अभी राष्ट्रीय खातों की विसंगतियों और जीडीपी के आंकड़ों पर छाया संदेह का कोहरा छंटा भी नहीं था कि भारत सरकार ने मनरेगा को वापस लेकर जी राम जी का ऐसा बिल संसद से पास करा लिया जिसने एक झटके में देश के 12 करोड़ गरीब परिवारों से साल में 100 दिन सरकार से रोज़गार पाने का अधिकार छीन लिया। मुंह में राम, बगल में छूरी की कहावत को सच करते हुए कहने को नए विधेयक में प्रति परिवार रोज़गार के दिनों की संख्या बढ़ाकर 125 कर दी गई है। लेकिन प्रावधान ऐसे हैं कि तमाम राज्यों में यह योजना ही नहीं लागू हो पाएगी। फैसला केंद्र सरकार करेगी, जबकि राज्यों को उसे लागू भर करना है। ऊपर से योजना का 40% खर्च राज्यों को उठाना पड़ेगा और अतिरिक्त खर्च का वहन भी करना पड़ेगा। अभी तक इस योजना में मजदूरी का 100% खर्च केंद्र सरकार उठाती थी, जबकि लगनेवाली सामग्रियों का 25% राज्यों को देना पड़ता था। फिर, मनरेगा मांग आधारित कानून था, जिसमें मजदूरों की मांग आने पर रोज़गार या भत्ता देना पड़ता था। अब केंद्र सरकार बिना किसी की राय लिये कानून कहां लागू होगा, इसका फैसला करेगी। आखिर केंद्र सरकार 60 करोड़ गरीबों से रोज़गार का हक छीनकर उन्हें पंगु और अपनी कृपा पर निर्भर टुकड़खोर क्यों बना रही है? अब सोमवार का व्योम…
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