पहली जुलाई से बैंकों में लागू होनेवाले बेस रेट के एलान का सिलसिला मंगलवार से शुरू हो गया। देश के सबसे बड़े बैंक, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने घोषित किया है कि उसका बेस रेट 7.5 फीसदी सालाना होगा। इसका मतलब यह हुआ कि कृषि ऋणों के अलावा एसबीआई कोई भी ऋण 7.5 फीसदी के कम ब्याज पर नहीं देगा। एसबीआई के फैसले के बाद दूसरे सभी बैंक आज और कल में अपने बेस की घोषणा कर देंगे क्योंकि गुरुवार से तो नई ब्याज दर की प्रणाली लागू ही हो जानी है।
इस बीच सार्वजनिक क्षेत्र के प्रमुख बैंक पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) ने अपना बेस रेट 8 फीसदी तय कर दिया है। उसका कहना है कि किसी भी लेंडिंग स्कीम में ब्याज की दर बेस रेट और स्प्रेड को जोड़कर तय की जाएगी। यूनियन बैंक ने भी अपना बेस रेट 8 फीसदी रखा है। निजी क्षेत्र के दूसरे सबसे बड़े बैंक एचडीएफसी बैंक ने संकेत दिया है कि वह अपना बेस रेट 6.75 फीसदी भी रख सकता है। उसके कार्यकारी निदेशक परेश सुखतनकर का कहना है कि नई ब्याज दर से उसकी लाभप्रदता पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। उनका कहना है कि ज्यादातर बैंक अपना बेस रेट 6.75 फीसदी से 8 फीसदी तक रखेंगे।
पहले एसबीआई को अपने बेस रेट की घोषणा 15 जून को करनी थी। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया तो संसद की स्थाई समिति तक ने पिछले हफ्ते उससे पूछ डाला कि वह ऐसा क्यों नहीं कर रहा है? क्या वह पहले निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा बेस रेट घोषित किए जाने का इंतजार कर रहा है? स्थाई समिति का कहना था कि बैंकों को अपने बेस रेट अमल की तारीख से पहले घोषित कर देने चाहिए थे ताकि कर्ज लेनेवालों को पूरी जानकारी के साथ सोचने व फैसला लेने का मौका मिल जाता।
एसबीआई के सीएमडी ओ पी भट्ट ने कल ही कह दिया था कि बैंक अपना बेस रेट 8 फीसदी या इससे कम रख सकता है और प्रबंधन इसे 7.5 या 7.75 फीसदी रखने पर विचार-विमर्श कर रहा है। एसबीआई बेस रेट कम रखने में देश के सभी सरकारी बैंकों में सबसे बेहतर स्थिति में है क्योंकि उसकी कुल जमा में कासा जमा का हिस्सा सबसे ज्यादा 48 फीसदी के आसपास है। निजी बैंकों में लगभग 52 फीसदी कासा जमा के साथ एचडीएफसी बैंक सबसे फायदे की स्थिति में है। कासा जमा बैंकों के लिए धन का सबसे सस्ता स्रोत है जिस पर उन्हें ज्यादा से ज्यादा 3.5 फीसदी ब्याज देनी पड़ती है।
बता दें कि हर बैंक कुछ तय मानकों के आधार पर अपने बेस रेट का फैसला कर सकता है और उसने ऐसा किस आधार पर किया है, इसकी घोषणा उसे अपनी वेबसाइट पर करनी होगी। हालांकि एसबीआई ने अभी तक ऐसा नहीं किया है। बेस रेट का मकसद बैंकों की ब्याज दरों में पारदर्शिता लाना है। साथ ही यह भी कि रिजर्व बैंक द्वारा लिए गए मौद्रिक नीति संबंधी फैसलों का असर नीचे ग्राहक तक सही तरीके व उचित समय में पहुंच सके।
अभी तक होता यह था कि रेपो व रिवर्स रेपो में कमी के बावजूद उसका असर होने तक काफी वक्त लग जाता था। यह भी परेशान करनेवाली बात थी कि बैंक अपने तीन चौथाई से ज्यादा कर्ज बेंचमार्क प्राइम लेंडिंग रेट (बीपीएलआर) से कम ब्याज पर देते थे। इस चक्कर में बड़ी कंपनियों को तो 12.75 फीसदी बीपीएलआर होने के बावजूद 6.75 फीसदी ब्याज तक पर कर्ज मिल जाते थे, लेकिन लघु व मध्यम उद्योग (एसएमई) क्षेत्र की इकाइयों को 14-16 फीसदी ब्याज पर कर्ज मिलते थे। आम उपभोक्ता को भी कर्ज पर बड़े कॉरपोरेट घरानों की अपेक्षा ज्यादा ब्याज देना पड़ता था। इस तरह कर्ज के मामले में छोटी इकाइयां व आम उपभोक्ता बड़ी कंपनियों को सब्सिडाइज कर रहे थे। बेस रेट के लागू होने से यह सिलसिला रुक जाएगा, ऐसा रिजर्व बैंक का मानना है। 1 जुलाई 2010 से होम लोन में बैंकों की टीजर (8 फीसदी तक ब्याज वाली) स्कीमें भी खत्म हो जाएंगी।