दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय। जो दुख में सुमिरन करे, दुख काहे को हो। दुर्दिन में कोई किसी को नहीं पूछता। जीवन और समाज का यह नियम शेयर बाज़ार पर भी लागू होता है। जिन कंपनियों के सितारे बुलंदी पर होते हैं, उनके पीछे हर कोई भागता है। इसलिए उनके शेयर चढ़ते ही चले जाते हैं। वहीं, किसी समय बुलंदी पर रही कंपनी जब किसी मुसीबत या तात्कालिक वजह से गिरने लगतीऔरऔर भी

आर्थिक विकास को समझना और निवेश करना है तो हमें नॉमिनल और रीयल या मौजूदा मूल्यों पर दिख रहे ऊपर-ऊपर के आंकड़े और स्थिर मूल्यों पर निकाले गए असली आंकड़े का अंतर साफ समझना होगा। नहीं तो कोई भी हमें चरका दे देगा। जैसे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार 15 अगस्त को लालकिले से बखाना कि हम प्रति व्यक्ति आय को दोगुना करने में सफल हुए हैं। लेकिन नहीं बताया कि किसने साल में और सतहीऔरऔर भी

शेयर बाज़ार का निवेश उनके लिए नहीं जो तुरत-फुरत कुछ पाना चाहते हैं। निवेश के लिए लम्बे समय की सोच की दरकार है। उसी से मन की शांति और धन की समृद्धि मिलती है। जो शेयर बाज़ार से फटाफट कुछ पाना चाहते हैं, उनके लिए एकाध दिन से लेकर एक-दो महीने की ट्रेडिंग का रास्ता है। लेकिन उन्हें ट्रेडिंग की बेचैनी व तनाव के ऊपर धन डूबने का रिस्क भी उठाने को तैयार रहना चाहिए। ट्रेडिंग सेऔरऔर भी

शेयर बाज़ार बड़ा समदर्शी होता है। उसे धन के प्रवाह से मतलब है। वो धन काला है या सफेद, उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे इससे भी फर्क नहीं पड़ता कि कुछ लोगों के पास इफरात धन आ रहा है, जबकि ज्यादातर लोग बदहाल होते जा रहे हैं। इधर सरकार जहां कहीं भी गुंजाइश है, वहां से जमकर टैक्स वसूल रही है। साथ ही देश के नाम पर ऋण लेने में कोई कोताही नहीं बरत रही।औरऔर भी

निफ्टी-50 सूचकांक दो दिन पहले पहली बार 25,000 अंक के पार चला गया। क्या इसका वास्ता जीडीपी के बढ़ते आंकड़ों से है? हो सकता है। लेकिन इसका बड़ा वास्ता बाज़ार में सट्टेबाज़ी की नीयत से आए धन के भारी प्रवाह से भी है। कारण, जीडीपी के बढ़ते आंकडों के पीछे छिपी हकीकत यह है कि आमजन की खपत पर टिकी कंपनियों का धंधा ठहरा पड़ा है। जीडीपी की चमक ऐसी कंपनियों के लिए फीकी है। सरकारी कृपा,औरऔर भी

अफसोस की बात है कि अपने यहां 2.5 लाख रुपए की इनकम टैक्स मुक्त सीमा 2014-15 से जस की तस चली आ रही है, जबकि तब से अब तक दस साल में मुद्रास्फीति की औसत दर 5.50% रही है। इस हिसाब से तब के 2.5 लाख रुपए आज के 4.27 लाख रुपए हो चुके हैं। लेकिन सरकार के लिए धन के समय मूल्य या टाइम वैल्यू ऑफ मनी का कोई मतलब नहीं। वो महंगाई को डिस्काउंट किएऔरऔर भी

जब तय कर लिया कि आकस्मिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए निकाली गई रकम के बाद बची बचत का कितना हिस्सा बैंक एफडी, सरकारी बॉन्ड, रीयल एस्टेट व सोने वगैरह में लगाने के बाद शेयर बाज़ार में लगाना है, उसके बाद सबसे बड़ी चुनौती होती है कि किस कंपनी को लें और किसको झटक दें। इससे निपटने का तरीका यह है कि आठ-दस मानक बना लिये। जो कंपनी इन पर खरी उतरे, उसके शेयर स्मॉल-कैप, मिड-कैपऔरऔर भी

चींटी तक बराबर बरसात के लिए बचाकर रखती है तो इंसानों की क्या बात! बचाना हमारी फितरत है। लेकिन हम किसी निर्जन जंगल में नहीं, बल्कि देश में रह रहे हैं, जिसमें हर सामाजिक लेन-देन के लिए मुद्रा है। मुद्रा है तो मुद्रास्फीति भी है जिस पर हमारा कोई वश नहीं। इसलिए चाहे-अनचाहे अपनी बचत को मुद्रास्फीति से बचाना हमारी ज़िम्मेदारी बन जाती है। ज्यादा झंझट नहीं पालना तो बैंक एफडी और सरकारी या रिजर्व बैंक केऔरऔर भी

अपने प्रमुखतम स्टॉक एक्सचेंज एनएसई का नारा है सोच कर, समझ कर, इन्वेस्ट कर। यह अलग बात है कि वो सोच-समझकर इन्वेस्ट करने का कोई टूल उपलब्ध नहीं कराता। वो यह भी नहीं बताता कि शेयर बाज़ार में इन्वेस्ट करने के लिए सोचने-समझने के साथ ही बराबर सतर्क रहने की भी ज़रूरत है। दुनिया हर पल बदलती रहती है, भले ही हमें दिखे या न दिखे। लेकिन शेयर बाज़ार तो हर पल बदलता ही नहीं, दिखता भीऔरऔर भी

भारत जैसी संभावनाओं से भरी अर्थव्यवस्था बराबर बढ़ती ही रहती है तो शेयर बाज़ार भी बराबर नई ऊंचाइयां छूता रहता है। लेकिन तेज़ी के हर शिखर के दौरान ऊपर-ऊपर तैरते झाग के नीचे तलहटी में कुछ ऐसी कंपनियां होती हैं जो भरपूर संभावनाओं के बावजूद भीड़ और भेड़चाल से दूर पड़ी रहती हैं। करीब छह साल पहले रविवार, 29 जुलाई 2018 की बात है। तब भी दो दिन पहले शुक्रवार को सेंसेक्स और निफ्टी ने नया शिखरऔरऔर भी