बैक्टीरिया व वायरस हर तरफ फैले रहते हैं। लेकिन जिनके शरीर का एम्यून सिस्टम या प्रतिरोध तंत्र मजूबत रहता है, उनका ये कुछ नहीं बिगाड़ पाते। हां, उनके भी शरीर को बैक्टीरिया व वायरस से बराबर युद्धरत रहना पड़ता है। इसी तरह कंपनियों को भी बराबर बदलते हालात व समस्याओं से दो-चार होना ही पड़ता है। प्रबंधन तंत्र दुरुस्त हो, नेतृत्व दक्ष हो तो कंपनी हर समस्या के बाद और निखरकर सामने आती है, जबकि प्रबंधन तंत्र खराब व कमज़ोर हो तो कंपनी का बेड़ा गरक हो जाता है।
सास्केन कम्युनिकेशंस सूचना तकनीक व संचार से जुड़ी स्मॉल कैप कंपनी है। 1989 से मैदान में है और बहुत सारे उत्पाद बनाती और सॉफ्टवेयर सेवाएं देती हैं। देश में बैंगलोर, चेन्नई, हैदराबाद, पुणे व नोएडा से काम करती है तो विदेश में नोकिया के देश फिनलैंड और दक्षिण कोरिया व अमेरिका तक पहुंची हुई है। खांटी देशी कंपनी है। 25.80 करोड़ रुपए की इक्विटी में 70.11 फीसदी शेयर पब्लिक और बाकी 29.89 फीसदी शेयर प्रवर्तकों के पास हैं। कहने को इसमें से 5.13 फीसदी पूंजी विदेशी प्रवर्तकों की लगी है। लेकिन विदेशी प्रवर्तक भी मूलतः अनिवासी भारतीय हैं। 50 देशी और 9 विदेशी प्रवर्तकों में मोदी, झावेरी, दोशी, मेहता, देसाई, संघवी, चोकसी व शाह जैसे गुज्जू भाई भरे पड़े हैं।
पिछले दो सालों में कंपनी ने अपने लाभ का स्तर तो बनाए रखा है, लेकिन उसकी आय घटती गई है। उसने 2008-09 में 479.75 करोड़ रुपए की परिचालन आय पर 25.74 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। अगले दो सालों में शुद्ध लाभ बढ़कर 2009-10 में 76.03 करोड़ और 2010-11 में 89.68 करोड़ रुपए हो गया। लेकिन परिचालन आय घटकर क्रमशः 401.51 करोड़ और 394.20 करोड़ रुपए हो गई। कंपनी के चेयर व प्रबंध निदेशक राजीव मोदी ने इसकी दो वजहें बताई हैं। एक तो पिछले तीन-चार सालों में जिन नेटवर्क उपकरण बनानेवाली कंपनियों – नॉरटेल, अल्काटेल, ल्युसेंट वगैरह के साथ सास्केन का रिश्ता था, वे बदलते बाजार हालात के चलते काफी तकलीफ से गुजरी हैं। दूसरे कंपनी एप्लीकेशंस व क्लाउड के बढ़ते असर को पकड़ नहीं सकी क्योंकि वह अपने पुराने ग्राहकों से ही चिपकी हुई थी।
लेकिन कंपनी अब इन हालात व सोच से उबर गई है। वह ऑटोमोबाइल, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, रिटेल व अन्य सेगमेंट को पकड़ रही है। वह टेलिकॉम नेटवर्क के लिए स्मार्ट टीवी व ऊर्जा प्रबंधन जैसी सेवाएं देने लगी है। वैसे, इस साल अभी तक नई पहल का ज्यादा असर नहीं नजर आया है। जून 2011 की तिमाही में उसकी परिचालन आय में 9.34 फीसदी और शुद्ध लाभ में 54.41 करोड़ रुपए की कमी आई थी। सितंबर 2011 की तिमाही में उसकी परिचालन आय तो 1.01 फीसदी बढ़ गई। लेकिन शुद्ध लाभ 49.39 फीसदी घट गया। दिसंबर 2011 की तिमाही के नतीजे उसने 28 जनवरी 2012 को घोषित किए जिनके अनुसार उसकी परिचालन आय 3.52 फीसदी घटकर 94.92 करोड़ रुपए पर आ गई, जबकि शुद्ध लाभ 47.33 फीसदी घटकर 13.23 करोड़ रुपए पर पहुंच गया।
साफ तौर पर पूरा वित्त वर्ष बीते वित्त वर्ष की तुलना में खराब ही रहेगा। शायद यही वजह है कि पिछले साल 27 अप्रैल 2011 को 182.25 रुपए की चोटी पर पहुंचा उसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर 21 दिसंबर 2011 को 91.05 रुपए पर गिरने के बाद ज्यादा संभल नहीं पाया है। कल, 5 मार्च 2012 को यह बीएसई (कोड – 532663) में 121.60 रुपए और एनएसई (कोड – SASKEN) में 121.40 रुपए पर बंद हुआ है। वो भी तब, जब फरवरी के दूसरे हफ्ते में बायबैक की खबर आने के बाद यह शेयर 15 फीसदी से ज्यादा बढ़ चुका है। फिलहाल शेयर की प्रति शेयर बुक वैल्यू बाजार भाव से ज्यादा 152.96 रुपए है। बायबैक का अधिकतम मूल्य कंपनी ने 180 रुपए घोषित किया है।
धंधे पर दबाव के बावजूद कंपनी का दिसंबर 2011 तक के बारह महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) स्टैंड एलोन रूप से 19.57 रुपए और कंसोलिडेट रूप से 23.75 रुपए है। इन भिन्न नतीजों के आधार पर उसका शेयर 6.21 व 5.12 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। निश्चित रूप से इसमें बढ़ने की गुंजाइश है। यह शेयर पिछले पांच सालों के दौरान 584 रुपए और पिछले तीन सालों में 237 रुपए तक ऊपर जा चुका है। उम्मीद यही है कि कंपनी नई बाजार परिस्थितियों में खुद को ढाल देगी। यह उम्मीद इससे भी बनती है कि कंपनी के निदेशक बोर्ड में किरण कार्निक जैसे कुशल व दृष्टा किस्म के लोग शामिल हैं।
शेयर का बायबैक मूल्य 180 रुपए है। हालांकि कंपनी इस भाव पर अपने शेयर वापस खरीदने को बाध्य नहीं है। यह तो अधिकतम मूल्य है जो वह देगी। लेकिन इससे एक धारणा तो बनती है कि इस शेयर का अंतर्निहित मूल्य 180 रुपए है। अगर अगले एक साल में यह 180 रुपए तक पहुंचता है तो 45 फीसदी से ज्यादा का रिटर्न बनता है जो किसी भी हालत में बुरा तो नहीं ही है।
कंपनी पर मात्र 12.49 करोड़ रुपए का कर्ज है और उसका ऋण-इक्विटी अनुपात 0.05 है। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 35,792 है। इसमें से 34,579 यानी 96.6 फीसदी लोग एक लाख रुपए के कम लगानेवाले छोटे निवेशक हैं जिनके पास कंपनी के 21.86 फीसदी शेयर हैं। एफआईआई के पास कंपनी के 4.05 फीसदी और डीआईआई के पास 10.51 फीसदी शेयर हैं।