हम शेयर बाज़ार में जो भी सौदे करते हैं, उसके लिए अंततः खुद ज़िम्मेदार होते हैं। इसे स्वीकार करेंगे, तभी अपने तौर-तरीकों और रणनीति को आगे सुधार सकते हैं। लेकिन यहां तो हर कोई सफलता का श्रेय खुद लेता है, जबकि नाकामी के लिए अपने अलावा हर किसी को दोषी ठहरा देता है। इंटरनेट सुस्त था, ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म सही नहीं था, बीवी-बच्चों या कुत्ते ने परेशान कर रखा था, सलाह देनेवाला गलत निकला। दरअसल, हम गलत साबित होने से डरते हैं। अगर ट्रेडिंग या जीवन के किसी भी क्षेत्र में आप अपने फैसलों व काम के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराते हैं तो यह एक तरह का पलायनवाद है। गंभीरता से सोचें कि आखिर ऐसा क्यों है कि सामान्य बाज़ार में तो हम ज्यादातर चीजें सेल या डिस्काउंट पर खरीदना पसंद करते हैं, जबकि शेयर बाज़ार में चढ़ते शेयरों को खरीदते और गिरते शेयरों को बेचते हैं। सामान्य बाज़ार में हम लोग खरीदने के लिए दाम गिरने का इंतज़ार करते हैं, जबकि शेयर बाज़ार में खरीदने से पहले अच्छी खबरों व भावों के चढ़ने का माहौल खोजते रहते हैं। यह शेयर बाज़ार को हौवा समझने से उपजी हीनता-ग्रंथि का नतीजा है। बुनियादी सच यह है कि शेयर बाज़ार भी आम बाज़ार की ही तरह डिमांड-सप्लाई के नियम पर चलता है। इस सच को आत्मसात करें और इसे चेतन ही नहीं, अवचेतन मन तक पैठने दें ताकि वो आपकी आदत का हिस्सा बन जाए…
नियम डिमांड-सप्लाई का: दरअसल, इस नियम को जानने के बावजूद हम स्टॉक ट्रेडिंग के व्यवहार में इसे मानने से इनकार कर देते हैं। हां, सिद्धांत में बराबर दोहराते हैं कि शेयर बाजार में निचले स्तर पर खरीदना और ऊंचे स्तर बेचना चाहिए। वित्तीय सलाहकार और एनालिस्ट भी यही भाषण पिलाते हैं। अहम सवाल है कि इस सिद्धांत को व्यवहार में कैसे उतारा जाए? शेयर बाज़ार को सामान्य बाज़ार की तरह मांग और सप्लाई पर चलनेवाला बाज़ार मान भी लें तो इसमें इसे सही तरीके से पकड़ा कैसे जाए? जवाब है कि दैनिक या साप्ताहिक भावों के चार्ट पर उंगली सबसे ताज़ा भाव पर रखें और पीछे वहां तक ले जाएं, जहां से भाव गिरे या उठे थे। जहां से भाव उठे थे, वहां की अंतिम कैंडल की नीचे-ऊपर की रेखा के बीच मांग का ज़ोन और जहां से गिरे थे, वहां की सबसे ऊपर की कैंडल की ऊपरी व निचली रेखा के बीच सप्लाई का ज़ोन।
क्या हैं तीन चुनौतियां: शेयर बाज़ार को हौवा समझना बंद कर दें और बुनियादी समझ व तैयारी के साथ प्रयाण करें। गिरते हैं शह-सवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले। जीवन में वही सफल होते हैं जो चुनौतियां लेते हैं। जिन बूड़ा तिन पाइयां गहरे पानी पैठि। मैं बपुरा बूड़न डरा, रहा किनारे बैठि। शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग एक साथ हमें तीन मोर्चों पर चुनौती देती है। पहला मोर्चा है आर्थिक। दूसरा मोर्चा है मानसिक या बौद्धिक। और, तीसरा है भावनात्मक। शेयर बाजार में ट्रेडिंग की इस त्रिपक्षीय चुनौती का मुकाबला करना कठिन है। पर मुश्किल नहीं। इसे आत्म अनुशासन के सात कदमों से हम नाप सकते हैं। पहला कदम। आप साफ समझ लें कि ट्रेडिंग करने के पीछे आपका सामाजिक या पारिवारिक मकसद क्या है। अगर केवल अपने लिए ट्रेडिंग करना चाहते हैं, तब मामला संगीन है क्योंकि ऐसी सूरत में आप कभी भी ट्रेडिंग के लिए ट्रेडिंग करने के लती बन सकते हैं। परिवार को किनारे रखकर ट्रेडिंग करना गलत व नुकसानदेह ही नहीं, घातक भी है। ऐसा करने से आपका सपोर्ट सिस्टम टूट जाता है और आप युद्ध में एकदम अकेले हो जाते हैं।
