निर्मोही, निरपेक्ष, निडर
हम अक्सर अतीत के प्रति मोह, वर्तमान के प्रति खीझ और भविष्य के प्रति डर से भरे रहते हैं। कल, आज और कल को साधना जरूरी है। लेकिन उसके लिए हमें निर्मोही, निरपेक्ष और निडर बनना होगा।और भीऔर भी
हम अक्सर अतीत के प्रति मोह, वर्तमान के प्रति खीझ और भविष्य के प्रति डर से भरे रहते हैं। कल, आज और कल को साधना जरूरी है। लेकिन उसके लिए हमें निर्मोही, निरपेक्ष और निडर बनना होगा।और भीऔर भी
अतीत से चिपके रहे तो वर्तमान को ठीक से नहीं जी सकते। अतीत को ठुकरा दिया, तब भी वर्तमान को ठीक से नहीं जी सकते क्योंकि अतीत ही हमें अपने कर्मों के सही-गलत होने का भान कराता है।और भीऔर भी
हम अमूमन यही माने रहते हैं कि हम तो चलते रहे, जबकि दूसरे ठहरे रहे। पर ये कैसे संभव है? एक पांव वर्तमान और दूसरा अतीत में रखकर रिश्ते नहीं चल सकते हैं। उन्हें समय के साथ लाना जरूरी है।और भीऔर भी
जब वर्तमान बेकार और भविष्य अनिश्चित हो, तभी कोई अतीतजीवी बनता है। वरना, किसी को इतनी फुरसत कहां कि गुजरे कल को महिमामंडित करता फिरे! अतीतजीविता मर्ज का लक्षण है, निदान नहीं।और भीऔर भी
भारत अगर ऋषियों-मुनियों का देश रहा है तो एकबारगी यह उनसे रीता नहीं हो सकता। दिक्कत यह है कि हम भागकर अतीत की वादियों में यूं गुम हो जाते हैं कि वर्तमान को ठीक से देख ही नहीं पाते।और भीऔर भी
अंधेरे, सुनसान, बियावान सफर के दौरान पीछे से पुकारने वाली आवाजें भुतहा ही नहीं होतीं। कभी-कभी अतीत आपके कंधे पर हाथ रखकर पूछना चाहता है – भाई! कैसे हो, सफर में कोई तकलीफ तो नहीं।और भीऔर भी
आज के जमाने में अतीत की धौंस का कोई मतलब नहीं है। आप क्या थे या क्या रह चुके हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मायने यह रखता है कि आप अभी क्या हैं और आगे क्या हो सकते हैं।और भीऔर भी
भूत, वर्तमान और भविष्य की अनुभूति के बीच सही संतुलन जरूरी है। अतीत मिट जाए तो हम शब्दहीन, वर्तमान खो जाए तो अवसादग्रस्त और भविष्य न दिखे तो निर्जीव मशीन बन जाते हैं।और भीऔर भी
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