भारत का जीडीपी बीते वित्त वर्ष 2020-21 में 145.69 लाख करोड़ रुपए से 7.3% घटकर 135.13 लाख करोड़ रुपए पर आ गया। पिछले सौ सालों में हमारी अर्थव्यवस्था पहली बार बढ़ने के बजाय सिकुड़ी है। लेकिन इसी दौरान हमारा शेयर बाज़ार 68% बढ़कर ऐतिहासिक चोटी पर पहुंच गया। बीएसई में लिस्टेड लगभग 3500 कंपनियों का मूल्य या बाज़ार पूंजीकरण इस वक्त भारत के जीडीपी के डेढ़ गुना से ज्यादा 227.20 लाख करोड़ रुपए है। ऐसे में रिजर्वऔरऔर भी

देश में 30 अप्रैल 2021 तक शेयर बाज़ार में निवेश के लिए ज़रूरी 5.69 करोड़ डीमैट एकाउंट खुल चुके हैं। इनमें से करीब 1.40 करोड़ एकाउंट बीते वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान खुले, जब देश कोरोना की पहली लहर की चपेट में था। जब सब कुछ सामान्य था, तब पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में लगभग 49 लाख और उससे पहले 2018-19 में करीब 40 लाख डीमैट एकाउंट ही खुले थे। आर्थिक सुस्ती व लॉकडाउन के दौरान डीमैटऔरऔर भी

कंपनी का बिजनेस अच्छा चल रहा है या नहीं, इसका बड़ा साफ पैमाना होता है उसका लाभांश देने का ट्रैक रिकॉर्ड। लाभ बढ़ाकर दिखाने में कंपनियां उलटफेर कर सकती हैं। इसलिए इस पर पक्का भरोसा नहीं किया जा सकता है। लेकिन लाभांश देने में वे कलाकारी नहीं कर सकतीं। इससे शेयरधारकों के प्रति कंपनी की संवेदनशीलता और प्रबंधन की प्रतिबद्धता का भी पता चलता है। शेयर बाज़ार दबा हो, कंपनी को कम भाव मिल रहा हो तोऔरऔर भी

लम्बे निवेश के बारे में तरह-तरह की धारणाएं हैं। कुछ विशेषज्ञ पांच-दस साल तो कुछ ‘खरीदो व भूल जाओ’ की बात करते हैं। लेकिन हर धारणा समय से बंधी है। समय के साथ उसकी मार या उपयोगिता मिटती रहती है। मसलन, आज के दौर में जब अमेरिका, यूरोप व जापान जैसे विकसित देशों का बेहद सस्ता धन भारत जैसे उभरते देशों के शेयर बाज़ार की तरफ अंधाधुंध बह रहा है, तब बड़ी से लेकर छोटी कंपनियों तकऔरऔर भी

अर्थव्यवस्था और रोज़ी-रोज़गार की हालत खराब। फिर भी कुलांचे मार रहा है शेयर बाज़ार! इसे देखकर बहुतेरे लोग शेयर बाज़ार में धन लगाने को लपकते जा रहे हैं। लेकिन किन शेयरों में धन लगाएं, यह समझ में नहीं आता। उन्हें नहीं पता कि अब वे सीधे-सीधे समूचे शेयर बाज़ार की यूनिटें खरीद सकते हैं। बाज़ार में निफ्टी जैसे सूचकांकों पर आधार इंडेक्स फंड हैं जिनमें वे सीधे अपने डीमैट खाते से निवेश कर सकते हैं। इनमें रिटर्नऔरऔर भी

कुछ लोगों के पास बहुत सारा सस्ता धन आता जा रहा हो और आर्थिक गतिविधियां ठहरी पड़ी हों तो वह धन उत्पादक कामों में लगने के बजाय सटोरिया गतिविधियां में लग जाता है। अमेरिका, यूरोप व जापान जैसे देशों से निकलता ऐसा लगभग शून्य ब्याज वाला धन पिछले दिनों बिट-कॉयन जैसी क्रिप्टो मुद्राओं में सट्टेबाज़ी करने लगा। वहां एकबारगी झटका लगा तो कोरोना की दूसरी लहर के बावजूद वह पलटकर दोबारा भारत जैसे शेयर बाज़ारों की तरफऔरऔर भी

कोरोना वायरस ने साल भर से हड़कम्प मचा रखा है। लेकिन बहुत हुआ तो वायरस कई म्यूटैंट बनाने के बावजूद साल-दो साल में खत्म हो जाएगा। नाकारा व संवेदनहीन सरकार हुई तो देश में ज्यादा लोग, ज्यादा तकलीफ से मरेंगे और अर्थव्यवस्था को ज्यादा चोट लगेगी। वहीं, अच्छी व संवेदनशील सरकार हुई तो कम लोग कम तकलीफ से मरेंगे और अर्थव्यवस्था को कम चोट पहुंचेगी। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटेगी। अच्छीऔरऔर भी

जिन्होंने शेयर बाज़ार में पांच-दस साल के लिए धन लगाया है, उन्हें परेशान होने की ज़रूरत नहीं। लेकिन जो खटाखट मुनाफा बटारने के लिए बाज़ार में कूदे हैं, उन्हें फिलहाल झटपट निकल लेना चाहिए। दरअसल, अपने शेयर बाज़ार का गुब्बारा इतना फूल चुका है कि कभी भी फट सकता है। अर्थव्यवस्था रसातल तो शेयर बाज़ार सातवें आसमान पर! इसमें भी जबरन चढ़ाई गई बर्जर किंग इंडिया, अडानी ग्रीन एनर्जी और रामदेव की 15 कटोरी दाल, 17 गिलासऔरऔर भी

शेयर बाज़ार तेज़ी पर हो तो झूमकर आईपीओ आते हैं। फिलहाल यही स्थिति है। मगर सावधान रहें। हर चमकनेवाली चीज़ सोना नहीं होती। फार्मास्युटिकल केमिकल्स बनानेवाली 32 साल पुरानी एक कंपनी का आईपीओ बीते 21 सितंबर को आया। 340 रुपए पर जारी शेयर पहली अक्टूबर को लिस्ट हुआ तो दोगुने से ज्यादा 744 रुपए तक चला गया। लेकिन फिर गिरने लगा तो बीच-बीच में थोड़ा उठने के बाद रपटता ही जा रहा है। पता चला कि कंपनीऔरऔर भी

भयंकर अनिश्चितता और अवसरों से भरा वित्त वर्ष 2020-21 खत्म हुआ। 1 अप्रैल 2020 को निफ्टी 8253.80 और 26 मार्च 2021 को 14,507.30 पर। साल भर में 75.76% का जबरदस्त रिटर्न। यही है अनिश्चितता के बीच अवसर का कमाल! लेकिन अनिश्चितता बढ़ते ही अफरातफरी और घबराहट फैल जाती है। तब आम लोग नहीं, बल्कि खजाने पर निश्चिंत बैठे शांत लोग ही अवसर देख पाते हैं। वैसे, इस कॉलम में अप्रैल 2020 के चार रविवार को सुझाए शेयरऔरऔर भी