दुनिया की सन्नामी रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एस एंड पी) ने कहा है कि भारत का आम बजट उसकी रेटिंग (BBB-/Stable/A-3) पर थोड़ा नकारात्मक असर डाल सकता है। उसका कहना है कि वित्त मंत्री ने खजाने की व्यवस्था के संबंधित तमाम सुधार घोषित किए हैं, लेकिन माल व सेवा कर (जीएसटी), प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) औप सब्सिडी सीधे लक्ष्य तक पहुंचाने जैसे अहम सुधारों के अमल के वक्त को लेकर अनिश्चितता बरकरार है। साथ ही भारत का राजकोषीय घाटा अगले वित्त वर्ष में ज्यादा रहने की आशंका है। उफनते-उतरते जिन्सों (कच्चे तेल) के दाम और बिखरे सब्सिडी तंत्र के चलते खजाने की स्थिति को लेकर अनिश्चितता और बढ़ गई है।
रेटिंग एजेंसी ने कहा कि उसे यकीन है कि भारत की आर्थिक विकास दर दुरुस्त रहेगी और बहुत संभव है कि आनेवाले सालों में यह दर आम सरकारी घाटे व जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के अनुपात से ज्यादा रहे। उम्मीद है कि भारत का ऋण-जीडीपी अनुपात 2011-12 के 74.9 फीसदी से घटकर 2012-13 में 74.7 फीसदी पर आ जाएगा। फिर भी सरकार ने बड़े-बड़े फंडिंग कार्यक्रमों से बाजार से 4.79 लाख करोड़ रुपए का जो ऋण जुटाने की घोषणा की है, उससे वित्तीय बाजारों पर दबाव बढ़ जाएगा। इसका नकारात्मक असर आर्थिक हालत के सुधरने की प्रक्रिया पर पड़ सकता है। भारत की कमजोर राजकोषीय स्थिति और ऋण का भारी बोझ कुछ सबसे अहम नकारात्मक कारक हैं जो इसकी संप्रभु रेटिंग को नीचे खिसका सकते हैं।
बता दें कि वित्त मंत्री ने बताया है कि उनके नए प्रत्यक्ष कर प्रस्तावों से राजस्व में अभी की बनिस्बत 4500 करोड़ रुपए कम आएंगे, वहीं सर्विस टैक्स व एक्साइज व कस्टम ड्यूटी जैसे परोक्ष कर प्रस्तावों से कुल 45,940 करोड़ रुपए ज्यादा मिलेंगे। इसमें से 27,280 करोड़ कस्टम व सेंट्रल एक्साइज से और बाकी 18,660 करोड़ रुपए सर्विस टैक्स से आएंगे। हालांकि जीडीपी में 59 फीसदी योगदान को देखते हुए सर्विस टैक्स से मिली रकम कम है। फिर भी प्रत्यक्ष व परोक्ष कर प्रस्तावों को मिलाकर सरकार को 41,440 करोड़ रुपए की अतिरिक्त प्राप्त होगी।
केंद्र सरकार को नए वित्त वर्ष में टैक्स से कुल 10,77,612 करोड़ रुपए मिलने हैं। इसमें से राज्यों का हिस्सा निकाल देने के बाद उसे इस मद में 7,71,071 करोड़ रुपए मिलेंगे। बाकी कर-भिन्न प्राप्तियों से उसे 1,64,614 करोड़ और गैर-ऋण प्राप्तियों से 41,650 करोड़ रुपए (11,650 करोड़ ऋणों का वसूली से और 30,000 करोड़ रुपए विनिवेश से) मिलेंगे। नए वित्त वर्ष में उसका कुल अनुमानित खर्च 14,90,925 करोड़ रुपए है। इस खर्च को पूरा करने के लिए बाकी 5,13,590 करोड़ रुपए का उसने राजकोषीय घाटा दिखाया है, जिसमें से वह 4.79 लाख करोड़ रुपए बाजार के बतौर उधार उठाएगी।
स्टैंडर्ड एंड पुअर्स का कहना कि बजट घोषणा के मुताबिक भारत का राजकोषीय घाटा 2011-12 में जीडीपी का 5.9 फीसदी रहा है और 2012-13 में 5.1 फीसदी रहने का अनुमान है। ये दोनों ही अनुपात 13वे वित्त आयोग के उस राजकोषीय सुदृढ़ीकरण लक्ष्य से ज्यादा हैं जिसके मुताबिक इस साल इसे जीडीपी का 4.8 फीसदी और अगले साल 4.2 फीसदी होना चाहिए था। सरकार ने पंचवर्षीय योजना में भी इस दौरान 4.6 फीसदी और 4.1 फीसदी का लक्ष्य रखा था।
रेटिंग एजेंसी के मुताबिक साल 2014 में देश के आम चुनाव होने हैं। इसलिए इसकी कोई गुंजाइश नहीं दिखती कि भारत सरकार 2013-14 और 2014-15 तक घाटे को जीडीपी के 3 फीसदी तक लाने का लक्ष्य हासिल कर पाएगी। उनका कहना है कि चालू वित्त वर्ष में केंद्र व राज्य सरकारों का सम्मिलित घाटा जीडीपी का करीब 8.5 फीसदी रहेगा, जो अगले वित्त वर्ष में 8 फीसदी पर आ सकता है। यह भी नहीं लगता कि सरकार 30,000 करोड़ रुपए का विनिवेश लक्ष्य हासिल कर पाएगी।