डर इस बात का है कि जरा-सी आशा और गहरी निराशा के बीच डूबते-उतराते शेयर बाज़ार में सालोंसाल से ट्रेड कर रहे प्रोफेशनल व रिटेल ट्रेडर कहीं अंततः हाथ न खड़ा कर दें। बोल पड़े कि यह लै अपनी लकुटि कमरिया, बहुतहिं नाच नचायो। ट्रेडरों के लिए इसका कोई व्यावहारिक समाधान तो नहीं नज़र आता। लेकिन विकल्प हो तो उन्हें कुछ समय के लिए निवेशक बन जाना चाहिए। बाजार का कोई भरोसा नहीं। मंदी के माहौल में बीच-बीच में छोटी-मोटी रैली ज़रूर हो सकती है। लेकिन कुछ दिन की बढ़त को शायद चार दिन की चांदनी ही समझना चाहिए। बाज़ार के थोड़ा-सा बढ़ने पर दांव लगा देना भारी पड़ सकता है। लेकिन यह आशा बनाए रखें कि हर मंदी के बाद तेजी आती है और हर रात की सुबह ज़रूर होती है। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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