तमाम विशेषज्ञ कहते फिरते हैं कि आम निवेशकों को शेयर बाजार में निवेश केवल म्यूचुअल फंडों के जरिए करना चाहिए। एक बार पुरानी नौकरी के दौरान राकेश झुनझुनवाला से आम निवेशकों के लिए नए साल के निवेश पर सलाह मांगने गया था तो उन्होंने ऐसा ही दो-टूक जवाब दिया था। ये लोग पुराने जमाने के ओझा-सोखा की तरह कहते हैं कि बडा कठिन है किसी आम निवेशक के लिए सीधे शेयरों में निवेश करने की समझ हासिल करना। लेकिन खुद ये धंधेबाज भी जानते हैं कि शेयरों में निवेश कोई रॉकेट साइंट नहीं है। न ही यह कोई बिच्छू का मंत्र है जिसे बता देने का उसका असर खत्म हो जाएगा।
निवेश का विज्ञान है, लेकिन आसान है। निवेश की कला है जो अभ्यास से आती है। बाकी इसके लिए घंटों बिजनेल चैनलो को देखने की जरूरत नहीं है। बेंजामिन ग्राहम और वॉरेन बफेट जैसे दिग्गज निवेशकों ने अपने अनुभव से बहुत ही साफ-सफ्फाक सिद्धांत पेश कर रखे हैं। मूल तत्व यह है कि आपको अपनी सोच व निवेश-कर्म को अनुशासन में बांधना पड़ेगा। ज्यादा लालच में पड़िए। ब्रोकरों व एनालिस्टों के बहकावे में न आइए। अपना दिमाग चलाइए। अंग्रेजी नहीं आती तो कोई समस्या नहीं। अर्थकाम आपको अपनी भाषा व जुबान में मदद करने के लिए तत्पर है। यकीन मानिए, हम निःस्वार्थ भाव से आपकी शिक्षा-दीक्षा चलाते रहेंगे। आइए देखते हैं कि इस हफ्ते में हमने क्या-क्या सीखा…
- बड़ी बेरहम दुनिया है शेयर बाजार की। यहां कोई नैतिकता नहीं चलती क्योंकि घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या। यहां कुछ नियम चलते हैं जो कमोबेश शाश्वत हैं। बड़े खिलाड़ी जब सस्ते भावों पर किसी स्टॉक को जमा कर लेते हैं तो वे ब्रोकरों, एनालिस्टों व मीडिया के जरिए फैलाते हैं कि कैसे वह बहुत धांसू स्टॉक है और उसे खरीद लेना चाहिए। मकसद सिर्फ एक होता है कि वे अपना माल निकालकर नोट बना सकें। आखिर कोई खरीदेगा, तभी तो वे बेच पाएंगे।
- जिंसों के धंधे में लगी कंपनियों में निवेश करते वक्त हमेशा तीन बातें ध्यान में रखना चाहिए। एक, उनके शेयरों के भाव हमेशा संबंधित जिंस के भाव से जुड़कर चलते हैं। दो, जिंस के भाव के उतार-चढ़ाव से कई गुना ज्यादा उतार-चढ़ाव कंपनी के शेयरों में आता है। मसलन, जिंस का भाव 5 फीसदी बढ़ा-घटा है तो कंपनी का शेयर 15 फीसदी ऊपर-नीचे हो सकता है। तीन, ऐसे शेयर हमेशा चक्र में चलते हैं। बढ़ने के बाद गिरना और गिरने के बाद फिर बढ़ना। इसलिए इनमें बहुत ज्यादा लांग टर्म नहीं चलता। चक्र के हिसाब से इन्हें बेचते-खरीदते रहना चाहिए।
- कोई कंपनी जब टी ग्रुप में डाल दी जाती है तो उसमें उसी दिन डिलीवरी के कारण लिक्विडिटी एकदम सूख जाती है। हो सकता है कि वहां पड़े-पड़े कोई शेयर किसी दिन एकदम इल्लिक्विड हो जाए, मतलब उसमें कोई खरीद-फरोख्त हो ही नहीं। बाजार नियामक सेबी और हमारे एक्सचेंज इसे लिस्टेड कंपनियों को सजा देने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
- कंपनी लाख अच्छी हो, अगर उसके शेयर समय पर खरीदे-बेचे ही न जा सकें तो हम-आप उसे लेकर अचार डालेंगे क्या! बात बहुत सीधी-सी है कि कोई भी निवेशक किसी कंपनी का भला करने के लिए नहीं, बल्कि फायदा कमाने के लिए अपना धन लगाता है। जहां से घुसकर वह निकल ही न पाए, उस चक्रव्यूह में फंसने का फायदा ही क्या? वैसे, सेबी और हमारे स्टॉक एक्सचेंजों को किसी स्टॉक में बिना किसी बात के इस तरह तरलता सूख जाने का इलाज ढूढना ही पड़ेगा।
- मुर्गा बांग न दे, तब भी सुबह का होना तो नहीं रुकता। इसी तरह सही सलाह न मिलने से लोगों का निवेश करना नहीं रुकता। वे भविष्य की सुरक्षा के लिए अपनी वर्तमान बचत को दांव पर लगाते रहते हैं, जोखिम उठाते रहते हैं। लेकिन कुछ तो नासमझी व लालच का तकाजा और बहुत कुछ हमारे नियामक तंत्र के लापरवाह और गैर-जिम्मेदाराना रवैये के चलते हर दिन लाखों देशवासी करोड़ों गंवा रहे हैं। स्पीक एशिया तो एक नाम है। ऐसी हजारों कंपनियां गली-मोहल्लों में हर दिन लोगों की असुरक्षा व लालच का फायदा उठाकर उन्हें ठग रही हैं। शेयरों में निवेश के नाम पर भी यही हो रहा है। इसलिए मुझे लगता है कि कहां निवेश करें, इससे भी कहीं ज्यादा जरूरी यह जानना हो गया है कि कहां निवेश न करें।