शेयरों की ट्रेडिंग खेल शुद्ध सट्टेबाज़ी का

शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग विशुद्ध रूप से कयासबाज़ी या सट्टेबाज़ी का खेल है। इसका कोई वास्ता कंपनियों के फंडामेंटल्स या बिजनेस के हाल-चाल से नहीं होता। अर्थव्यवस्था और आर्थिक नीतियों से भी इसका कोई सीधा रिश्ता नहीं। ट्रेडिंग में सबसे अहम है कि शेयर के भाव अभी क्या हैं और आगे कहां तक जा सकते हैं। फर्क समझें कि शेयरों में दीर्घकालिक निवेश बैक एफडी या प्रॉपर्टी में धन लगाने जैसा काम है, जबकि ट्रेडिंग विशुद्ध बिजनेस है। निवेश में धन लगाकर सालों तक के लिए भूल सकते हैं। लेकिन ट्रेडिंग में किसी भी बिजनेस की तरह पल-पल की हलचलों पर ध्यान देना पड़ता है। पिछले लेख में हम जान चुके हैं कि शेयरो के भाव अंततः इफरात धन के प्रवाह से तय होते हैं। यह धन देशी-विदेशी या काला-सफेद कुछ भी हो, फर्क नहीं पड़ता। हो सकता है कि धन का प्रवाह किसी अच्छी खबर या भविष्य की संभावना के चलते आ रहा हो। लेकिन प्रोफेशनल ट्रेडर सिर्फ भावों को देखता है, वे किस वजह से बढ़ या घट रहे हैं, इसके चक्कर में नहीं पड़ता। रिटेल ट्रेडरों को तो कभी खबरों के चक्कर में पड़ना ही नहीं चाहिए। इसलिए जिन दिन बड़ी खबरें आ रही हों, बजट का दिन हो, मौद्रिक नीति की घोषणा हो रही है या कंपनी के नतीजे आ रहे हों, उस दिन उसे ट्रेडिंग को हाथ नहीं लगाना चाहिए।…

आदिम भावनाओं का खेल: अगर आपको लगता है कि इफरात धन वाले बहुत समझदार होते हैं और हमेशा सोच-समझकर बुद्धिमानी से फैसले करते हैं तो यह भ्रम मन से फौरन निकालकर बाहर फेंक दें। धनवान भी उसी तरह लालच और डर की आदिम भावनाओं में बहते हैं, जैसे कोई आम इंसान। बस, फर्क इतना है कि उनके पास रिस्क उठाने या पूंजी गंवाने की क्षमता ज्यादा होती है तो उन पर खास फर्क नहीं पड़ता। लेकिन आम या रिटेल ट्रेडर तो ज़रा-सी चूक से अपनी पूरी की पूरी पूंजी ही गंवाकर ठन-ठन गोपाल बन जाता है। उसके लिए दो मूलभूत नियम हैं। एक, अपनी ट्रेडिंग पूंजी हमेशा संभालकर रखे, उसे कोई आंच न आने दें। दूसरा नियम यह है कि पहले नियम को कभी भूले नहीं, हमेशा याद रखे।

मन में कहीं गहरे बैठा लें कि हमारे आप जैसे किसी भी इंसान के लालच और डर की कोई सीमा नहीं होती। यही दो भाव या विकार समूचे शेयर बाज़ार को चलाते हैं। यहां भी पचास-सौ नहीं, बल्कि लाखों लोगों के विकार एकसाथ काम करते हैं। इसलिए उनका सम्मिलित परिणाम क्या होगा, इसे कोई भी पहले से पक्का नहीं बता सकता। बड़ी से बड़ी गणना तक में गुंजाइश रहती है कि वह उलटी पड़ जाए। जो Probability (प्रायिकता) या संभावना को समझते हैं, मन नहीं मन उसकी गणना कर सकते हैं, वही शेयर बाज़ार से कमाते हैं। बड़े से बड़ा जानकार भी नहीं जानता कि किसी स्टॉक का सटीक टॉप और बॉटम कहां होगा। इसलिए यह मान लेना या अपेक्षा करना खुद को धोखे में रखने जैसा है कि हम या आप ऐसा कोई टॉप व बॉटम पकड़ लेंगे। हम अधिक से अधिक इतना कर सकते हैं कि टेक्निकल संकेतकों वगैरह का इस्तेमाल करते हुए 5-10% की ऐसी रेंज चिन्हित कर लें, जिसकी प्रायिकता ज्यादा और रिस्क-रिवॉर्ड अनुपात अनुकूल हो।