मकसद और लक्ष्य: पहले कदम में ट्रेडिंग का मकसद स्पष्ट करने के बाद उसके मद्देनज़र तय करें कि आपका लक्ष्य क्या है। यह लक्ष्य हवा-हवाई नहीं, बल्कि आपकी अपनी सामर्थ्य व संसाधनों के भीतर होना चाहिए। शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग एक तरह का बिजनेस है और हर बिजनेस के लिए मेहनत के अलावा दूसरी सबसे ज्यादा ज़रूरी चीज़ होती है पूंजी। शेयरों की ट्रेडिंग में इस बाज़ार के लिए रखे कुल धन का 5% से ज्यादा नहीं लगाना चाहिए। इसी के साथ ज़रूरी है कि ट्रेडिंग पूंजी हमारा मूलधन है तो उसको कभी आंच नहीं आने देना चाहिए।
सफलता का गहरा विज़न: मकसद और लक्ष्य के बाद तीसरा कदम यह है कि आप सफलता का गहरा विज़न विकसित करें। बाज़ार में सफल होने के लिए कौन-कौन सी बातें ज़रूरी हैं। पूंजी के अलावा इसमें सबसे बड़े संसाधन खुद आप हैं। इसलिए बारीकी से समीक्षा करें कि आपकी कौन-सी कमज़ोरी सफलता हासिल करने में बाधा बन सकती हैं। उस पर ध्यान केंद्रित करें। अधिकतम कोशिश यह रहे कि हम बाजार के सच को साफ-साफ देख सकें। किसी के कहने, झांसे या टिप्स में कतई न आएं। अपनी कमियों और बाज़ार के सच को समझने की दृष्टि हासिल करने के बाद चौथे कदम के तहत परखें कि यहां कौन सफल होते हैं और कितने सारे लोग लाख कोशिशों के बावजूद पिटते रहते हैं। दोनों से सीखें। लेकिन किसी रोल मॉडल या अकाट्य मंत्र के चक्कर में न पड़ें। हां, बाज़ार के दिग्गजों को ज़रूर पढ़ना चाहिए। मोटे तौर पर समझ लें कि भावनाओं व आवेग को किनारे रख बुद्धि का जितना इस्तेमाल करेंगे, उतना सफल होंगे।
ट्रेडिंग का हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर: ट्रेडिंग के मकसद का मुख्य फ्रेम, उसके भीतर लक्ष्य, फिर सफलता का विज़न व बुद्धि के इस्तेमाल पर ज़ोर। आत्म अनुशासन के इन चार कदमों के बाद पांचवां कदम है अपने ट्रेडिंग सिस्टम के लिए सारा हार्डवेयर चौकस बनाने में जुट जाना। कहां बैठेंगे, सुबह या शाम कितना समय लगाना है, लैपटॉप कौन-सा होगा, नेट कनेक्शन किसका लेना है, किस ब्रोकर की सेवा लेनी है? इन सारे मसलों को कायदे से सुलझा लें। छठे कदम के रूप में तय करें कि ट्रेडिंग में आपको सॉफ्टवेयर कौन-सा इस्तेमाल करना है? आपका ब्रोकर चार्टिंग का जो सॉफ्टवेयर देता है, क्या वह पर्याप्त है या आपका काम बीएसई व एनएसई की साइट पर मिल रहे मुफ्त चार्ट से भी चल जाता है? टेक्निकल एनालिसिस के कौन-से इंडीकेटर इस्तेमाल करने हैं? एंट्री, एक्जिट व स्टॉप लॉस का क्या सिस्टम अपनाना है? पक्का कर लें कि आपने सिस्टम में संस्थाओं की मांग व सप्लाई के संकेत ज़रूर शामिल किए गए हों।
सातवां और आखिरी कदम: ट्रेडिंग में सफलता के लिए ज़रूरी आत्म अनुशासन का सातवां और आखिरी कदम है अभ्यास। कोई भी हुनर किताबों से नहीं, बल्कि अभ्यास से सीखा जाता है। द्रोणाचार्य नहीं मिले तो एकलव्य अभ्यास के दम पर अर्जुन से भी बड़ा धनुर्धर बन गया। हर किसी को अपना खाना खुद पचाना होता है, उसी तरह ज्ञान को व्यवहार में खुद उतारना पड़ता है। शुरुआत में थोड़ी पूंजी, थोड़ा रिस्क। हमेशा अपनी ट्रेडिंग पूंजी को बचाकर चलें। नियम-अनुशासन तोड़ने और खुद निर्धारित फ्रेमवर्क का पालन नहीं करने पर कामयाबी आपके हाथ से बाहर निकल जाएगी। ट्रेडिंग में यही चीजें तो आपको औरों से भिन्न करती और जीत दिलाती हैं। बाकी तो प्रायिकता का खेल है जो सबके लिए एकसमान है। बाहरी परिस्थितियों पर हमारा वश नहीं। लेकिन उन पर हमारी प्रतिक्रिया हमारे वश में है। बाढ़ सबको बहा ले जाती है। मगर कुशल तैराक उससे बच निकलते हैं। बांध टूट जाए तो पानी गांव के गांव तबाह कर देता है। लेकिन उसी पानी से बिजली भी बनाई जाती है। जो हालात का माकूल इस्तेमाल करते हैं, वे ही आखिरकार जीतते हैं। जीवन का यह सामान्य नियम शेयरों की ट्रेडिंग पर भी लागू होता है। इसलिए यह बिजनेस अपनाते वक्त बेहद सावधानी, अनुशासन, लगन व मेहनत ज़रूरी है।
