इस समय देश भर में जीएसटी (माल व सेवा कर) लागू करने की तैयारियां चल रही हैं। अगले साल 1 अप्रैल 2011 से इसे अपनाने की घोषणा वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी इस साल के आम बजट में कर चुके हैं। कर की समान दरों के बारे में तरह-तरह के प्रस्ताव आ रहे हैं। कोई कहता है कि इसे 12 फीसदी होना चाहिए। ऐसे में हमें एक बार अपने भारतीय मनीषी कौटिल्य की तरफ भी देख लेने की जरूरत है जिन्होंने अर्थशास्त्र नामक महान ग्रंथ की रचना की थी।
कौटिल्य का कहना था कि प्रजा की कमाई का छठां हिस्सा राजा के खजाने में जाना चाहिए। यह आंकड़ा बैठता है लगभग 16 फीसदी का। अगर मान लीजिए जीएसटी की दर 16 फीसदी रखी जाए और इसका आधा-आधा हिस्सा यानी 8-8 फीसदी केंद्र और राज्य सरकारों का हो जाएगा तो कैसा रहेगा? यकीनन कौटिल्य के जमाने के हालात अलग थे और आज अलग हैं। आज की अर्थव्यवस्था काफी जटिल हो चुकी है। फिर भी पुराने से सबक तो लिया ही जा सकता है। कौटिल्य ने शराब से लेकर जुए की कमाई पर ज्यादा कर लगाने की बात कही थी। तो क्या आज हम विलासिता की चीजों पर यह नियम लागू नहीं कर सकते?
फैसला हमारे नीति-नियामकों को करना है। प्रणब मुखर्जी खुद गांव के रहनेवाले हैं। परंपरा में यकीन रखते हैं। विद्वान हैं। अक्सर कौटिल्य को अपने बजट भाषण में उद्धृत करते हैं। इसलिए संभव है कि जीएसटी की दरों का फैसला करते वक्त उनकी नजर कौटिल्य के सूत्र पर भी चली जाए।
बात तो आपने पते की कही आपने।