़ती नहीं। ऐसी कंपनियां उनके लिए बड़ी मुफीद होती हैं जिन पर शेयर बाज़ार के दो-चार साल बंद होने से फर्क नहीं पड़ता। तथास्तु में ऐसी ही एक कंपनी…औरऔर भी

धंधा बढ़ाने के लिए दायरा बढ़ाना पड़ता है और दायरा बढ़ने से रिस्क या अनिश्चितता बढ़ जाती है। लेकिन इस डर से कोई दुबक कर नहीं बैठ जाता। बड़ी-बड़ी कंपनियां भी और ज्यादा बढ़ने के लिए दायरा बढ़ाती हैं। ग्लोबीकरण के बाद तो अपनी आईटी और दवा कंपनियों ने कुछ ज्यादा ही छलांग लगा दी। इससे रिस्क बढ़ने के साथ उनके अवसर भी बढ़ गए हैं। तथास्तु में आज इन्हीं में से एक क्षेत्र की बड़ी कंपनी…औरऔर भी

जंगल को देखना और पेड़ों का न देखना, यह तरीका आम जीवन के लिए सही नहीं होता। निवेश में तो यह कतई कारगर नहीं। मसलन, इस समय एनएसई निफ्टी 23.65 और बीएसई सेंसेक्स 22.45 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है, जबकि बीएसई स्मॉलकैप सूचकांक 64.81 के पी/ई अनुपात पर। इससे कोई भी निष्कर्ष निकाल सकता है कि स्मॉलकैप स्टॉक इस समय बहुत महंगे हैं। तथास्तु में इस बार ऐसी स्मॉलकैप कंपनी जो अभी सस्ती है…औरऔर भी

भारतीय शेयर बाज़ार इस वक्त ऐतिहासिक ऊंचाई पर है। निफ्टी-50 सूचकांक फिलहाल 23.78 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। पिछले बीस सालों में केवल नौ बार यह सूचकांक 22 से ज्यादा पी/ई पर ट्रेड हुआ है और इनमें से पांच बार वो अगले दो सालों में गिर गया है। इसलिए अभी के बाज़ार में हमें बहुत सावधानी से ऐसी कंपनियां चुननी होंगी जिनकी संभावनाओं का निखरना अभी बाकी है। तथास्तु में एक और ऐसी कंपनी…औरऔर भी