खाते में रिलायंस है कि नहीं!

रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) बढ़ते-बढ़ते फिर गिरने लगा। कल बीएसई सेंसेक्स 80.71 अंक गिरा तो इसमें तकरीबन आधा, 49.51 फीसदी योगदान रिलांयस का रहा। कितनी विचित्र बात है कि मंगलवार 21 सितंबर को जब सेंसेक्स ने करीब 32 महीने बाद 20,000 आंकड़ा पार किया, उसी दिन से रिलायंस में गिरावट का नया सिलसिला शुरू हुआ है। तरह-तरह की थ्योरी पेश की जा रही है कि निवेशक आरईएल ने निकलकर ओएनजीसी की तरफ जा रहे हैं। दुनिया में भर में इस धंधे से जुड़ी कंपनियों के शेयर इसने सस्ते हो गए हैं कि एफआईआई उनका रुख कर रहे हैं। आदि-इत्यादि।

ये सारे विश्लेषण अपनी जगह सच हो सकते हैं। लेकिन पूरा सच नहीं। इस देश में इक्विटी कल्ट को फैलाने का काम रिलांयस इंडस्ट्रीज ने शुरू किया था। वह आज भी शेयरधारकों के बीच सबसे बड़ा ब्रांड है। हम यूं कह सकते हैं कि जिस रिटेल निवेशक के खाते में रिलायंस का शेयर न हो, उसे सही मायनों में बाजार का निवेशक नहीं माना जा सकता। भारतीय कॉरपोरेट क्षेत्र की इस सबसे बड़ी कंपनी की समृद्धि में आम निवेशकों को अपना हिस्सा पकड़ना ही चाहिए, इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती। और, मौजूदा गिरावट उसे यह शिरकत करने का मौका दे रही है। बता दें कि इस समय उसके शेयरधारकों की संख्या 35,63,155 है। यानी, देश के सारे 170 लाख डीमैट खातों में से हर पांच में कम से कम एक में रिलायंस इंडस्ट्रीज का शेयर है।

कल उसका शेयर बीएसई में 997.70 रुपए और एनएसई में 996.90 रुपए पर बंद हुआ है। हो सकता है आगे और गिरे। इस महीने की शुरुआत में यह 915 रुपए तक चला गया था। सीधी-सी बात है कि रिलायंस पर बराबर नजर रखने की जरूरत है और अब थोड़ा-थोड़ा 10-10, 20-20 करके इसे खरीदते रहना चाहिए। देर-सबेर यह रफ्तार पकड़ेगा और तब हमारे लिए इसको पकड़ पाना मुश्किल हो जाएगा। सारा खेल एफआईआई होल्डिंग का है जिसका बड़ा हिस्सा खुद रिलायंस के बेनामी अंतरराष्ट्रीय जाल से आ रहा है। जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं कि कंपनी में एफआईआई निवेश एक हद आ जाने के बाद उसमें नई खरीद होती है, जिसे बार-बार फेट कर नोट बनाए जाते हैं।

आपको बता दूं कि सारा मीडिया और एनालिस्ट समुदाय जानते हुए भी यह हकीकत नहीं बताता। इसीलिए हम हमेशा मिड कैप व स्मॉल कैप कंपनियों पर लिखते रहने के बावजूद आज देश की इस लार्ज ही नहीं, लार्जेंस्ट कैप कंपनी के बारे में लिख रहे हैं। इधर यह भी सामने आ रहा है कि रिलायंस ने अभी तक परदे में छिपाकर रखी गई तमाम हकीकत उजागर करने का सिलसिला शुरू कर दिया है। उसने अपनी 96 सब्सिडियरियों में से 94 के खाते सार्वजनिक कर दिए हैं। पारदर्शिता की तरफ बढ़ने के इस कदम का स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन इसके बावजूद रिलांयस समूह की हजारों निवेश कंपनियों की हकीकत शायद ही कभी सामने आए, जिनके जरिए यह समूह धीरूभाई के जमाने से शेयर बाजार का अघोषित बादशाह बना हुआ है।

यूं अगर दूसरी कंपनियों की तरह इसके वित्तीय आंकड़ों पर गौर करें तो रिलायंस बहुत चमत्कारिक कंपनी नहीं दिखती है। इसके शेयर की बुक वैल्यू 407.18 रुपए है। ठीक पिछले बारह महीनों के 53.25 रुपए के ईपीएस को देखते हुए उसका मौजूदा पी/ई अनुपात 18.74 है, जबकि ओएनजीसी का शेयर अभी 19.51 के पी/ई अऩुपात पर ट्रेड हो रहा है।

कहा जा रहा है कि सरकार कृष्णा गोदावरी बेसिन के गैस का मूल्य बढ़ा सकती है जिसका बाहरी आवेग रिलांयस के शेयरों को मिलेगा। सरकार ने ओएनजीसी के नए गैस फील्ड के लिए प्राकृतिक गैस की कीमत 4.75 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू (मिलियन मीट्रिक ब्रिटिश थर्मल यूनिट) रखी है, जबकि रिलायंस के केजी बेसिन के लिए यह अब भी 4.2 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू है। खैर, यह सब आंकड़े रिलायंस कंपनी के लिए मायने रखते हैं, उसके स्टॉक के लिए नहीं क्योंकि वहां तो कुछ और ही खेल चलता है। कहने को एफआईआई बड़े खिलाड़ी हैं, लेकिन उनके लिबास में भी असली खेल बड़े भाई का ही चलता है।

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