नहीं चलता सतही लॉजिक: शेयर बाज़ार कभी सतही तर्कों या लॉजिक से नहीं चलता। इसलिए कभी किसी के कहे में नहीं फंसना चाहिए। बिजनेस चैनलों और अखबारों को कुछ न कुछ कहना और लिखना होता है तो वे लमतड़ानी करते रहते हैं। समूची दुनिया में कोई ऐसा सच्चा उस्ताद नहीं जो पक्का बता सके कि कल शेयर बाज़ार का क्या होने वाला है। शेयर बाज़ार की चाल अप्रत्याशित और अन-अपेक्षित होती है। कोई भी नहीं जानता कि सुबह का बढ़ा या गिरा बाज़ार शाम होते-होते किस दिशा में चला जाएगा। केवल उसकी चाल की प्रायिकता का अंदाज़ लगाया जा सकता है। यह प्रायिकता शून्य और एक के बीच कहीं भी डोल सकती है। इसकी गणना भी कर ली तो कयासबाज़ी से बच नहीं सकते। फिर सट्टा जैसा ही खेल है, जो हर ट्रेडर को अपनी रिस्क उठाने की क्षमता के हिसाब से खेलना होता है। दूसरा अपने हिसाब से बताता है, जबकि हर ट्रेडर को अपने हिसाब से चलना होता है, तभी वो ट्रेडिंग के बिजनेस में सफल हो सकता है।

शेयर बाज़ार में खरीदनेवाले कौन हैं, इससे भी बहुत फर्क पड़ता है। रिटेल की खरीद समुंदर में एक लोटा या बाल्टी पानी के बराबर होती है। सौ सुनार की, एक लोहार की। बाज़ार में बल्क/ब्लॉक खरीद तो जगजाहिर हो जाती है और वह खटाक से एक-दो दिन में निपट जाती है। यह खरीदने और बेचनेवाले पक्ष के बीच में बातचीत से पहले ही तय कर ली जाती है। इससे बाज़ार में शेयरों के भाव पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। इसलिए रिटेल ट्रेडरों को बल्क या ब्लॉक डील की तरफ झांकने की ज़रूरत नहीं होती।

रिटेल ट्रेडरों का ज़ोर नहीं: किसी को भी कोई गफलत नहीं होनी चाहिए कि रिटेल ट्रेडर शेयर बाज़ार को चलाते हैं। उनका धन तो इकट्ठा होकर म्यूचुअल फंड या बीमा कंपनियों के ज़रिए बाज़ार में आता है। लेकिन वे भी बाजार के रुख के हिसाब से चलते हैं, बाजार का रुख नहीं तय करते। बाज़ार का रुख वे तय करते हैं जिनके पास इफरात धन होता है। एचएनआई और प्रोपराइटरी ट्रेडर। इन्हीं की झोंक पर बाज़ार उछलता या गिरता है। ये तर्क से भी चलते हैं और सेंटीमेंट में भी बहते-बहाते हैं। डेरिवेटिव सेगमेंट में तो खुल्लमखुल्ला इन्हीं की ही तूती बोलती है। इनके खेल को पहले से पकड़ पाना बेहद मुश्किल है।

