21 की मौत, 150 से ज्यादा घायल। आज इनसे जुड़े हजार-दो हजार लोगों की ज़िंदगी यकीनन ठहर गई होगी। लेकिन मुंबई के बाकी करीब 205 लाख लोंगों की ज़िंदगी की जंग चलती रहेगी। आतंकवाद की यही सीमा है। यह हमारे जीवन में इतना खलल भी इसीलिए डाल पाता है क्योंकि इसके पीछे खास किस्म की राजनीति काम करती है। इसे सिर्फ खुफिया व सुरक्षा तंत्र की कमजोरी मानना गलत होगा। खैर, इस तरह के पत्थर फेंकने से सागर की दहाड़ नहीं रुकती, ज़िंदगी नहीं थमती। आज चर्चा इंसान की ज़िंदगी को अपने न्यूट्रास्यूटिकल और बायो फार्मास्यूटिकल उत्पादों से संवारने में लगी कंपनी स्टर्लिंग बायोटेक की।
यह कोई छोटी-मोटी स्मॉल कैप नहीं, बल्कि लार्ज कैप कंपनी है। इसका बाजार पूंजीकरण 2321 करोड़ रुपए है। बीएसई-500 सूचकांक में शामिल है। इसके शेयर (बीएसई – 512299, एनएसई – STERLINBIO) ने दो दिन पहले ही मंगलवार, 12 जुलाई को 72.40 रुपए पर 52 हफ्तों की तलहटी पकड़ी है। लेकिन एक ही दिन में वहां से पलटकर 86.75 रुपए पर पहुंच गया। बंद से बंद स्तर की बढ़त 6.70 फीसदी। लेकिन न्यूनतम से अधिकतम का अंतर 23.34 फीसदी। लगता है, जैसे किसी ने गलती से इसे धूल चटा दी हो। फिर उठाकर बोलने लगे – भाई माफ करना, चूक हो गई। वैसे असली वजह कंपनी के परिसरों पर करीब दो हफ्ते पहले पड़े आयकर के छापे हैं, जिनके बारे में कंपनी की तरफ से कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है। खबरों के मुताबिक इन छापों में 220 करोड़ रुपए की अवैध संपत्ति मिली है।
असल में जिस किसी भी वजह से स्टर्लिंग बायोटेक जैसे शेयर अगर साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाएं तो लंबे समय की सोच वाले निवेशकों को उन्हें पकड़ लेना चाहिए। यह शेयर बीते साल 5 अक्टूबर 2010 को 125.65 रुपए पर जा चुका है। और पहले की बात करें तो तीन साल पहले जुलाई 2008 में यह 262.45 रुपए तक गया था। 1985 में बनी कंपनी है। पहले नाम प्लूटो एक्पोर्ट्स एंड कंसल्टेंट्स था। 1991 में वह चाय के प्लांटेशन में उतरी तो नाम स्टर्लिंग टी एंड इंडस्ट्रीज हो गया। अब भी इसके पास तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में 600 एकड़ के चाय बागान हैं।
कंपनी फिलहाल पोषण व स्वास्थ्य संबंधी कई नायाब उत्पाद बनाती है जिनमें देश ही नहीं, दुनिया के बाजार में उसकी अच्छी खासी दखल है। वह दुनिया में जिलेटिन बनानेवाली पांच सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है। जिलेटन के विश्व बाजार में उसकी हिस्सेदारी 7.5 फीसदी और भारतीय बाजार में 60 फीसदी से ज्यादा है। कंपनी का कॉरपोरेट तंत्र तो मुंबई के औद्योगिक दिल नरीमन प्वॉइंट में है। लेकिन उसकी उत्पादन इकाई गुजरात के मसर में हैं। कंपनी के चेयरमैन व प्रबंध निदेशक नितिन सेंदसरा हैं।
1990 से ही कंपनी का लाभांश देने का अबाधित रिकॉर्ड रहा है। वह कभी 20 तो कभी 50 फीसदी लाभांश देती रही है। 2007 से लेकर इस साल 2011 तक उसने एक रूपए अंकित मूल्य के शेयर पर 50 पैसे यानी 50 फीसदी का लाभांश दिया है। उसने 1991 में एक पर एक के अनुपात में बोनस शेयर भी दिए थे। अभी उसका शेयर जिस तरह पिट रहा है, उसकी खास वजह है लगातार कई तिमाहियों से आते उसके खराब नतीजे।
उसका वित्त वर्ष कैलेंडर वर्ष के हिसाब से चलता है। जनवरी से दिसंबर तक। 2010 में उसकी बिक्री तो 12.41 फीसदी बढ़कर 1616.58 करोड़ रुपए हो गई। उसका कर व मूल्य-ह्रास से पहले का लाभ भी 31.26 फीसदी बढ़कर 479.01 करोड़ रुपए हो गया। लेकिन कुछ असामान्य मदों के कारण उसका शुद्ध लाभ 38.31 फीसदी घटकर 146.21 करोड़ रुपए पर आ गया।
इसके बाद मार्च 2011 की पहली तिमाही में उसकी बिक्री 14.50 फीसदी बढ़कर 438.28 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 9.03 फीसदी बढ़कर 51.29 करोड़ रुपए हो गया। कंपनी का परिचालन लाभ मार्जिन (ओपीएम) 45.96 फीसदी के सम्मानजनक स्तर पर है। उसका ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस 7.18 रुपए है। इस तरह बीएसई के बंद भाव 86.65 रुपए पर उसका पी/ई अनुपात 12.07 निकलता है। कंपनी के शेयर की बुक वैल्यू ही इस समय 92.23 रुपए है। इसका पी/ई अनुपात दिसंबर 2009 के बाद लगातार इससे ज्यादा रहा है। इसलिए इस मौके पर इसमें निवेश करना लंबे समय में लाभ का सौदा साबित हो सकता है। बाकी मर्जी आपकी ही चलनी चाहिए क्योंकि पैसा और बचत आपकी ही है, मेरी नहीं। वैसे भी कंपनी आयकर छापों की जद में अभी-अभी आई है तो इसमें निवेश से पहले ही बहुत ही ज्यादा सोचना-समझना और जोखिम का आकलन करना होगा। हां, निवेश करना भी है तो हड़बड़ी में न करें। कुछ दिन देख-परख लें।
कंपनी की 26.79 करोड़ रुपए की इक्विटी में पब्लिक का हिस्सा 66.76 फीसदी और प्रवर्तकों का हिस्सा 33.24 फीसदी है। पब्लिक के हिस्से में से 6.50 फीसदी शेयर एफआईआई और 0.30 फीसदी डीआईआई के पास हैं। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 21,065 है। इनमें से प्रवर्तकों से इतर 11 बड़े शेयरधारकों के पास उसके 19.06 फीसदी शेयर हैं।