पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की बड़ी मुश्किल आसान कर दी है। अब शेयर बाजारों में लिस्टेड कोई भी कंपनी न्यूनतम 25 फीसदी पब्लिक शेयरधारिता हासिल करने के लिए सीधे अपने शेयर बेच सकती है। इसके लिए उसे कोई पब्लिक इश्यू लाने की जरूरत नहीं होगी। वह ऐसा इंस्टीट्यूशन प्लेसमेंट प्रोग्राम (आईपीपी) या स्टॉक एक्सचेंजों के जरिए ब्रिकी प्रस्ताव लाकर कर सकती है।
सेबी के बोर्ड ने मंगलवार को अपनी बैठक में यह फैसला कर लिया। यूं तो यह फैसला सारी लिस्टेड कंपनियों के लिए है। लेकिन इसका तात्कालिक व्यावहारिक लाभ सार्वजनिक क्षेत्र की उन कंपनियों को मिलेगा जो बाजार की खराब हालत के चलते अपना एफपीओ (फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर) नहीं ला पा रही थी। इसके चलते इस साल के बजट में घोषित यह लक्ष्य अधर में लटक गया था कि मार्च 2012 तक सरकारी कंपनियों के विनिवेश से 40,000 करोड़ रुपए जुटाए जाएंगे। अभी तक पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन के एफपीओ से मात्र 1144 करोड़ रुपए जुटाए गए हैं। अब सरकार के लिए ओएनजीसी, इंडियन ऑयल और सेल जैसी कंपनियों के शेयरों को बेचना आसान हो जाएगा।
सेबी बोर्ड ने तय किया है कि आईपीपी के जरिए पब्लिक की हिस्सेदारी 10 फीसदी तक बढ़ाई जा सकती है। इसके तहत नए शेयर भी जारी किए जा सकते हैं और प्रवर्तक अपनी हिस्सेदारी भी बेच सकते हैं। सरकार विनिवेश कार्यक्रम में ये दोनों ही तरीके इस्तेमाल करती है। आईपीपी के अंतर्गत शेयर केवल क्यूआईबी (क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशन खरीदार) को ही बेचे जा सकते हैं। इसका भी कम से कम 25 फीसदी हिस्सा म्यूचुअल फंडों और बीमा कंपनियों के लिए आरक्षित होना चाहिए। ऑफर लाने के कम से कम एक दिन पहले कंपनी को सांकेतिक मूल्य या मूल्य का दायरा घोषित करना होगा। हर आईपीपी में कम से कम 10 आवंटी होने चाहिए। किसी भी एक आवंटी को ऑफर का 25 फीसदी से ज्यादा भाग नहीं दिया जा सकता।
दूसरा तरीका यह है कि कंपनियां सीधे स्टॉक एक्सचेंजों के जरिए शेयरों को बेचने का प्रस्ताव पेश कर दें। इसके लिए एक्सचेंज में मूल कारोबार से अलग सुविधा या विंडो दी जाएगी। लेकिन यह सारा कारोबार बाजार की सामान्य ट्रेडिंग अवधि में ही होगा। इसके अंतर्गत कंपनी को अपनी चुकता पूंजी का कम से कम एक फीसदी हिस्सा बेचने की पेशकश करनी होगी। लेकिन इसकी राशि किसी भी हालत में 25 करोड़ रुपए से कम नहीं होनी चाहिए। इसमें एक तरह की नीलामी होगी जिसमें प्रवर्तक या उसके समूह से जुड़ी कंपनियां भाग नहीं ले सकतीं। हर बोली के लिए पूरी रकम कैश मार्जिन के रूप जमा करानी होगी। सेटलमेंट स्टॉक एक्सचेंज के क्लियरिंग प्रणाली के माध्यम से होगा।
इस सुविधा का भी उपयोग न्यूनतम पब्लिक हिस्सेदारी पाने के लिए किया जा सकता है। लेकिन बाजार पूंजीकरण के लिहाज से सबसे बड़ी 100 कंपनियों के प्रवर्तक ही इसका सहारा ले सकते हैं। जाहिर कि इस नियम का मूल मकसद भी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को फायदा पहुंचाना है। सेबी ने एक अन्य फैसले के तहत शेयरों के बायबैक को राइट्स इश्यू जैसा बना दिया है। इसमें कंपनी राइट्स इश्यू की तरह घोषित करेगी कि वह अपने शेयरधारकों से किस अनुपात में शेयर वापस खरीदेगी। इसके लिए वह बाकायदा रिकॉर्ड तिथि की भी घोषणा करेगी।