एचएनआई बड़े खिलाड़ी: अपने यहां एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल्स) या अमीरतम लोगों की क्या स्थिति है, इस पर भी एक नज़र डाल लेने की ज़रूरत है। दिलचस्प बात है कि अगर आपकी नेटवर्थ 1.52 करोड़ रुपए से ज्यादा है तो आप उन 1% अमीर लोगों में आ जाते हैं जिनके पास देश की 40% सम्पदा या दौलत है। इससे पता चलता है कि देश के अमीर लोगों में भी कितनी असामनता या विषमता है। टैक्स विशेषज्ञ सीए नितिन कौशिक के अध्ययन के मुताबिक भारत में ऊपर के 10% लोगों के पास देश की करीब 65% सम्पदा है, जबकि नीचे की 50% आबादी के पास देश की केवल 6% दौलत है। वहीं, नाइट फ्रैंक ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट 2025 के मुताबिक भारत ऐसे एचएनआई की संख्या के मामले में दुनिया में अमेरिका, चीन व जापान के बाद चौथे नंबर पर है जिनके पास एक करोड़ डॉलर (करीब 88.25 करोड़ रुपए) से ज्यादा संपदा या दौलत है। ऐसे एचएनआई की संख्या इस समय 85,698 है। यह संख्या 2028 तक 43% बढ़कर 1,22,119 पर पहुंच सकती है। देश के एचएनआई सोने व रीयल एस्टेट के साथ ही शेयर बाज़ार में जमकर धन लगाते हैं।

एफपीआई की मस्ती: यह बात भी नोट करने की ज़रूरत है कि विदेशी पोर्टफोलियो या संस्थागत निवेशकों (एफपीआई/एफआईआई) के पास भी इतनी फुरसत या छूट नहीं होती कि वे बाजार का रुख तय कर सकें। वे तो देशी-विदेशी तमाम हालात का हिसाब-किताब लगाने के बाद ऐसी रणनीति बनाते हैं ताकि अपने से जुड़े परदेशी निवेशकों को ज्यादा से ज्यादा रिटर्न दे सकें। यह अलग बात है कि एफआईआई के लिबास में हमारी बहुत सारे प्रवर्तकों का अघोषित धन बाहर से पलटकर वापस भारतीय बाजार में आता है जिसके पास खेल करने की पूरी आजादी होती है। याद करें कि अडाणी समूह की कंपनियों में कैसे खेल हुआ था, जिस पर हिंडेनबर्ग की विस्तृत रिपोर्ट आने के बाद न तो सरकार ने कुछ किया, न पूंजी बाज़ार नियामक संस्था सेबी ने और न ही सुप्रीम कोर्ट के ही हाथ-पैर मारने का कोई नतीजा निकला।

खेल डिमांड-सप्लाई का: ध्यान रखें कि एचएनआई, प्रोपराइटरी ट्रेडर, देशी-विदेशी संस्थाएं और प्रोफेशनल निवेशक व ट्रेडर क्या खरीदेंगे, इसका कोई भरोसा नहीं रहता। आज उन्होंने आईटी स्टॉक्स खरीदे हैं। हो सकता है कि कल ऑटो स्टॉक्स खरीद डालें। वे जिनको खरीदेंगे, वे स्टॉक्स ही बढ़ेंगे। आगे का पता नहीं तो आज हमारी क्या रणनीति होनी चाहिए? केवल चार्ट पर पिछली ट्रेडिंग देखकर इनके भावी रुख का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। जो हो सकता कि सही निकल जाए और हो सकता है कि एक सिरे से गलत साबित हो जाए। फिर भी जो कल तक हुआ है, उसी के हिसाब से चलने में सबसे कम रिस्क है। न्यूनतम रिस्क में अधिकतम रिटर्न कमाना हर रिटेल ट्रेडर का लक्ष्य होना चाहिए। इस लक्ष्य को कैसे पूरा किया जाए? असल में प्रोफेशनल व सस्थागत निवेशकों की खरीद हमेशा खास दिशा पकड़कर बराबर चक्रों में चलती रहती है। इसे परखना और पकड़ना ज़रूरी है। यहीं से बनता है शेयरों की ट्रेडिंग के लिए ज़रूरी डिमांड और सप्लाई के संतुलन पर टिका बाज़ार। हमें भावों के चार्ट को देखकर डिमांड और सप्लाई के स्तर को पकड़ने की कला में पारंगत होना पडेगा।

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