चार साल पहले कोरोना में फंसने के बाद जबरदस्त शोर मचा कि चीन से दुनिया के तमाम देश दूरी बना रहे हैं और ‘चाइना प्लस वन’ की नीति अपना रहे हैं। इसका सबसे ज्यादा फायदा भारत को मिलेगा। लगा कि भारत अब दुनिया भर में फैले चीन के निर्यात बाज़ार पर कब्ज़ा कर लेगा। लेकिन यह भी मोदी सरकार के देश के भीतर उछाले गए तमाम जुमलों की ही तरह अंतरराष्ट्रीय सब्ज़बाग व बड़बोलापन साबित हुआ। चीन से निकले निर्यात बाज़ार का बड़ा हिस्सा बांग्लादेश, वियतनाम, ताइवान, मलयेशिया व थाईलैंड ने हथिया लिया। अमेरिका में इन देशों का निर्यात 5.5% से लेकर 7.2% तक बढ़ गया, जबकि भारत का निर्यात मात्र 2.1% बढ़ा। यह तब हो रहा है, जब डॉलर की विनिमय दर चीनी मुद्रा में अभी 7.22 युआन है और भारत की मुद्रा की विनिमय दर 84.40 रुपए हो चुकी है। इसका मतलब हुआ कि इस समय भारत का निर्यात अंतराष्ट्रीय बाज़ार में डॉलर में चीन के मुकाबले 11.69 गुना सस्ता होना चाहिए। फिर भी भारत का निर्यात क्यों नहीं बढ़ रहा? जाहिर है कि इसकी मूल वजह मोदी सरकार की दस साल से चल रही आर्थिक नीतियों में है। विदेशी निवेशक इसलिए भी भारत से भागे जा रहे हैं। अब तो यहां मुद्रास्फीति भी बेकाबू हो चली है तो ब्याज भी नहीं घटने जा रहा। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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