असंख्य गुरु हमारे अंदर बैठे हैं और हम उन्हें बाहर तलाशते रहते हैं। कभी रहे होंगे पहुंचे हुए संत और फकीर। अभी तो सब छलिया हैं, धंधेबाज हैं। वैसे भी प्रतिभा को द्रोणाचार्य से ज्यादा उनकी प्रतिमा निखारती है।
2010-07-23
असंख्य गुरु हमारे अंदर बैठे हैं और हम उन्हें बाहर तलाशते रहते हैं। कभी रहे होंगे पहुंचे हुए संत और फकीर। अभी तो सब छलिया हैं, धंधेबाज हैं। वैसे भी प्रतिभा को द्रोणाचार्य से ज्यादा उनकी प्रतिमा निखारती है।
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इस प्रकार की धारणा मन से निकाल दो…
संसार में कोई किसी को नहीं छलता है….
हर व्यक्ति अपने इस जन्म या पूर्व जन्म के
कर्म द्वारा स्वयं छला जाता है……
ऎसे विचार मात्र से मनुष्य से
पाप-कर्म हो जाता है!!
अपने पर विश्वास न हो तो बाहर गुरु ढूढ़ने लगते हैं लोग।