नए वित्त वर्ष 2012-13 का आम बजट शुक्रवार, 16 मार्च को पेश होगा। उसके एक दिन पहले 15 मार्च को दो चीजें बजट का माहौल व पृष्ठभूमि बनाएंगी। एक तो आर्थिक समीक्षा और दो, रिजर्व बैंक की मध्य-तिमाही मौद्रिक नीति समीक्षा। पूरी उम्मीद है कि उस दिन रिजर्व बैंक नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) को 5.50 फसीदी से आधा फीसदी घटाकर 5 फीसदी कर देगा। लेकिन सारा कुछ रिजर्व बैंक के गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव की सोच से तय होगा क्योंकि वे सबकी सुनने के बाद फैसला अपने विवेक से ही करते हैं।
यह बात साफ हुई है 24 जनवरी की मौद्रिक नीति समीक्षा के सिलसिले में 18 जनवरी को हुई टेक्निकल एडवाडरी कमेटी (टीएसी) की बैठक के ब्योरे से। रिजर्व बैंक ने इस बैठक के मिनट्स शुक्रवार को जारी किए। बता दें कि मौद्रिक नीति पर सलाह देने के लिए बनी टीएसी में कुल 17 सदस्य हैं। इसमें रिजर्व बैंक के गवर्नर, उसके चार डिप्टी गवर्नर, कार्यपालक निदेशक दीपक मोहंती व मौद्रिक नीति विभाग के सलाहकार प्रभारी जनक राज और तीन अन्य अधिकारी बी एम मिश्रा, प्रदीप मारिया व अमिताभ सरदार शामिल हैं। इसके अलावा सात सदस्य रिजर्व बैंक से बाहर के हैं जिनमें वाई एच मालेगाम, प्रो. इंदिरा राजारमन, प्रो. आशिमा गोयल, प्रो. सुदीप्तो मंडल, प्रो. एर्रोल डिसूजा, डॉ. शंकर आचार्य, डॉ. राकेश मोहन शामिल हैं। रिजर्व बैंक के दस सदस्य तो कमोबेश एक ही राय के होते हैं। मत भिन्नता बाहर के सात सदस्यों के साथ ही होती है।
नोट करने की बात यह है कि रिजर्व बैंक के वर्तमान गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे पूरी तरह पारदर्शिता में यकीन रखते हैं। अपनी इसी विशेषता के अनुरूप उन्होंने साल भर पहले से मौद्रिक नीति के संबंध में हुई टीएसी की बैठकों के मिनट्स जारी करवाने का क्रम शुरू किया है। इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए शुक्रवार को टीएसी की पिछली बैठक का ब्योरा जारी किया गया है।
इस ब्योरे से पता चला है कि 18 जनवरी 2012 को हुई बैठक में सात बाहरी सदस्यों में से चार सदस्य इस राय के थे कि रेपो दर में कमी कर दी जाए। इनमें तीन का कहना था कि यह कटौती 0.25 फीसदी होनी चाहिए, जबकि चौथे का मानना था कि यह कटौती 0.50 फीसदी होनी चाहिए। दो सदस्यों ने सीआरआर को जस का तस रखने को कहा, जबकि एक ने 0.25 फीसदी और दूसरे ने 0.50 फीसदी की वकालत की। रिजर्व बैंक के सदस्यों ने क्या कहा, इसकी जानकारी नहीं दी गई है। लेकिन इतने ब्योरे से साफ है कि रिजर्व बैंक गवर्नर बाहरी सदस्यों की सुनते जरूर हैं। पर फैसला पूरी तरह अपने विवेक से करते हैं। चार बार पहले भी ऐसा हो चुका है जब उन्होंने दूसरों की सलाह पर अमल नहीं किया। यह शैली है बहस में लोकतंत्र, लेकिन फैसले में केंद्रीयता का, जिसे लोकतांत्रिक केंद्रीयता (democratic centralism) कहते हैं।
टीएसी की भूमिका महज सलाह देने तक सीमित है। इसके सदस्यों के बीच मत-विभाजन की भी कोई व्यवस्ता नहीं है। हर तिमाही की मौद्रिक नीति समीक्षा से पहले इसकी बैठक होती है। इस हिसाब से टीएसी की अगली बैठक अप्रैल के दूसरे हफ्ते में होगी क्योंकि सालाना मौद्रिक नीति 17 अप्रैल को आनी है। इससे पहले 15 मार्च को रिजर्व बैंक तीसरी तिमाही की मध्य-त्रैमासिक समीक्षा पेश करेगा, जिसमें उसे टीएसी की सलाह लेने की जरूरत नहीं होती।
सूत्रों का कहना है कि इसमें ब्याज की दर तो नहीं घटाई जाएगी। लेकिन सीआरआर में आधा फीसदी कमी किए जाने की पूरी संभावना है। कारण, 24 जनवरी को रिजर्व बैंक ने सीआरआर में आधा फीसदी कटौती इसीलिए की थी ताकि बैंकों को ज्यादा धन उपलब्ध हो सके। इससे करीब 32,000 करोड़ रुपए मुक्त हुए थे। मालूम हो कि सीआरआर वह अनुपात है जिसके हिसाब से बैंकों को अपनी कुल जमा का हिस्सा रिजर्व बैंक के पास नकद रखना पड़ता है।
रिजर्व बैंक के लिए संतोषजनक स्थिति तब होती है, जब बैंक उससे रेपो के तहत अपनी कुल जमा का एक फीसदी उधार लेते हैं। लेकिन यह स्थिति सीआरआर में आधा फीसदी कटौती के बावजूद विकराल बनी हुई है। रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के अनुसार 27 जनवरी 2012 तक बैंकों की कुल जमा 57,68,100 करोड़ रुपए है। इस हिसाब से बैंक अगर रेपो के तहत रिजर्व बैंक से 57,681 करोड़ रुपए यानी लगभग 60,000 करोड़ रुपए तक उधार लें तो उसे ठीक माना जाएगा। लेकिन इधर बैंक नकदी की जरूरत को पूरा करने के लिए रिजर्व बैंक से हर दिन इसकी करीब ढाई गुना रकम उधार ले रहे हैं। जैसे, शुक्रवार को उन्होंने रेपो के तहत रिजर्व बैंक से 1,65,510 करोड़ रुपए उधार लिये हैं। इस हफ्ते बुधवार को यह रकम 1,68,435 करोड़, मंगलवार को 1,70,155 करोड़ रुपए और सोमवार को 1,66,080 करोड़ रुपए थी। इससे बैंकों के सामने मौजूद लिक्विडिटी या तरलता संकट का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।