जिस तरह इंसान का हर वक्त एक जैसा नहीं होता, उसी तरह कंपनियों के साथ भी ऊंच-नीच चलती रहती है। सबेरो ऑर्गेनिक्स गुजरात लिमिटेड की दिसंबर तिमाही कतई अच्छी नहीं रही। उसकी बिक्री 109.41 करोड़ से 15.11 फीसदी घटकर 92.87 करोड़ और शुद्ध लाभ 10.25 करोड़ से 89.85 फीसदी घटकर 1.04 करोड़ रुपए रह गया। कंपनी ने ये नतीजे 14 फरवरी को घोषित किए थे। उसके बाद से इसका शेयर (बीएसई – 524446, एनएसई – SABERORGAN) 45.70 रुपए से गिरता-गिरता कल 21 मार्च 2011 को 37.30 रुपए तक पहुंच गया जो अब तक के 52 हफ्ते का उसका न्यूनतम स्तर है।
इस तात्कालिक कमजोरी के बावजूद कंपनी वित्तीय रूप से मजबूत है। इसका ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस 7.72 रुपए है और कल के बंद भाव 37.40 रुपए पर इसका पी/ई अनुपात मात्र 4.85 निकलता है। कंपनी के शेयर की बुक वैल्यू ही 39.27 रुपए है। कंपनी लाभांश भी बराबर देती रही है। लेकिन उसके निवेशक निश्चित रूप से आज की तारीख में काफी दुखी होंगे क्योंकि साल भर में उसका शेयर आधे से भी ज्यादा नीचे आ गया है। 23 अप्रैल 2010 को वो 88.95 रुपए पर था जो 52 हफ्ते का उसका शिखर है। हालांकि इसके पिछले साल में तेजी से बढ़ता हुआ वह दोगुना भी हो गया था।
यह 1991 में बनी गुजरात की कंपनी है। फसलों की सुरक्षा के संबंधित तमाम रसायन (फंगीसाइड, हर्बीसाइड, इनसेक्टीसाइड और स्पेशयालिटी केमिकल) बनाती है। दुनिया में इन रसायनों के न्यूनतम लागत वाले उत्पादकों में गिनी जाती है। अपना आधे से ज्यादा उत्पादन दुनिया को निर्यात करती है। सरकार ने इसे एक्सपोर्ट हाउस का दर्जा दे रखा है। यूरोप, ब्राजील, अर्जेटीना, फिलीपींस व ऑस्ट्रेलिया में इसकी शाखाएं व दफ्तर हैं।
दिसंबर तिमाही में कंपनी के कामकाज में आए ढीलेपन की खास वजह यह है कि 20 से भी ज्यादा दिनों तक उसके संयंत्र में उत्पादन ठप रहा। असल में कंपनी मजदूरों से लेकर प्रबंधन तक अपने पूरे तंत्र को दुरुस्त करने के लिए क्वेह्स्ट (QUEHST – क्वालिटी, एनवॉयरमेंट, हेल्थ, सेफ्टी व टेक्नोलॉजी) कार्यक्रम चलाती है। यह उसने अमेरिकी कृषि रसायन कंपनी डाउ (DOW) से सीखा है। कंपनी का मानना है कि इस कार्यक्रम से कुछ दिनों के ही भले ही उत्पादन रुकता हो, लेकिन लंबे समय में इससे उत्पादकता बढ़ जाती है।
कंपनी गुजरात औद्योगिक विकास क्षेत्र सरीगाम में परियोजनाओं के विस्तार पर 27 करोड़ खर्च करने जा रही है, जबकि दहेज एसईजेड में 55 करोड़ रुपए की लागत से नया संयंत्र लगा रही है। इन दोनों के एमओयू पर उसने हाल ही में संपन्न हुए वाइब्रैंट गुजरात के समारोह में दस्तखत किए हैं। दहेज के संयंत्र पर काम चालू है और वहां व्यावसायिक उत्पादन साल भर के भीतर शुरू हो जाने की उम्मीद है।
कंपनी की कुल इक्विटी 33.85 करोड़ रुपए है जो दस रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में विभाजित है। इसका 57.76 फीसदी हिस्सा पब्लिक और 42.24 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों के पास है। पब्लिक के हिस्से में से एफआईआई व डीआईआई क्रमशः मात्र 0.09 फीसदी और 0.05 फीसदी निवेश कर रखा है। इतने कम निवेश के लिए एफआईआई और डीआईआई के अपने तर्क होंगे।
लेकिन कुल मिलाकर कृषि रसायन जैसे क्षेत्र की जो कंपनी ब्राजील में अपनी सब्सडियरी बना चुकी हो, देश ही नहीं, विदेश तक में उपलब्ध हर अवसर पकड़ने में लगी हो, उसका शेयर अगर 5 से कम पी/ई अनुपात पर मिल रहा हो तो उसमें निवेश किया जा सकता है। हालांकि पैसा और फैसला दोनों आपका होगा। इसलिए पूरी सावधानी और हर पहलू पर गौर करने के बाद ही निवेश करें। मुझे कृषि क्षेत्र से जुड़ी हर कंपनी में बहुत संभावना नजर आती है क्योंकि भारतीय कृषि में अभी विकास की अनंत संभावनाएं छिपी पड़ी हैं।