सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के 11 सरकारी चीनी मिलों के निजाकरण के खिलाफ दायर याचिका को स्वीकार कर लिया। लेकिन साथ ही कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 3 जून को इन 11 चीनी मिलों की नीलामी के लिए निविदा प्रक्रिया शुरू कर सकती है। लेकिन अंतिम नतीजा इस बात से तय होगा कि खंडपीठ आखिर में क्या फैसला सुनाती है।
असल में पत्रकार राजीव कुमार मिश्रा ने चीनी मिलों को निजी हाथों में सौंपने के उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले को चुनौती दे रखी है। उन्होंने इस पूरी प्रक्रिया में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है और उत्तर प्रदेश चीनी उपक्रम (अधिग्रहण) (संशोधन) अधिनियम 2009 की धारा 3-ए और 3-बी को चुनौती है। इन धाराओं के तहत राज्य सरकार को अपने अधीन आनेवाली चीनी मिलों को बेचने की सहूलियत मिली हुई है।
उनकी याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है और उस पर दो सदस्यीय पीठ विचार कर रही है। इस पीठ में जस्टिस जी एस सिंघवी और जस्टिस सी के प्रसाद शामिल हैं। खंडपीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार 11 चीनी मिलों के विनिवेश की प्रक्रिया 3 जून से शुरू कर सकती है। लेकिन राज्य सरकार भी जो भी कदम उठाएगी, वह संबंधित याचिका पर खंडपीठ के अंतिम फैसले के अधीन होगा। इससे अब भी भ्रम बना हुआ है कि कहीं सुप्रीम कोर्ट आखिर में मिलों की बिक्री ही न खारिज कर दे।
असल में उत्तर प्रदेश सरकार साल 2007 से ही 33 सरकारी चीनी मिलों को बेचने में लगी हुई है। लेकिन बहुत सारी मिलें घाटे में हैं और कोई उन्हे पूछनेवाला नहीं मिल रहा। राज्य की केवल 11 चीनी मिलें चालू हालत में हैं और उन्हीं को खरीदने में निजी क्षेत्र की दिलचस्पी है। सरकार अपनी चीनी मिलें के लिए आईएफसीआई और अंतरराष्ट्रीय सलाहकार फर्म अर्न्स्ट एंड यंग की मदद भी ले चुकी है।
आज क्या निजी और क्या सरकारी ? कुछ दिनों बाद न्यायपालिका भी निजी हाथों में सौफ दी जाएगी और आम जनता को सरे आम फांसी दे दिया जायेगा फिर ये धन कुबेर इन नेताओं का और नेता धन कुबेरों का खून पियेंगे ?