पेनाल्टी उन्हें मिली, हम लुटे तो लुटे!

बाजार 473.59 अंक बढ़कर 18,000 के सबसे नाजुक स्तर को पार कर गया और 18,202.20 पर बंद हुआ है। मुद्रास्फीति, बढ़ती ब्याज दर की फिक्र और बाजार में 10 फीसदी की गिरावट के अंदेशे को धता बताते हुए अचानक एफआईआई व डीआईआई (घरेलू वित्तीय संस्थाओं) की खरीद चालू हो गई है। यहां तक कि खबरों के मुताबिक बाजार नियामक, सेबी ने भी 25 कंपनियों के शेयरों में आई गिरावट की जांच शुरू कर दी है।

ऐसा होना अपरिहार्य था। हम अधिक मुद्रास्फीति और ऊंची ब्याज दरों के आदी हो चुके हैं। इसलिए बाजार गिरावट की यह वजह कतई नहीं थी। असली वजह हमारी औपनिवेशिक सोच और शिकंजा है। मुझे लगता है कि हमने गोरी चमड़ी वालों और उनके धन को ज्यादा ही सिर चढ़ा रखा है। हमें समझना चाहिए कि वे अब हम पर ज्यादा निर्भर हैं और अपनी मुश्किलों के निकलने के लिए हमारी तरफ मुखातिब हैं। इसके बावजूद वे हमारे बाजार को नियंत्रित किए हुए हैं।

हमें शिवाजी की तरह अपनी बटालियन तैयार करनी चाहिए और तब हम इनसे बेहतर तरीके से निपट सकेंगे। व्यापक अवाम में बिखरी देश की पूंजी को शेयर बाजार की तरफ खींचना होगा। 130 सालों के बदला सिस्टम ने कभी भी लोगों को इतना कमजोर व खोखला नहीं बनाया था जितना कि दस साल के डेरिवेटिव सिस्टम ने बना दिया है। मौजूदा स्वरूप में डेरिवेटिव सिस्टम हमारे पूंजी बाजार का कैंसर बन गया है।

मैं कम से कम 100 ऐसे लोगों से मिला हूं जिन्होंने स्टॉक्स व जिंसों के डेरिवेटिव सौदों में भारी सट्टेबाजी के चलते या तो अपना सब कुछ गवां दिया है या तो एकदम पंगु होकर बैठ गए हैं। अभी पिछले ही हफ्ते मैं ऐसे दो मरीजों से अस्पताल में मिलने गया था जो ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। अपने निवेशक बंधुओं से मैं पूछना चाहता हूं कि आपको कमाने की इतनी जल्दी क्यों है? आप क्यों डेरिवेटिव सौदों में ज्यादा से ज्यादा उलझना चाहते हैं? यह जुनून, यह ऊर्जा कहीं और लगा दें तो शायद आपकी जिंदगी काफी आसान हो जाएगी। आखिर में कोई आपकी मदद नहीं करता।

मसलन, इकनॉमिक टाइम्स ने आज खबर दी है कि सेबी रिलायंस पेट्रोलियम (आरपीएल) में हुई इनसाइडर ट्रेडिंग को लेकर रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) पर 1500 करोड़ रुपए की पेनाल्टी लगा सकती है क्योंकि उसमें दावा किया गया है कि आरआईएल ने इसमें 500 करोड़ रुपए बनाए थे। अगर पेनाल्टी लगा दी गई तो सेबी को 1500 करोड़ रुपए मिल जाएंगे। लेकिन उन निवेशकों का क्या होगा जिन्होंने इस गोरखधंधे में अपनी पूंजी गंवा दी है? क्या निवेशकों की दिक्कतों का यह अंतिम समाधान है?

सीएसएफबी व डीएसपी जैसे कुछ एफआईआई समेत तमाम ऑपरेटरों पर किसी न किसी नियम को तोड़ने के लिए पेनाल्टी लगाई जा चुकी है। लेकिन इस पेनाल्टी से रिटेल या छोटे निवेशकों को क्या कोई राहत मिली है? दूसरी तरफ 1994 के बाद से 1600 कंपनियां बाजार से सस्पेंड हो चुकी हैं और इनमें लोगों (20 लाख से ज्यादा शेयरधारकों) के करीब 60,000 करोड़ रुपए फंस गए हैं। ऐसा क्या उपाय हो सकता है जिससे निवेशकों को अपनी डूबी रकम वापस मिल जाए?

क्या यह उनकी गलती थी कि उन्होंने ऐसी लिस्टेड कंपनी के शेयरों में निवेश किया जो सस्पेंड होकर गायब हो गई? हाल ही में लापता घोषित हो चुकी ऐसी ही एक कंपनी से मेरा साबका पड़ा जो कंपनी लॉ बोर्ड (सीएलबी) में मुकदमा लड़ रही है और उसके सातों निदेशक इस मुकदमे की कार्यवाही में मौजूद रहते हैं। इस कंपनी की आस्तियां 100 करोड़ रुपए से ज्यादा की हैं।

इसलिए निवेश के लिए स्टॉक्स के चयन में बहुत सावधानी बरतें। उसका पी/ई अनुपात, ट्रैक रिकॉर्ड और दूसरे पहलुओं पर गौर करें। कोई स्टॉक सिर्फ इसलिए न खरीद लें कि उसमें भारी वोल्यूम चल रहा है और उसके पीछे किसी का हाथ है। बी ग्रुप के शेयर आपको ज्यादा रिटर्न दे सकते हैं।

आशावाद वो जुनून, वो भरोसा है कि हम दयनीय से दयनीय अवस्था में भी ताल ठोंककर कहते हैं कि सब ठीक हो जाएगा।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)

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