वस्त्राय पुत्राय मातरो वयन्ति
2010-03-30
यह विनोबा भावे द्वारा ऋगवेद के अध्ययन के बाद लिखे गए ऋगवेद सार: का एक मंत्र है। इसका शाब्दिक अर्थ है – लड़के के लिए माताएं वस्त्र बुन रही हैं। पूरी व्याख्या विनोबा जी ने कुछ इस तरह लिखी है। प्राचीन काल में पुरुष खेती का काम करता था और स्त्री घर में बुनती थी। आज पुरुष बुनते हैं और स्त्रियां कांडी भरने का काम करती हैं। यानी, स्त्रियों का स्वतंत्र धंधा चला गया। इस तरह एक-एकऔरऔर भी