निवेश को सार्थक व सफल बनाने की राह में हमारी छह वृत्तियां या भावनाएं घातक साबित होती हैं। डर, लालच, भीड़ की भेड़चाल से बचने के बजाय उसी का अनुसरण, तर्क को ताक पर रखना, ईर्ष्या और अहंकार। हमारे भीतर अहंकार इतना भरा होता है कि मानने को तैयार ही नहीं होते कि हमसे गलती हो सकती है। लेकिन आत्मविश्वास इतना कम कि हमेशा भीड़ या औरों की तरफ देखते हैं। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

निवेश का मतलब बाज़ार या किसी दूसरे को हराकर आगे बढ़ना नहीं है। इसका सीधा-सा मतलब है कि अपने को जीतना, अपनी नकारात्मक वृत्तियों पर विजय हासिल करना। जब हम अपने पर विजय हासिल कर लेते हैं और संपूर्ण इंसान बन जाते हैं, तभी हम सच्चे अर्थों में निवेशक बन पाते हैं। तब हम वर्तमान के यथार्थ धरातल पर खड़े होकर सारे रिस्क को समझते हुए भविष्य की योजना बनाते हैं। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

अगर मैं कहूं कि दस साल में बीएसई सेंसेक्स अभी के 34,924.87 अंक से बढ़ते-बढ़ते 1,00,000 पर पहुंच जाएगा तो आप कहेंगे कि लंबी फेंक रहा है। लेकिन कहूं कि सेंसेक्स की इस बढ़त में सालाना चक्रवृद्धि रिटर्न की दर मात्र 11.09% बनती है तो बोलेंगे कि यह तो कोई ज्यादा नहीं। जी हां, बचत से दौलत बनाने की राह में चक्रवृद्धि दर की महिमा को समझना बहुत ज़रूरी है। अब तथास्तु में आज की संभावनामय कंपनी…औरऔर भी

झूठ ज्यादा नहीं चलता। देर-सबेर उसका बेड़ा गरक हो जाता है। यह नियम निजी जीवन से लेकर राजनीति और बिजनेस तक पर लागू होता है। सत्यम कंप्यूटर्स को उसका झूठ ही ले डूबा। दो साल पहले निर्यात पर निर्भर एक नामी कंपनी का धंधा इसलिए मार खा गया क्योंकि अमेरिकी ग्राहकों को पता चल गया कि वो झूठ बोलती है। सत्य ही अंततः जीतता और चलता है। अब तथास्तु में सच के दम पर खड़ी एक कंपनी…औरऔर भी

अक्टूबर 2007 में चार लाख रुपए से बनाई गई कंपनी फ्लिपकार्ट का मूल्यांकन दस साल बाद 2000 करोड़ डॉलर (करीब 1.35 लाख करोड़ रुपए) हो जाता है, वो भी तब उसका पिछले साल उसका घाटा 68% बढ़कर 8771 करोड़ रुपए हो गया था। यह है नए बिजनेस में छिपी संभावना और उसके मूल्यांकन का एक दृष्टांत। पर, कुछ पुराने बिजनेस हैं जिनका दम हमेशा बना रहता है। आज तथास्तु में सौ साल से ज्यादा पुरानी कंपनी…और भीऔर भी

सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार की कीमत सरकारी कंपनियों को चुकानी पड़ती है। वरना, ऐसा मानने की कोई वजह नहीं कि निजी कंपनियां प्रबंधन के लिहाज़ से बेहतर होती हैं। बल्कि, सरकारी कंपनियां ज्यादा प्रोफेशनल तरीके से चलाई जा सकती हैं। शिक्षा व स्वास्थ्य ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें सरकार को रहना ही चाहिए। कुछ और भी क्षेत्र हैं जहां सरकार की अहम भूमिका है और आगे भी बनी रहेगी। तथास्तु में आज ऐसे ही एक क्षेत्र की कंपनी…औरऔर भी

कंपनियां यूं ही अचानक नहीं डूब जातीं। उनके डूबने का एक अहम कारण है ऋण। कंपनी ऋण के भारी बोझ से दबी है और उसका परिचालन लाभ तय देय ब्याज के दो-तीन गुना से ज्यादा नहीं है तो वह डूब सकती है। इसलिए हमें कभी भी एक गुने से ज्यादा ऋण-इक्विटी अनुपात वाली कंपनी में निवेश नहीं करना चाहिए। साथ ही उसका धंधा अगले 15-20 सालों तक प्रासंगिक बने रहना चाहिए। अब तथास्तु में एक शानदार कंपनी…औरऔर भी

लंबे समय का निवेश भविष्य में फल देता है। पर भविष्य किसी ने नहीं देखा। मुमकिन है कि अभी टनाटन चल रही कंपनी चार-पांच साल बाद बैठ जाए और अपने साथ हमारा धन भी डुबा डाले। यही आशंका शेयर बाज़ार में निवेश का रिस्क है। एफडी में अमूमन मूलधन पर तय ब्याज मिलता रहेगा। लेकिन शेयर बाज़ार में पूरा का पूरा निवेश डूब सकता है। इसलिए इसमें इफरात धन ही लगाएं। अब तथास्तु में एक नई कंपनी…औरऔर भी

इंसान की तरह कंपनियों के भी जीवन में एक दौर बनने और जमने का होता है। इस दौरान उसे बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखने पड़ते हैं। लेकिन इस दौर की समाप्ति के बाद जीवन एक ढर्रा पकड़ लेता है और बेरोकटोक आगे बढ़ता जाता है। जहां इंसान के जीवन का अंत निश्चित है, वहीं कंपनियों का जीवन अनंत है। अनिश्चितता हालांकि कभी खत्म नहीं होती। आज तथास्तु में बनने से लेकर जमने के दौर तक पहुंची एक कंपनी…औरऔर भी

देश में राजनीति की खींचतान और दुनिया में अमेरिका व चीन के बीच व्यापार युद्ध। शेयर बाज़ार में फिलहाल अनिश्चितता छाई है। मुमकिन है कि एक कदम आगे, दो कदम पीछे चलता बाज़ार अगले कुछ महीनों में काफी गिर जाए। लेकिन लंबे समय के निवेशकों को इस पर दुखी होने के बजाय खुश होना चाहिए क्योंकि ज़रूरत से ज्यादा चढ़े हुए अच्छी कंपनियों के शेयर सुरक्षित रेंज में आ जाएंगे। अब तथास्तु में एक और जानदार कंपनी…औरऔर भी