हमारी खुशी का मूल स्रोत प्रकृति है। समाज तो बस बिचौलिया है जो बनने-बनते हजारों साल में बना है। इस बात को समझकर हम मूल प्रकृति के जितना करीब जाएंगे, हमारी खुशी उतनी बढ़ती जाएगी।
2011-09-26
हमारी खुशी का मूल स्रोत प्रकृति है। समाज तो बस बिचौलिया है जो बनने-बनते हजारों साल में बना है। इस बात को समझकर हम मूल प्रकृति के जितना करीब जाएंगे, हमारी खुशी उतनी बढ़ती जाएगी।
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