शेयर बाज़ार की चाल कभी इतनी सीधी-सच्ची नहीं होती कि उस पर आंख मूंदकर सवारी की जा सके। अजीब-सा पेंच है कि अक्सर अच्छे नतीजे घोषित करनेवाली कंपनियों के शेयर गिर जाते हैं, जबकि खराब नतीजे पेश करनेवाली कंपनियों के शेयर चढ़ जाते हैं। दिक्कत यह है कि हम भूल जाते हैं कि शेयरों के भाव और मूल्य, दो अलग-अलग चीजें हैं। लम्बे समय में भाव कंपनी के शेयर के मूल्य या अंतर्निहित मूल्य का पीछा करतेऔरऔर भी

शेयर बाज़ार हो या वित्तीय बाज़ार का कोई भी निवेश, वो किसी निर्वात में नहीं होता। हर निवेश का एक संदर्भ और माहौल होता है। इधर साल भर पहले मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए अमेरिका से ब्याज दरें बढ़ाने का सिलसिला जब से शुरू हुआ, तब से सारी दुनिया के वित्तीय समीकरण बदल गए हैं। अमेरिका में तो ब्याज दरों के शून्य से 5% पहुंचने का ही नतीजा है कि बैंकों के सारे बॉन्ड पोर्टफोलियो कीऔरऔर भी

किसी भी कंपनी में निवेश करने से पहले उसकी परख और कामकाज का विश्लेषण ज़रूरी है। दिक्कत यह है कि यह ज़रूरी काम कायदे से कैसे किया जाए? कंपनी के अतीत का विश्लेषण हम कर सकते हैं। उसके अब तक के वित्तीय प्रदर्शन की तहकीकात कर सकते हैं। उद्योग व बाज़ार की तुलना में उसके शेयर का मूल्यांकन कर सकते हैं। ये पहलू मात्रात्मक विश्लेषण से साफ हो जाते हैं। इनमें कंपनी पर चढ़े ऋण से जुड़ाऔरऔर भी

पूरे पांच हफ्ते के अंतराल के बाद थोड़ा-सा स्वस्थ होते ही यह कॉलम लेकर एक बार फिर आपकी सेवा में हाज़िर हूं। कोशिश करता हूं कि हर हफ्ते निवेश लायक एक नई लिस्टेड कंपनी पेश कर दूं। लेकिन शेयर बाज़ार में तो ढाई हज़ार से ज्यादा कंपनियां लिस्टेड हैं। आप हमारी बताई हर कंपनी में निवेश करने लगें तो चकरघिन्नी बन जाएंगे। दरअसल, हमें समझना होगा कि बाज़ार में भांति-भांति के लोग निवेशकों को फंसाने के लिएऔरऔर भी

हमें शेयर बाज़ार में निवेश करने से पहले भलीभांति समझ लेना चाहिए कि कंपनियां निवेशकों के स्वामित्व वाली सामाजिक इकाई हैं जिनका मकसद है अपने निवेशकों द्वारा लगाई गई पूंजी पर रिटर्न को अधिक से अधिक करते जाना। रिटर्न का यूं बढ़ना कंपनियों के शेयर के भावों में झलकता है, भले ही वे कंपनियां लिस्टेड हों या न हों। हां, लिस्टेड कंपनियों में सहूलियत यह होती है कि उनके शेयर के भाव हर दिन स्टॉक एक्सचेंज मेंऔरऔर भी

कंपनी का अतीत देखा-परखा जा सकता है। तमाम टूल्स व फॉर्मूले भी हैं जिनसे उसका भविष्य आंका जा सकता है। यह काम कोई दूसरा आपके लिए कर सकता है। लेकिन तीन पहलू ऐसे हैं जिन्हें निवेश करने से पहले खुद आपको समझना पड़ता है। पहला यह कि कंपनी का बिजनेस मॉडल क्या है और उसमें विकास की कितनी गुंजाइश है? दूसरा यह कि उसका प्रबंधन कैसा है? प्रबंधन का काबिल होना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि यह भीऔरऔर भी

बड़े व नामी निवेशक छोटी-छोटी कंपनियों को पकड़ते हैं। जैसे, आकाश कचोलिया देश के सफलतम निवेशकों में गिने जाते हैं। उन्हें मल्टी-बैगर यानी कई गुना बढ़नेवाले स्टॉक्स को पकड़ने का महारथी माना जाता है। उन्होंने शेयर बाज़ार में निवेश से करीब 1700 करोड़ रुपए की दौलत बनाई है। उनके निवेश पोर्टफोलियो की पांच शीर्ष कंपनियां हैं – सफारी इंडस्ट्रीज़, शैली इंजीनियरिंग प्लास्टिक्स, एनआईआईटी, फिलिप्स कार्बन ब्लैंक और रेनबो चिल्ड्रेन्स मेडिकेयर। इनमें से सफारी और एनआईआईटी के अलावाऔरऔर भी

नए साल का पहला दिन आप सभी को बहुत-बहुत मुबारक। रविवार का दिन, फुरसता का दिन। उस सूरज का दिन जो हर तरफ उजाला ही नहीं, बल्कि हमारी समूची सृष्टि में जीवन भरता है। मनुष्य इस जीवन को बेहतर से बेहतर टेक्नोलॉज़ी और अभिनव प्रयासों से और सुंदर बनाता रहता है। लेकिन निवेश की दुनिया में अनुभव का कोई तोड़ नहीं। ज़ोमैटो, पेटीएम और पॉलिसी बाज़ार जैसे स्टार्ट-अप घाटे में हैं और जिस नौजवान पीढ़ी ने लपकऔरऔर भी

किसी कंपनी के शेयर में किया गया निवेश साल-दर-साल अगर बैंक एफडी या सरकारी बॉन्ड से ज्यादा रिटर्न दे रहा है तो मतलब कि आपने सही वक्त पर सही कंपनी पकड़ ली। लेकिन न तो हमेशा ऐसा होता है और न ही सही कंपनी चुनने का कोई अचूक सूत्र है। यकीनन, हमें हर कोण से देखने-परखने के बाद कंपनी चुननी चाहिए। लेकिन पोर्टफोलियो में कुछ कंपनियां शानदार रिटर्न देती हैं तो कुछ फिसड्डी और घाटे का सबबऔरऔर भी

दुनिया में निवेश के भांति-भांति के तरीके और शैलियां हैं। लेकिन अच्छी व संभावनामय कंपनियों के शेयर समय रहते कम भाव पर खरीद लेने की शैली ‘वैल्यू इन्वेस्टिंग’ का कोई तोड़ नहीं है। यह बात ‘अर्थकाम’ खुद करीब साढ़े बारह साल के अपने अनुभव से दावे के साथ कह सकता है। मसलन, हमने अपने लॉन्च के करीब साल भर बाद 18 अप्रैल 2011 को इसी कॉलम में (तब यह कॉलम सबके लिए खुला था) एक स्मॉल-कैप कंपनीऔरऔर भी