पूंजी बाजार की नियामक संस्था, सेबी ने एमसीएक्स स्टॉक एक्सचेंज को बीएसई या एनएसई की तरह इक्विटी शेयरों और ऋण प्रपत्रों वगैरह में ट्रेडिंग की इजाजत देने से इनकार कर दिया है। यही नहीं, उसने गुरुवार को जारी किए गए अपने 68 पन्नों के आदेश में उसे बार-बार बेईमान कहा है। एक्सचेंज के सारे तर्कों को सेबी के पूर्णकालिक निदेशक के एम अब्राहम ने इस आधार पर खारिज कर दिया है कि अगर सेबी संतुष्ट नहीं है तो देश का कानून उसे कोई भी फैसला लेने की छूट देता है। अब्राहम अपने तर्कों को यहां तक खींच कर ले गए हैं कि केंद्र सरकार और सेबी की तरह स्टॉक एक्सचेंज भी ‘स्टेट’ या राजसत्ता की श्रेणी में आते हैं। इसलिए उसे कुछ ‘बेईमान’ व निहित स्वार्थ वाले लोगों के हाथ में नहीं सौंपा जा सकता।
सेबी ने यह आदेश जारी करने के साथ ही बॉम्बे हाईकोर्ट की तरफ से 10 अगस्त को जारी की गई उस हिदायत का पालन कर दिया है जिसमें कोर्ट ने कहा था कि वह 30 सितंबर तक एमसीएक्स-एसएक्स के आवेदन पर अंतिम फैसला सुना दे। लेकिन अपने आदेश में सेबी ने एमसीएक्स-एसएक्स के दो प्रवर्तकों एमसीएक्स और फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज इंडिया लिमिटेड (एफटीआईएल) के साथ इनके प्रवर्तक जिग्नेश शाह के व्यवहार को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है। हालांकि उसने यह भी स्वीकार किया है कि एमसीएक्स-एसएक्स के प्रबंध निदेशक व सीईओ जोसेफ मैसी ने सेबी पर पक्षपात जैसे आरोप लिखित तौर पर लगाए हैं।
सेबी ने अपने आदेश में कई जगह एमसीएक्स-एसएक्स के बारे में कहा है कि वह ‘फिट एंड प्रॉपर’ नहीं है। बता दें कि एमसीएक्स-एसएक्स ने 7 अप्रैल 2010 को सेबी के पास आवेदन भेजा था कि उसने स्टॉक एक्सचेंज के मालिकाने को व्यापक बनाने से जुड़ी शर्तें पूरी कर ली हैं, इसलिए उसे इक्विटी व अन्य प्रतिभूतियों में ट्रेडिंग की इजाजत दे दी जाए। उसने यह भी कहा था कि एक्सचेंज की पूंजी का पुनर्गठन सेबी के ही एक अधिकारी के बताए तरीके से किया गया है। लेकिन सेबी उसके आवेदन पर कुंडली मार कर बैठा रहा तो उसने बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुहार लगा दी कि वह सेबी को जल्दी फैसला लेने को कहे।
सेबी ने अपने अंतिम आदेश में कहा है कि एक्सचेंज के दो प्रवर्तकों ने कहने को अपनी इक्विटी हिस्सेदारी घटाकर 5-5 फीसदी कर ली है। लेकिन अपने बाकी बचे शेयरों को उन्होंने वारंट में बदल लिया है। यही नहीं, उन्होंने दूसरे शेयरधारक से भी कुछ वारंट बायबैक किए हैं। इससे हुआ यह है कि जहां एक्सचेंज के पूंजी पुनगर्ठन से पहले उनकी शेयरधारिता 70.92 फीसदी थी, वहीं अब शेयरधारिता तो कहने को 10 फीसदी हो गई है, लेकिन उनका कुल आर्थिक हित 71.90 फीसदी का हो गया है।
यही नहीं, सेबी के पूर्णकालिक निदेशक के एम अब्राहम का कहना है कि एमसीएक्स और एफटीआईएल दोनों का प्रबंधन भले ही अलग हो, लेकिन इनके असली ‘मैनेजर’ जिग्नेश शाह हैं। इसलिए दोनों प्रवर्तकों को ‘परसन न कंसर्ट’ माना जाएगा। इसलिए उनकी हिस्सेदारी एससीएक्स स्टॉक एक्सचेंज में 10 फीसदी नहीं, ज्यादा से ज्यादा 5 फीसदी ही हो सकती है। सेबी का कहना है कि एक्सचेंज के प्रवर्तक उस तरह काम कर रहे हैं जैसे किसी देश में एक व्यक्ति को 5 किलो सोना लाने की इजाजत हो तो वह अपने साथ लाए गए दस किलो सोने में से 5 किलो दूसरे यात्री को दे दे और एयरपोर्ट के बाहर जाकर उससे वापस ले ले। अब्राहम का कहना है कि एमसीएक्स स्टॉक एक्सचेंज के प्रवर्तकों ने इसी तरह का गैरकानूनी काम किया है।
एमसीएक्स-एसएक्स ने सेबी के फैसले को गलत ठहराया है। उसका कहना के एम अब्राहम ने साल भर पहले उसका आवेदन खारिज करने की धमकी दी थी। उसने सेबी से 16 सितंबर को लिखित रूप से यह जानकारी दी थी। उनका आरोप है कि सेबी एनएसई को बचाने के लिए उसे आगे नहीं बढ़ने दे रहा है और कानूनी नुक्त निकालकर उसका आवेदन खारिज कर रहा है। वैसे, अब्राहम ने अपने आदेश में कानून की तमाम धाराओं के साथ अदालतों के कई फैसलों का जिक्र किया है। लेकिन बेईमान, संतुष्ट न होने जैसी मनमाफिक बातें भी कही हैं। जहां उन्हें कोई जवाब नहीं सूझा तो उन्होंने कह दिया है कि सेबी इस बात का जवाब देना जरूरी नहीं समझती।