भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने म्यूचुअल फंडों द्वारा विभिन्न स्कीमों में ली जानेवाली निवेश प्रबंधन और सलाह सेवाओं के लिए सीमा बांध दी है। साथ ही उसने स्कीम के खुले रहने से लेकर रिफंड व स्टेटमेंट तक भेजने का समय घटा दिया है। सेबी ने गुरुवार को एक अधिसूचना जारी कर म्यूचुअल फंडों के लिए संशोधित रेगलेशन जारी कर दिया। गजट में प्रकाशित होने के साथ 29 जुलाई 2010 से नए नियम लागू भी हो गए हैं।
संशोधित रेगुलेशन के मुताबिक अब इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस) के अलावा कोई भी म्यूचुअल फंड स्कीम 15 दिन से अधिक नहीं खुली रह सकती। अभी तक यह अवधि 45 दिन की थी। म्यूचुअल फंड को आवेदन राशि में से इस्तेमाल न किया गया हिस्सा निवेशक को पांच कामकाजी दिनों के भीतर रिफंड कर देना होगा। अभी तक यह अवधि छह हफ्ते की थी। इसके बाद रिफंड में देरी पर म्यूचुअल फंड को 15 फीसदी सालाना की दर से ब्याज देना होगा। अभी तक म्यूचुअल फंड को आवंटन पानेवाले यूनिटधारक को 30 दिन के भीतर यूनिटों के विवरण समेत एकाउंट का स्टेटमेंट दे देना होता था। अब यह समय घटाकर पांच कामकाजी दिन कर दिया गया है।
इसके अलावा सेबी ने तय किया है कि फंड ऑफ फंड्स स्कीम में म्यूचुअल फंड या उसकी एसेट मैनेजमेंट कंपनी (एएमसी) का कुल खर्च मैनेजमेंट फीस को मिलाकर शुद्ध आस्तियों के रोजाना स्तर या साप्ताहिक औसत के 0.75 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता। इसमें स्कीम का इश्यू और रिडेम्प्शन खर्च शामिल नहीं है। सारे खर्च 2.50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकते। इंडेक्स या ईटीएफ के लिए निवेश प्रबंध व सलाह फीस की यह सीमा साप्ताहिक औसत की 1.5 फीसदी रखी गई है। अन्य स्कीमों के लिए यह सीमा रोजाना या सप्ताह की औसत आस्तियों के पहले 100 करोड़ रुपए पर 2.5 फीसदी, इसके बाद के 300 करोड़ पर 2.25 फीसदी, अगले 300 करोड़ रुपए पर 2 फीसदी और बाकी रकम पर 1.75 फीसदी बांधी गई है।