बाजार की उम्मीद और अटकलें खोखली निकलीं। रिजर्व बैंक गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव ने ब्याज दरों में कोई तब्दीली नहीं की है। बल्कि, जिसकी उम्मीद नहीं थी और कहा जा रहा था कि सिस्टम में तरलता की कोई कमी नहीं है, मुक्त नकदी पर्याप्त है, वही काम उन्होंने कर दिया। सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) को 4.75 फीसदी से घटाकर 4.50 फीसदी कर दिया है। यह फैसला इस हफ्ते शनिवार, 22 सितंबर 2012 से शुरू हो रहे पखवाड़े से लागू हो जाएगा।
मालूम हो कि सीआरआर, बैंकों की कुल जमा का वह अनुपात है जिसमें हमेशा उन्हें अपना धन बतौर नकद रिजर्व बैंक के पास रखना होता है। रिजर्व बैंक की तरफ से जारी मौद्रिक नीति की मध्य-तिमाही समीक्षा में कहा गया है कि सीआरआर को 4.75 फीसदी से 4.50 फीसदी कर देने से बैंकों को 17,000 रुपए की अतिरिक्त नकदी मिल जाएगी। बाकी, रेपो दर को 8 फीसदी, रिवर्स रेपो दर को 7 फीसदी और एमएपएफ की दर को 9 फीसदी पर यथावत रखा गया है।
इससे शेयर बाजार को फौरन जोर का झटका धीरे से लगा। 11.01 बजे बीएसई सेंसेक्स 18,648.15 अंक पर था। लेकिन छह मिनट में ही वह करीब 85 अंक गिरकर 11.07 मिनट पर 18,563.86 हो गया। हालांकि इसके बाद सुधरा। लेकिन आगे फिर गिर गया। निफ्टी का यही हाल रहा। वैसे, जिस तरह से अगस्त महीने में मुद्रास्फीति की दर बढ़कर 7.55 फीसदी हो गई थी, उसमें रिजर्व बैंक का ब्याज दर न घटाना ही तार्किक कदम हो सकता था। लेकिन शुक्रवार को केंद्र सरकार द्वारा राजकोषीय घाटे को घटाने संबंधी उपायों के बाद व्यापक तौर पर माना जा रहा था कि ब्याज दर में कमी की जा सकती है। मगर, लगता है कि ऐन वक्त पर पासा पलट गया।
रिजर्व बैंक ने सोमवार को जारी नीति वक्तव्य में कहा है, “मुद्रास्फीति के बढ़ने का रुझान कायम है। इसलिए मौद्रिक नीति का मुख्य फोकस मुद्रास्फीति और उसकी अपेक्षाओं को थामने का है। सरकार ने हाल ही में व्यय को उपभोग (सब्सिडी) से हटाकर निवेश की तरफ (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश – एफडीआई समेत) ले जाने का काम किया है जिससे विकास-मुद्रास्फीति गत्यात्मकता के लिए ज्यादा अनुकूल माहौल बनेगा। फिर भी बहुत सारी चुनौतियां बरकरार हैं। इसमें से मुद्रास्फीति एक है।”
यह कहते हुए रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में किसी भी कमी से इनकार कर दिया। हालांकि कुछ दिनों पहले से ही भारतीय स्टेट बैंक जैसे कई बैंक ऋण पर न सही, लेकिन जमा पर ब्याज दर घटाने की शुरुआत कर चुके हैं। ऐसे में जहां आम उपभोक्ता को उसकी बचत पर कम आय होगी, वहीं बैंक उनसे कर्ज की ज्यादा कीमत वसूलते रहेंगे। कारण, कोई अपना मुनाफा खुद नहीं छोड़ता। इसलिए रिजर्व बैंक के फैसले से बैंकों की मौज हो गई है।
तरलता का कोई खास संकट उनके सामने था नहीं। थोड़ा बहुत था भी तो सीआरआर में चौथाई फीसदी की कमी ने दूर कर दिया है। मालूम हो कि बीते हफ्ते शुक्रवार, 14 सितंबर को बैंकों ने रिजर्व बैंक की चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएफएफ) के तहत रेपो दर पर मात्र 551.20 करोड़ रुपए उधार लिए थे। आज सोमवार को भी सुबह यह रकम मात्र 536.55 करोड़ रुपए रही है। ऐसे में सामान्य तौर पर किसी की भी समझ से बाहर है कि रिजर्व बैंक ने सीआरआर में आखिर कमी क्यों की है।
सिंगापुर की फर्म, वेस्टपैक में मुद्रा के रणनीतिकार जोनाथन सैवेन्घ का कहना है, “मुझ लगता है कि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति में ढील देने से पहले मुद्रास्फीति के दबाव को और नीचे पहुंचा हुआ देखना चाहता है। इसमें भी संदेह है कि सरकार ने हाल में आर्थिक सुधारों का जो दौर चलाया है, वह विपक्ष के विरोध के कारण किसी नतीजे पर पहुंचे ही नहीं।” ऐसे ही माहौल में रिजर्व बैंक की नीति की घोषणा के फौरन बाद रुपए और सरकारी बांडों के मूल्य में गिरावट दर्ज की गई। मूल्य घटे तो दस साल के सरकारी बांडों पर यील्ड की दर 0.05 फीसदी बढ़कर 8.17 फीसदी पर पहुंच गई। डॉलर भी 11 बजे से पहले 53.71 रुपए का मिल रहा है, जबकि नीति के चंद मिनट बाद इसकी विनिमय दर 53.77 रुपए हो गई।