किसी इंसान की बातों से तय नहीं होता कि वे दमदार हैं या कोरी बकवास। इसी तरह किसी राजनीतिक दल के घोषणापत्र या नारों से नहीं, बल्कि उसकी आंतरिक संरचना से तय होता है कि वह सचमुच अपने कहे पर अमल कर पाएगी या नहीं।और भीऔर भी

गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता अण्णा हज़ारे के पक्ष ने अपने जन लोकपाल विधेयक में फोन टैप करने, अनुरोध पत्र जारी करने और भ्रष्टाचार कम करने के लिए कामकाज के तरीकों में बदलाव लाने की सिफारिशें करने संबंधी अधिकार लोकपाल को देने का जिक्र किया है जबकि सरकार के मसौदे में ऐसे किसी भी प्रावधान का जिक्र नहीं है। दोनों मसौदों पर विचार के लिए सरकार ने 3 जुलाई को सर्वदलीय बैठक बुलाई है। हज़ारे पक्ष ने लोकपाल विधेयकऔरऔर भी

एक तरफ लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए बनी संयुक्त समिति में बहस जारी है, दूसरी तऱफ केंद्र सरकार ने इससे जुड़े कई विवादास्पद मुद्ददों पर सीधे राज्‍य सरकारों और राजनीतिक दलों की राय मांग डाली है। इस सिलसिले में संयुक्‍त मसौदा समिति के अध्‍यक्ष वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की तरफ से एक खत भेजा गया है। मूल पत्र अंग्रेजी में है। सरकार की तरफ से किया गया उसका अनुवाद यहा पेंश है… उच्‍च पदोंऔरऔर भी

चुनाव भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा स्रोत बन गया है – यह कहना है खुद देश के मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी का। हालांकि यह सच देश का हर नागरिक जानता है। लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त के मुंह से इस बात के निकलने का अलग महत्व है। वैसे यह उनकी विवशता को भी दिखाता है कि सब कुछ जानते हुए की वे कुछ नहीं कर सकते। मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस वाई कुरैशी ने शुक्रवार को राजधानी दिल्लीऔरऔर भी

देश से भ्रष्टाचार मिटाने के दो सूत्र – एक, राजनीतिक दलों की फंडिंग की पारदर्शी व्यवस्था हो। दो, चुनावों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली अपनाई जाए ताकि व्यक्ति के बजाय लोग पार्टी को तरजीह दें।और भीऔर भी