सत्यम का विलय टेक महिंद्रा के साथ छह महीने में, शेयरों में तेजी

सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज के अंतिम कायाकल्प की तैयारी है। अप्रैल 2009 में महिंद्रा समूह ने इसे खरीदने के बाद इसका नाम बदल कर महिंद्रा सत्यम कर दिया था और छह से आठ महीने के भीतर बाकायदा इसका विलय टेक महिंद्रा में कर दिया जाएगा। हालांकि इसकी कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन बाजार के सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि 29 सितंबर महिंद्रा सत्यम का निदेशक बोर्ड अपनी बैठक में वित्त वर्ष 2008-09 और 2009-10 के नतीजों को मंजूरी देगा और इनकी घोषणा के साथ ही कंपनी को टेक महिंद्रा में मिलाने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।

महिंद्रा सत्यम (तत्कालीन नाम सत्यम कंप्यूटर) ने जनवरी 2009 में ही कंपनी के संस्थापक चेयरमैन रामालिंगा राजू द्वारा खातों में हेराफेरी करने की बात स्वीकार किए जाने के बाद से नतीजे घोषित नहीं किए हैं। अप्रैल 2009 में टेक महिंद्रा ने उसका अधिग्रहण कर लिया। लेकिन सारी उथल-पुथल और लांछनों के बावजूद महिंद्रा सत्यम अपने ज्यादातर ग्राहकों और तंत्र को बनाए रख सकी। शुक्रवार को बाजार पूरे दिन कंपनी के अच्छे भविष्य की चर्चाओं में मशगूल रहा। नतीजतन, महिंद्रा सत्यम के जो शेयर महीनों से 80-90 रुपए पर डोल रहे थे, एकबारगी 13.02 फीसदी बढ़कर 107.65 रुपए पर पहुंच गए। साथ ही टेक महिंद्रा के शेयरों में भी 8.17 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई और उसका बंद भाव 787.40 रुपए रहा।

असल में महिंद्रा सत्यम को खरीदने के बाद ही टेक महिंद्रा की तरफ से कहा जा चुका है कि वित्त वर्ष 2008-09 और 2009-10 के नतीजों के साथ खातों की स्थिति साफ हो जाने पर वह कंपनी का विलय अपने साथ कर सकती है। वैसे भी एक ही समूह की समान काम में लगी दो कंपनियों के अलग-अलग रहने का कोई तुक नहीं है। कंपनी लॉ बोर्ड ने महिंद्रा सत्यम को 30 सितंबर 2010 तक अपने नतीजे पेश करने की मोहलत दी थी और इससे एक दिन पहले 29 सितंबर को कंपनी अपने स्थगित नतीजों की घोषणा करने जा रही है।

बता दें कि कंपनी के संस्थापक चेयरमैन रामालिंगा राजू फिलहाल जेल में हैं। उन्होंने सनसनीखेज तरीके से चारो तरफ से घिर जाने के बाद जनवरी 2009 में कंपनी कर्मचारियों को भेजे गए ई-मेल में स्वीकार किया था कि उन्होंने कंपनी के खातों में 7800 करोड़ रुपए से ज्यादा की हेराफेरी की है। साथ ही पिछले कई सालों से कंपनी के लाभ को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है। इस घोषणा के साथ पूरे भारतीय कॉरपोरेट जगत को जैसे सांप सूंघ गया। हर तरफ कॉरपोरेट गवर्नेंस की चर्चा की जाने लगी। लेकिन सरकार ने बड़े कारगर तरीके से समस्या को सुलझाया। कंपनी का नियंत्रण सरकार द्वारा नियुक्त बोर्ड को सौंपा गया जिसमें किरन कार्णिक से लेकर सी अच्युत और दीपक पारेख जैसे अनुभवी व निपुण लोग शामिल थे। इन्होंने तीन महीनों के भीतर ही खुली निविदा प्रक्रिया के जरिए कंपनी को टेक महिंद्रा के हाथों में सौंप दिया।

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