क्या ऐसा हो सकता है कि बराबर कंपनियां छांटकर निवेश करने के बजाय हम एक बार ही 20-30 कंपनियों में निवेश कर दें और भूल जाएं। दस-बीस साल तक बराबर लाभांश पाते रहें और जब ज़रूरत पड़े तो 15-16% की सालाना चक्रवृद्धि दर के रिटर्न के साथ अपना धन निकालकर इस्तेमाल कर लें। लाभांश का चक्कर छोड़ दें तो हम निफ्टी-50 के ईटीएफ में एसआईपी से यह काम कर सकते हैं। साथ ही कुछ कंपनियों का दमखमऔरऔर भी

जो बड़ा है, वो अच्छा हो, यह कतई ज़रूरी नहीं। यह जीवन से लेकर बिजनेस तक के लिए सच है। लेकिन बिजनेस का सच यह भी है कि जो अच्छी व शानदार कंपनियां हैं, वे ज़रूरी नहीं कि बड़ी कंपनियां हों। खासकर, भारत जैसे देश की हकीकत यह है कि यहां रोज़गार से लेकर निर्यात तक में सबसे बड़ा योगदान छोटी व औसत या मध्यम आकार की कंपनियों का है। निवेश के लिहाज़ से भी छोटी कंपनियांऔरऔर भी

भारत दो साल पहले ही दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। आईएमएफ का कहना है कि चार साल बाद 2027 में वह जापान व जर्मनी को पीछे छोड़ अमेरिका व चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। आगे की यात्रा यकीनन कठिन होगी। कारण, जापान व जर्मनी की अर्थव्यवस्था हमसे ज्यादा बड़ी नहीं है। लेकिन चीन की अर्थव्यवस्था हमसे पांच गुनी बड़ी है। हमारा जीडीपी अभी 3.2 लाख करोड़ याऔरऔर भी

माल उतना ही और वहीं व उसी को बेचो, जहां से पेमेंट जल्दी से जल्दी मिल जाए। पेमेंट में देरी हो गई तो धंधा चौपट हो सकता है। यह सब्जी व किराना स्टोर से लेकर छोटे व बड़े बिजनेस तक का मंत्र है। हम अक्सर कंपनी की लाभप्रदता परखने के लिए इतना भर देखते हैं कि कहीं वह कर्ज के बोझ तले दबी तो नहीं और उसका ऋण-इक्विटी अनुपात हर हाल में एक से कम हो। लेकिनऔरऔर भी

आप शेयर बाज़ार में निवेश करने जाएं तो साफ गिन लें कि कितना धन डुबाने का जोखिम ले रहे हैं। मुमकिन है कि किसी कंपनी में आपने जितना धन लगाया, वह सारा का सारा डूब जाए। जब जेब और मन इसके लिए तैयार हो, तभी निवेश करें। नहीं तो बेहतर होगा कि सरकार के बॉन्ड, बैंकों की एफडी या पीपीएफ वगैरह में अपना धन पार्क कर दें, जहां कम से कम मूलधन तो सुरक्षित बना हुआ दिखेगा।औरऔर भी

शेयर बाज़ार ऐतिहासिक शिखर पर। हर दिन नए से नए शिखर की ओर। यह आम निवेशकों और रिटेल ट्रेडरों के लिए बड़ा खतरनाक दौर है। ज़रा-सा भी अच्छी कंपनी है तो उसके शेयर 52 हफ्ते के शिखर के एकदम करीब हैं या नया शिखर पकड़ते जा रहे हैं। पहले ट्रेडर ऐसी कंपनियों में स्विंग या मोमेंटम ट्रेड से कुछ दिनों में 8-10% कमा सकता था। लेकिन अब उनकी कमाई 2-4% तक सिमट गई है। वो भी अनिश्चित,औरऔर भी

शेयरों में निवेश के पांच बुनियादी नियम हैं। कंपनी को खुद ठोंक-बजाकर देखने के बाद ही निवेश करें। ऐसी ही कंपनी चुनें जो अपने धंधे और लाभप्रदता को लम्बे समय तक बनाए रख सके। ऐसी दमखम वाली कंपनी के भी शेयर तभी खरीदें, जब वे कम भाव में मिल रहे हों क्योंकि ज्यादा भाव में खरीदा तो अच्छा रिटर्न नहीं मिल सकता। निवेश हमेशा लम्बे समय के लिए करें क्योंकि छोटी अवधि की ट्रेडिंग अक्सर घाटे काऔरऔर भी

भारतीय कृषि मानसून पर बहुत ज्यादा निर्भर है। मानसून में हुई शुरुआती देरी से खरीफ की फसलों की बोवाई लगभग 5% घट गई है। कृषि मंत्रालय के मुताबिक 23 जून तक देश में 129.52 लाख हेक्टेयर में बोवाई हुई है, जबकि पिछले साल यह रकबा 135.64 लाख हेक्टेयर का था। महाराष्ट्र में कपास का रकबा घटने की खबरें आ रही हैं। अल निनो का नकारात्मक असर धान, गन्ना, मोटे अनाज व दालों तक पर पड़ना तय है।औरऔर भी

बड़ी-बड़ी बातें करने या लम्बी फेंकनेवाला यकीनन शेयर बाजार के निवेश में सफल नहीं होता। यहां वही सफल होता है जो जानता है कि वह शेयरों के भाव को प्रभावित करनेवाले सभी कारकों को नहीं जान सकता। दूसरे, वह यह भी जानता है कि जिस कंपनी में वो निवेश करने जा रहा है, उसका धंधा क्या है, उसमें कितना दम व संभावना है और कंपनी प्रबंधन ने अब तक इस धंधे में कितनी धाक जमायी है। बिजनेसऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग भी एक तरह का निवेश है और निवेश भी एक तरह की ट्रेडिंग। निवेश का मकसद भी अंततः मुनाफा कमाना होता है तो वह भी लम्बे समय की ट्रेडिंग है और ट्रेडिंग छोटे समय का निवेश। ट्रेडिंग में अब तक की सफलतम रणनीति है मोमेंटम ट्रेडिंग। जो स्टॉक्स लगातार बढ़ रहे हैं और बढ़ते ही जा रहे हैं, उन्हें हर डुबकी पर खरीद लेना काफी लाभ का सौदा होता हैं। अब तो निवेशऔरऔर भी