कंपनियों और म्यूचुअल फंडों की यारी पर सेबी ने लगाई नई खरोच

पूंजी बाजार नियामक संस्था ने तय किया है कि म्यूचुअल फंडों की लिक्विड स्कीमों (छोटी अवधि की ऋण स्कीमों) के खाते में जब तक निवेश की पूरी रकम नहीं आ जाती है, तब तक उसके एवज में यूनिटें नहीं जारी की जा सकती हैं। अभी तक होता यह है कि दिन में नियत समय तक पैसा आए या न आए, म्यूचुअल फंड इन स्कीमों के निवेशकों के नाम यूनिटें आवंटित कर देते हैं। वे इस भरोसे पर काम करते हैं कि बाद में स्कीम के खाते में रकम आ ही जाएगी। कारण यह है कि ऐसी लिक्विड स्कीमों में ज्यादातर बड़ी कंपनियां ही अपनी अतिरिक्त रकम लगाती हैं। उनके साथ म्यूचुअल फंडों का रोज-ब-रोज का साबका पड़ता है। इसलिए उनके बीच यारी-दोस्ती का रिश्ता बन जाता है।

असल में कॉरपोरेट क्षेत्र इन मनी-मार्केट या लिक्विड स्कीमों को इसलिए पसंद करता है क्योंकि एक तो इन पर छोटी अवधि की बैक डिपॉजिट से ज्यादा रिटर्न मिलता है, दूसरे इनको जब चाहें कैश भी करा सकते हैं। नोट करने की बात है कि एम्फी (एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया) के अद्यतन आंकड़ों के मुताबिक म्यूचुअल फंडों की कुल 898 मौजूदा स्कीमों से 51 मनी-मार्केट/लिक्विड स्कीमें हैं जिनमें जमाराशि 5,76,713 करोड़ रुपए है जबकि म्युचुअल फंडों की कुल आस्तियां 7,69,384 करोड़ रुपए है। इस तरह कुल स्कीमों की संख्या का 5.68 फीसदी होने के बावजूद मनी-मार्केट/लिक्विड स्कीमों में जमाराशि कुल रकम की 74.96 फीसदी है। इसी बात से समझा जा सकता है कि शुक्रवार को जारी सेबी के नए सर्कुलर से म्यूचुअल फंडों को कितनी किरकिरी हुई होगी।

कई फंड हाउसों ने अपनी पहचान न जाहिर करते हुए कहा है कि इस फैसले से पूरे उद्योग को गहरा धक्का लगेगा और इससे काम का पूरा ढर्रा बदलना पड़ेगा। उन्होंने इसे म्यूचुअल फंडों पर किया गया सेबी का नया हमला बताया है। दूसरे ने कहा कि बैंकों का जो ढर्रा है उसमें दिन के कट-ऑफ समय से पहले रकम आना बहुत मुश्किल है। इसलिए इससे म्यूचुअल फंडों को नुकसान होगा। लेकिन सेबी की सोच के पीछे तर्क यह है कि ऐसी स्कीमों में एक-एक दिन का ब्याज गिना जाता है। इसलिए अगर रकम जब तक स्कीम के खाते में नहीं आ जाती है, तब तक उसे निवेशित दिखाकर यूनिटें जारी कर देना संकट का सबब बन सकता है।

सेबी की राय से कुछ म्यूचुअल फंड ही इत्तेफाक रखते हैं। जैसे, प्रामेरिका म्यूचुअल फंड में फिक्स्ड इनकम के प्रमुख महेंद्र जाजू के मुताबिक इससे लिक्वड स्कीमों में धन का प्रवाह जरूर सीमित होगा, लेकिन अभी तक की व्यवस्था में निहित जोखिम खत्म हो जाएगा। आईएनजी म्यूचुअल फंड में फिक्स्ड इनकम के प्रमुख के रामनाथन का मानना है कि इससे बहुत फर्क नहीं पड़ेगा। बहुत बार रकम के ट्रांसफर में समय इसलिए लगता है क्योंकि कुछ बैंकों के साथ हमारी सीधी क्रेडिट सुविधा नहीं होती। अब हमें ज्यादातर बैंक खातों के साथ सीधी क्रेडिट सुविधा हासिल करनी होगी ताकि फंड ट्रांसफर में ज्यादा वक्त न लगे। सेबी के कदम से हमें अपना सिस्टम और बेहतर बनाने में मदद मिलेगी और परिचालन जोखिम कम हो जाएगा।

हालांकि सेबी ने नया नियम लागू करते हुए म्यूचुअल फंडों की सहूलियत के लिए दिन का कट-ऑफ समय 12 बजे दोपहर से बढ़ाकर 2 बजे कर दिया है। अगर स्कीम के खाते में रकम 2 बजे से पहले आ जाती है तो पिछले दिन के एनएवी (शुद्ध आस्ति मूल्य) के हिसाब से यूनिटें जारी की जाएंगी और 2 बजे के बाद खाते में रकम आने पर उसी दिन की समाप्ति पर निकाले गए एनएवी के आधार पर यूनिटें दी जाएंगी। अगर निवेश की रकम एक करोड़ रुपए से ज्यादा हुई तो कट-ऑफ समय का कोई मतलब नहीं हुआ यानी दिन में कभी स्कीम के खाते में वह राशि आए, उसके एवज में उसी दिन के अंत के एनएवी के हिसाब से यूनिटें जारी की जाएंगी।

सेबी ने एक और अहम फैसला करते हुए म्यूचुअल फंडों की इंटरवल स्कीमों की लिस्टिंग जरूरी कर दी है। अभी तक इनका स्वरूप ओपन एंडेड स्कीम का रहा है। इन्हें सब्सक्राइब करने की मीयाद सीमित रहती है। लेकिन एक तय ट्रांजैक्शन अवधि के बाद म्यूचुअल फंड किसी भी कामकाजी दिन में निश्चित शुल्क या लोड लेकर इनकी पुनर्खरीद या विमोचन करते रहे हैं। सेबी ने इन्हें क्लोज एंडेड स्कीम माना है। उसने फैसला किया है कि ट्रांजैक्शन अवधि कम से कम दो कामकाजी दिन की रहेगी और इंटरवल स्कीम या प्लान की अवधि कम से कम 15 दिन होनी चाहिए। इन स्कीमों से निवेशकों को निकलने का मौका मिल सके, इसलिए इनकी लिस्टिंग जरूरी कर दी गई है। सेबी ने इन स्कीमों में विमोचन और निवेश प्रपत्रों के मिसमैच (एसेट-लायबिलिटी मिसमैच) को दूर करने का भी उपाय किया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *